सारे शरीर में गोल चकत्तों का होना, जिसमें तेजी से खुजली हो एवं चुभन व पीड़ा हो, शीतपित्त रोग या पित्ती उछलना कहते हैं। यह चकत्ते एक या दो दिन में स्वयं शांत हो जाते हैं। शीतपित्त का कारण एक प्रकार की एलर्जी मानी जाती है। जो किसी भी अहितकारी प्रोटीन के सेवन या अन्य कोई भी असात्यमिक आहार या पेय, कपड़ा, चमड़े की वस्तु से एलर्जी होकर पित्ती हो जाती है। दूषित मांस, मछली, किसी कीड़े के काटने से कुनैन के प्रयोग से, पेट में अंकुश, मुख कीड़े या गंडु पद कीड़े का होना आदि। शरीर में एक साथ गर्मी या सर्दी का प्रभाव बढ़ने से पित्ती की उत्पत्ति होती है।
1। कटु तेल से मालिश एवं गरम जल से स्वेदन आदि करें।
2। रस सिंदूर 120 मि.ग्राम, काली मिर्च चूर्ण 1 ग्राम तथा स्वर्ण गेरिक या अजवायन 1 ग्राम मिलाकर गुड़ के साथ खिला दें। शरीर पर गेरु का लेप करके मोटा कंबल ओढ़ाकर रोगी को लिटा दें। पसीना आकर शीतपित्त शांत हो जाएगा।
3। सफेद सरसों, हल्दी, कुठ, चक्रमर्द के बीज तथा काले तिल को पीसकर कडुवा तेल मिलाकर उबटन लगाएं।
4। शीतपित्त भंजन रस 120 मि.लि। ग्राम दिन में दो बार दें।
5।
हरिद्राखंड 5-6 ग्राम दिन में दो बार उष्ण जल से दें।
6। सूतशेखर रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार जल से दें।
7। कामदुधा रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार जल से दें।
8। सारिवाद्यासव 15-30 मि.लि। बराबर पानी मिलाकर भोजन के बाद दें।
9। खदिरारिष्ट 15-30 मि.लि। बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दें।
10। आरोग्यवर्धिनी वटी 2-4 वटी दिन में दो बार गरम जल से दे।
11। स्वर्ण गेरिक (गेरू) शुद्ध शहद में मिलाकर खिलाने से लाभ होता है।
12। पुराना गुड़ अदरक के रस के साथ दिन में दो बार देने से लाभ होता है।
13। गुडुच्यादि तेल की मालिश करनी चाहिए।
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