यह रोग प्राय 55 या 60 वर्ष से अधिक की आयु में होता है। रोगी को मुख्यतः रात्रि में कई बार मूत्र त्याग के लिए उठना पड़ता है। मूत्र त्याग रुकावट एवं कष्ट के साथ होता है और उसमें अधिक समय लगता है। मूत्र पूरी धार में नहीं निकलता, उसमें वेग भी नहीं होता। मूत्र करने के बाद तक कुछ बूंदें टपका करती है। इसके अलावा मैथुन की अधिक इच्छा होना तथा कभी-कभी मूत्र का पूर्णतया बंद होना भी देखा गया है। गुद परीक्षा करते ही अंगुली से ग्रंथि का आकार बढ़ा हुआ प्रतीत होता है।
(1) चंद्रप्रभा वटी 500 मि.ग्राम दिन में तीन बार गोखरू के क्वाथ से दें।
(2) श्वेतपर्पटी एक ग्राम, यवक्षार 500 मि.ग्राम दिन में तीन बार दें।
(3) वरुणाद्यलौह 240 मि.ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
(4) गोक्षुराद्यवलेह 12 ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
(5) गोक्षुरादि गुगुल 2-2 गोली दिन में तीन बार दें।
(6) स्पीमेन टेब दो गोली दिन में तीन बार दें।
(7) के फोर टेब दो गोली दिन में तीन बार दें।
(8) पुननर्वामंडूर दो गोली दिन में तीन बार दें।
(9) पुनर्नवासव 15-30 मि.लि। दिन में दो बार भोजन के बाद दें।
(10) वरुणादि क्वाथ 10-20 मि.लि। दिन में दो बार दें।
(11) पाषाणभेदादि क्वाथ 10-20 मि.लि। दिन में दो बार दें।
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