बच्चों का शुरुआती भोजन और उसके स्वास्थ का देखभाल

बच्चों को जो भोजन हम देते हैं, वह उनके लिए कहां तक उपयोगी सिद्ध हो रहा है, इसकी कसौटी यह है कि बच्चा फुर्तीला चुस्त और प्रसन्न है या नहीं और इसके वजन, कद तथा स्वास्थ्य में आयु के अनुसार वृद्धि हो रही है या नहीं। यदि उत्तर नकारात्मक है तो समझ लेना चाहिए कि बच्चे को जो भोजन दिया जा रहा है वह या तो अपर्याप्त है या उसमें पोषक द्रव्यों की कमी है।

इसके साथ ही उसको स्वच्छ हवा, व्यायाम, खेल-कूद, प्रसन्न वातावरण, धूप, प्रकाश और नींद भी मिलनी चाहिए तभी उसका शारीरिक और बौद्धिक विकास सन्तुलित रूप से हो सकेगा।

बच्चों को सुबह नाश्ते में अच्छी चीजें दीजिए। अच्छा हो यदि केवल दूध और फल ही दिये जायें। दूध दलिया व किशमिश भी अच्छा नाश्ता है। मैदे की बनी हुई चीजें व मिठाइयां बच्चों को नहीं देनी चाहिए। शहरों में चाट, कुल्फी, मलाई, बरफ और तरह-तरह की मिठाइयां बिका करती हैं। बच्चों का झुकाव भी ऐसी चीजों की तरफ बहुत होता है। यदि माता-पिता पैसे देकर उन्हें इन चीजों के खाने की आदत डालते हैं तो वह उन्हें चटोरा बनाते हैं।

बच्चों को चटपटे और मिर्च मसाले वाले भोजन कदापि न देने चाहिए। माता या बच्चे को क्या भोजन देना है, इसकी योजना पहले ही बना ली जाये। उसमें इस बात का ध्यान रहे कि उनके भोजन में खनिज लवणों और खाद्यान्नों (विटामिन) की पर्याप्त मात्रा हो।

यदि बच्चों को प्रतिदिन दो या तीन चम्मच हरी शाक-भाजियां, गाजर, टमाटर या आम, पपीता, जैसे फल मिल जायें तो शारीरिक विकास और सौंदर्य के लिए आवश्यक खाद्यान्न विटामिन 'A' उनके शरीर में पहुंच जाता है। कुछ लोग विटामिन 'A' के लिए एक या दो छोटी चम्मच शार्क मछली का तेल देते हैं। लेकिन हम इसकी आवश्यकता नहीं समझते। यदि बच्चे को दूध या टमाटर का रस व कच्ची गाजर दी जाये तो काम चल जायेगा।

बडे बच्चों को विटामिन 'C' के लिए फल खिलाये जा सकते हैं, परन्तू छोटे शिशुओं को आधा पाव तक फलों का रस ही देना चाहिए।

विटामिन 'D' की प्राप्ति के लिए बच्चों के शरीर पर प्रात:कालीन सूर्य की कोमल धूप लगने देना चाहिए। पनीर खिलाने से विटामिन 'B' की पूर्ति की जा सकती है। बच्चों की शरीर रक्षा के लिए विटामिन 'C' बहुत आवश्यक है। सन्तरे, नींबू, पपीता, अनन्नास, आंवला, टमाटर और नाशपाती में यह विटामिन भरपूर मिलता है।

एक स्वस्थ बच्चे के विकास के लिए केवल समुचित भोजन का मिलना ही आवश्यक नहीं है, बल्कि स्वच्छ हवा, व्यायाम, खेल-कूद प्रसन्न वातावरण और नौद का उसके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। परन्तु, हमें यहां बच्चों के भोजन पर ही प्रकाश डालना है। इस विषय में किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए और बच्चे की आयु के अनुसार उसे भोजन देना चाहिए।

दूध में बच्चों को विकसित करने और स्वस्थ रखने की जितनी शक्ति है उतनी किसी एक भोजन में नहीं। एक साल से लेकर डेढ़ साल तक के बच्चे को दिन भर में कम से कम तीन पाव गाय का दूध अवश्य मिलना चाहिए। यदि किसी बच्चे के भोजन में दूध की आवश्यक मात्रा कम है तो उसको अन्य ऐसे भोजन देने चाहिए जिनमें शरीर निर्माणकारी तत्व, खनिज लवण, तथा विटामिन की प्रचुरता हो। बड़ी गलती तो तब होती है जब छोटे-छोटे बच्चों को मातायें कई कई रोटियां खिलाने लगती हैं या अन्य गरिष्ठ पदार्थ देने लगती हैं।

परिणाम यह होता है कि बच्चों का पेट बड़ा हो जाता है और उनकी पाचन क्रिया गड़बड़ हो जाती है। हमारा उद्देश्य बच्चों के पेट को भारी भोजन से बोझिल कर देना नहीं होना चाहिए, बल्कि अधिक-से-अधिक पोषण द्रव्यों को कम-से-कम परिमाण के भोजन द्वारा देना चाहिए। बच्चों को जब तक शरीर निर्माणकारी भोजन काफी यात्रा में नहीं मिलता तब तक उनके शरीर का सुन्दर विकास नहीं हो सकता और मोटी ताजी हड़ियों वाले हट्टे-कट्टे बच्चे हमें देखने को नहीं मिल सकते।

बच्चों को खिलाने-पिलाने के वैज्ञानिक पहलू का ज्ञान हर माता को होना आवश्यक है, क्योंकि शैशवावस्था में उसी की समझदारी अथवा नासमझी का अच्छा या बुरा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है।

भोजन का प्रभाव बच्चों की बुद्धि पर भी पड़ता है। प्राय: देखा गया है कि कम परिमाण के पोषक पदार्थ पाने वाले बच्चे मन्द बुद्धि होते हैं जबकि अच्छा व अधिक भोजन करने वाले बच्चे कुशाग्र बुद्धि होते हैं। कुछ दिन हुए बम्बई मंष इस सम्बन्ध में प्रयोग किया गया था। कुछ बच्चे दो दलों में बांट दिये गये। यह ध्यान रक्खा गया कि उनकी आयु, कद, वजन आदि समान हो।

एक दल को अच्छा भोजन दिया जाने लगा और दूसरे को सामान्य भोजन पर रक्खा जाने लगा। हर सप्ताह उनकी परीक्षाएं होतीं। कभी गणित के जवाबी प्रश्न पूछे जाते, कभी अन्ताक्षरी करायी जाती। यह देखा गया कि पहले दल के बच्चे उत्तर देने में काफी चुस्त-दुरुस्त थे, जबकि दूसरे वर्ग के बच्चों की शारीरिक और बौद्धिक शिथिलता क्रमश: बढ़ती जाती थी। इस प्रयोग से यह भली भांति सिद्ध हो गया कि भोजन के परिमाण और प्रकार पर बच्चे की बौद्धिक शक्ति बहुत कुछ निर्भर है।

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