पेचिश या प्रवाहिका जल, दूध, आदि द्वारा फैलने वाला अंतड़ियों का रोग है। जिसमें गम्भीर अतिसार (डायरिया) की शिकायत होती है और मल में रक्त एवं श्लेष्मा (mucus) आता है। यदि इसकी चिकित्सा नहीं की गयी तो यह जानलेवा भी हो सकता है।
(1) अमीबिक डिसेन्ट्री
(2) बेसिलस डिसेन्ट्री
दोनों प्रकार के कीटाणु रोगी के मल में पाये जाते हैं। वहां से किसी वाहक द्वारा ये भोजन, जल, आदि में प्रवेश करके स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंच जाते हैं। पेचिश का इलाज बहुत लम्बा हो जाता है। क्योंकि इसके कीटाणु अंतड़ियों में छिपे रह जाते हैं। और बार-बार आक्रमण कर देते हैं। इस रोग का सम्प्राप्ति काल 1 या 2 दिन है।
1। पेचिश होने पर आधे कप अनार के रस में चार चम्मच पपीते का रस मिलाकर पिएं।
2। केले की फली को बीच से तोड़कर उसमें एक चम्मच कच्ची खांड़ रखकर खाएं। एक बार में दो केले से अधिक न खाएं।
3।
दो चम्मच जामुन का रस और दो श्म्म्च गुलाब जल – दोनों को मिलाकर उसमें जरा-सी खांड़ या मिश्री डालकर तीन-चार दिन तक पिएं।
4। पेचिश रोग में नीबू की शिकंजी या दही के साथ जरा-सी मेथी का चूर्ण बहुत लाभदयक है।
5। पुरानी पेचिश में तीन-चार दिन तक काली गाजर का रस सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करें।
6। रोगी को आराम की जरूरत होती है।
7। तरल तथा शीघ्र पचने वाले भोजन देने चाहिए।
1। इस रोग के मुख्य कारण हैं कीटाणु जो कि गले-सड़े फल, बासी भोजन और गन्दी जगहों में पनपते हैं। अत: पेचिश से बचाव के लिए इन बातों के प्रति सावधान रहना चाहिए।
2। पानी उबालकर ठंडा करके पीना चाहिए।
3। मक्खियों को नष्ट करना चाहिए
4। भोजन को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए, क्योंकि ये कीटाणुओं को भोजन तक पहुंचाती हैं
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