हड्डियों की टी.बी. (बोन टी.बी.) क्या है | बोन टी.बी के लक्षण और चिकित्सा

टी.बी। की शुरुआत फेफड़ों से होती है, जो कालातर में रक्त के जरिये हड्डियों पर भी दुष्प्रभाव डालने लगती है। इस स्थिति को बोन टी.बी। कहते हैं।

बोन टी.बी के मुख्य लक्षण

  • हड्डियों में तेज दर्द, चलने व कार्य करने में असमर्थता, हलका बुखार, भोजन का ठीक से न पचना, दुर्बलता आदि।
  • शीतल विद्रधि (कोल्ड एवसैस) - छाती की अस्थियां तथा मुख की अस्थियों में यक्ष्मा में पनीर की तरह लचीला बन जाता है जिसे शीतल विद्रधि कहते हैं।
  • लसिका ग्रंथियों के रोग ग्रस्त होने पर भी शीतल विद्रधि बनती है।
  • इसमें सूजन के विभिन्न चिह्न गंभीर सूजन, दर्द तथा लालिमा आदि कम मिलते हैं।
  • हड्डियों की विद्रधि रीड़ की हड्डियों में, छाती की पसलियों में तथा हाथ-पैर की हड्डियों में, तथा लसिका ग्रंथि विद्रधि गरदन एवं कक्षा में मिलती है।

बोन टी.बी में चिकित्सा

1। स्वर्ण बसंतमालती रस 120 मि.ग्राम, शिलाजत्वादि लौह 500 मि.ग्राम, प्रवाल पिष्टि 500 मि.ग्राम, श्रृंग भस्म 500 मि.ग्राम, सितोपंलादि चूर्ण 1 गाम मात्रा प्रातः दूध में मिलाकर।

2। जीवंत्यादि घृत 20 मि.ली।

3। अश्वगंधारिष्ट 15 मि.ली, द्राक्षासव 15 मि.ली।

4। वृहत योगराज गुग्गुल 500 मि.ग्राम , 1 मात्रा रात्रि में गरम दूध के साथ।

5। अस्थि क्षय के स्थान पर नालुका लेप या दशांग लेप दिन में दो बार घी मिलाकर बांधे।

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