अपेंडिक्स क्या है | अपेंडिक्स के लक्षण और घरेलु इलाज
आंत की पूच्छ की सूजन को अंत्रपुच्छ प्रदाह या अपेंडिक्स कहते हैं। इस रोग के प्रायः निम्न कारण होते हैं। देर से पंचने वाला भोजन करना, तला हुआ घी, पुड़ी, उड़द आदि अधिक खाना, सूखा भोजन, सख्त चीजों का खाना, अति सहवास करना, अति व्यायाम, मलमूत्रादि वेगों को रोकना, जलन पैदा करने वाले पदार्थों का अधिक खाना आदि। यह रोग स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को अधिक होता है।
अपेंडिक्स के लक्षण
अचानक दाईं ओर पेट में दर्द, नाड़ी तेज, बुखार, उल्टी होना, मिचली, कब्ज, दर्द वाले भाग को दबाने पर अधिक दर्द तथा पीड़ित स्थान का सख्त होना, बाद में रथानीय सूजन हो जाती है।
स्थानिक विद्रधि - आंत्रपुच्छ में अधिक सूजन हो जाने पर एवं रोगी की विषम अवस्था में आंत्रपुच्छ फट जाती है। और पूय मिले हुए रक्त के विषैले तत्व, उदर के समीप के सब अंगों में फैलकर तीव्र पीड़ा करते हैं। यदि इस अवस्था में उदर की कला की सूजन हो जाए तो बहुधा रोगी की मृत्यु हो जाती है।
अपेंडिक्स में घरेलु इलाज
- इस रोग का आक्रमण होने पर रोगी को पूर्ण विश्राम करना चाहिए।
- रोगी को जल, मौसमी का रस, मूंग का सूप दें।
- आंत्रपुच्छ प्रदेश या दर्द वाले रथान पर गरम जल की बोतल या बर्फ की थैली का सेक करना चाहिए।
- दर्द की अनुभूति अधिक हो तो अहिफेन प्रधान औषधि निद्रोदय रस जल के साथ देना चाहिए।
- दर्द कम होने पर अहिफेनयुक्त औषधियों को बंद कर देना चाहिए।
- रोग शांत हो जाने पर दुग्ध, पौष्टिक लघु भोजन, फलों का रस आदि दें।
- कज्जली योग 60 मि.ग्राम सप्तविंशति गुगुल 500 मि.ग्राम दिन में दो बार सहिजना क्वाथ से दें।
- अग्नितुंडी वटी 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार गरम जल से दें।
- जीवाणु नाश के लिए वंग भस्म 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद से दें।
- अभ्रक भस्म 120 मि.ग्राम चंद्रप्रभा 500 मि.ग्राम दिन में दो बार मधु या जल से दें।
- इस रोग की मुख्य चिकित्सा शल्य कर्म है। अगर औषधियों से आराम न आए तो तुरंत शल्य चिकित्सक से परामर्श करें।
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