चिकित्सा का अर्थ रोग को दूर करने का प्रयत्न या उपाय है। या जिस क्रिया के द्वारा शरीर में वात, पित्त, कफ सम अवस्था में आ जाएं उसे चिकित्सा कहते हैं। और उत्तम गुणयुक्त वैद्य, औषधि, परिचारक तथा रोगी, सबके प्रयत्न को जो वात, पित्त, कफ को सम अवस्था में लाने के लिए किया जाता है - चिकित्सा कहते हैं।
चिकित्सा के तीन प्रकार हैं:
1। देव व्यपाश्रय
2। युक्ति व्यपाश्रये
3।
सत्त्वावजय।
1। देव व्यपाश्रय – मंत्र, जप, यज्ञ, होम, दान, प्रायश्चित, तीर्थगमन आदि के द्वारा जो रोग को शांत करने का प्रयत्न किया जाता है।
2। युक्ति व्यपाश्रय - इसके दो भेद हैं - द्रव्यभूत, अद्रव्यभूत।
3। सत्वावजय - इसमें रोगी स्वयं या चिकित्सक के उपदेश से ज्ञान, धैर्य, आदि की सहायता से यम नियम आदि का पालन करते हुए अहित पदार्थों से दूर रहता है। रस चिकित्सा के प्रसार काल में रोगी की पीड़ा को देखते हुए चिकित्सा के तीन रूप किए गए है।
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