फाइलेरिया क्या होता है | फाइलेरिया के लक्षण, और चिकित्सा

जिस रोग में पांव शिला के समान भारी एवं सख्त हो जाता है उसे श्लीपद या फीलपांव कहते हैं।

फाइलेरिया के लक्षण

प्रायः तीव्र बुखार के साथ जंघा प्रदेश में दर्द के साथ लस ग्रंथि की सूजन होकर क्रमश पांव में सूजन आ जाती है। तीन-चार दिन में ज्वर शांत हो जाता है। इस तरह रोग के बार-बार आक्रमण होते रहते हैं। हर बार सूजन कुछ शेष रह जाती है। जो दूसरी बार के आक्रमण से पुनः बढ़ जाती है। अंत में सूजन स्थाई हो जाती है। अधिकतर पैरों का श्लीपद मिलता हैं उसके बाद लिंग व अंडकोषों का फिर हाथों को मिलता है।

यद्यपि कान, स्तन, होंठ, नासिका व भग के होंठ का भी एलीपद कभी-कभी दिखाई देता है। अंडकोषों का भार 25 किग्रा। तक हो सकता है। स्त्रियों में स्तन फैलकर घुटने से नीचे तक लटकते हुए हो सकते हैं। भारतवर्ष में यह हिमालय की तराई, पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, कोचीन, तथा त्रावणकोर में मिलता है।

फाइलेरिया में चिकित्सा

  • उपवास, लेप, स्वेदन कराना तथा जुलाब देना ही उचित चिकित्सा है।
  • बुखार के होने पर संजीवनी वुटी 120 मि.ग्राम, श्रृंगभस्म 120 मि.ग्राम तथा हिगुलेश्वर रस 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार गरम जल से दें।
  • दशांग लेप का लेपन करें।
  • बुखार के बाद स्थाई लाभ के लिए नित्यानंद रस 250 मि.ग्राम दिन में तीन बार दें।
  • श्लीपद गजकेशरी 120 मि.ग्राम गरम जल से दें।
  • धूस्तूरादिलेप - धतूरा, एरंडमूल, निर्गुडी, पुनर्नवा, सहजने की छाल व सरसों समभाग - गोमूत्र, कांजी या पानी में पीसकर सूजन के स्थान पर गरम-गरम लेप करें।
  • श्लीपदारि रस 120 मि.ग्राम एलीपदारि लौह 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार दें।
  • कणादि चूर्ण व मदनादि लेप का प्रयोग करें।
  • Tags

You can share this post!

विशेषज्ञ से सवाल पूछें

पूछें गए सवाल