संस्कृत में इसे ‘घृतकुमारिका', 'गृहकन्या', 'स्बूल दला' आदि नामों से पुकारा जाता है। एलोवेरा के झाड़ रेतीले और नदी तट वाले क्षेत्रों में अधिक होते हैं।
इसमें मोटे गूदेदार और किनारों पर काँटे लिए पत्ते-ही-पत्ते होते हैं। पत्तों के सिरों पर भी सख्त काँटा होता है जिसका रंग कलौसी लिए लाल होता है। पत्ते लंबे और ऊपर की ओर उठे होते हैं। किनारों पर लगे काँटे मुड़े हुए होते हैं। काँटों के बीच चिकना तना गूदे से भरा होता है जो घी की तरह होता है। धूप में यदि इस गूदे को रख दिया जाए तो इसका रंग पीला पड़ जाता है।
यह पौधा भारतवर्ष में सर्वत्र पाया जाता है। इसे घरों में गमलों आदि में भी लगा लेते हैं। इसमें लंबा पुष्प निकलता है जो लाल रंग का होता है। इसके गूदे को ‘कुमारी सार' भी कहा जाता है|
इसका गूदा दस्तावर, स्वाद में तीखा और तासीर में ठंडा होता है। यह नेत्रों के लिए हितकारी और वीर्य वर्द्धक है। अग्निदाह को कम करने वाला है और जिगर तिल्ली तथा रक्त-विकारों को दूर करने वाला है। वात, कफ, पित्त को हरने वाला है। खाँसी और चर्मरोगों में भी यह लाभकारी है। नपुंसकता को दूर करता है। मधुमेह और दर्द में आरामदायक है।
एलोवेरा का गूदा 25 ग्राम, गेहूँ का आटा 25 ग्राम, बूरा या मिश्री 25 ग्राम लेकर, पहले आटे को भून लें और फिर उसमें एलोवेरा का गूदा और मिश्री डालकर हलवा बना लें। इस हलवे को रोज सुबह एक हफ्ते तक खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है और यदि 15 दिन तक इसका नियमित सेवन किया जाए तो रतिसुख में पूरी संतुष्टि प्राप्त होती है।
यदि शरीर के किसी अंग पर सूजन हो तो एलोवेरा के थोडे से गूदे में आँबा हल्दी का चूर्ण मिलाकर थोड़ा गर्म करें और सुजन वाले अंग पर बाँध दें। सूजन उतर जाएगी।
ग्वारपाठे का रस आँखों में डालने से आँखों की पीडा शांत हो जाती है। इसका गूदा भी आखों में लगा सकते हैं। उससे आँखों की लाली कट जाती है।
ग्वारपाठे का 100 ग्राम हलवा बनाकर रोगी को दोनों समय सुबह-शाम खिलाएँ। इससे उपर्युक्त सभी रोग पित्त, खाँसी, कफ, वातरोग यादि तो दूर होते ही हैं, ‘पेट के रोग' भी दूर हो जाते हैं और खुलकर भूख लगती है। इसका सेवन कम से-कम एक सप्ताह तक करें।
ग्वारपाठे के अर्क में थोड़ी-सी अजवायन रात में भिगोकर रख दें। सुबह के समय उस रस और अजवायन को खा लें और ऊपर से ताजा पानी पी लें। 15-20 दिन में ही जिगर तिल्ली के सभी रोग नष्ट हो जाएँगे। ग्वारपाठे के ग्राम गूदे पर जरा-सा सुहागा डालकर खिलाने से तिल्ली कट जाती है।
ग्वारपाठे का रस कान में दो-तीन बूंदें डालने से दर्द जाता रहता है।
ग्वार पाठे के थोडे से गदे में जरा-सी हल्दी माथे पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।
ग्वारपाठे के उस पौधे से जिस पर लाल रंग के फूल लगे हों, थोड़ा-सा गुदा लेकर स्प्रिट में गला लें और फिर उसका लेप करें तो बाल काले हो जाते हैं। गंजा व्यक्ति भी यदि इस लेप को नित्य सिर पर लगाए और सूख जाने के बाद ही शीतल जल से धोए तो कुछ ही दिनों बाद उसके सिर पर बाल आने शुरू हो जाएँगे।
ग्वारपाठे का गूदा 10 ग्राम, गाय का घी 10 ग्राम, हरीतकी चूर्ण 2 ग्राम सेंधा नमक 2ग्राम, सबको मिलाकर सुबह-शाम खाने या नाश्ते के बाद प्रयोग करने से वायु-विकार दूर हो जाता है।
ग्वारपाठे की जड़ को कुचलकर पानी में औटाकर काढ़ा बना लें और उसमें जरा-सी भुनी हुई हींग बुरक कर पी लें। पेट का दर्द जाता रहेगा और ‘पेट के कीड़े भी मरकर मल के साथ बाहर निकल जाएँगे।
ग्वारपाठे के 10 ग्राम गूदे पर 1 ग्राम पलाश के फूलों का चूर्ण बुरककर दिन में दो बार सेवन करने से मासिक धर्म की शिकायत दूर हो जाती है। और मासिक स्राव ठीक प्रकार से होने लगता है।
ग्वारपाठे के 10 ग्राम गूदे मिश्री मिलाकर खाने से पेशाब की रुकावट दूर हो जाती है और पेशाब खुलकर आने लगता है। पानी भी दिन में 5-6 गिलास जरूर पीना चाहिए।
ग्वारपाठे के 50 ग्राम गूदे में थोड़ा-सा पिसा हुआ गेरू मिलाकर इसकी टिकिया-सी बनाकर गुदा के स्थान पर लंगोटी से बाँध लेना चाहिए। यह क्रिया यदि रात के समय सोने से पहले की जाए तो अच्छी रहती है। इस क्रिया से बवासीर के मस्से सुकड़ने लगते हैं और उनकी जलन शांत हो जाती है। यह क्रिया बादी और खूनी, दोनों बवासीर में लाभदायक है।
ग्वारपाठे के 10 ग्राम गूदे में 1 ग्राम गुडूची सत्व मिलाकर नित्य रोगी को खिलाना चाहिए। इससे मधुमेह के रोगी को बड़ा लाभ होता है।
ग्वारपाठे की जड़ 10 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बना लें और रोगी को सुबह-शाम पिलाएँ। पीला बुखार जल्द उतर जाता है।
ग्वारपाठे का गुदा तत्काल जले हुए अंग पर लगा दें। इससे जलन शांत होती है और फफोले नहीं पड़ते।
(और पढ़ें - डायबिटीज (Diabetes) क्या है?- डायबिटीज के प्रकार, कारण और इलाज)
(और पढ़ें - आंखों की रक्षा कैसे करें)
पूछें गए सवाल