अनेक बच्चों में पाए जाने वाला यह रोग कान के बीच की सूजन के कारण तथा कई बार शंख कूट अस्थि में पाक होने के कारण मिलता है। रोग बढ़ने की अवस्था में स्थायी बहरापन भी हो जाता है।
1। नीम की पत्तियों की भाप से कान का स्वेदन करें।
2। कौडी भस्म को नली या कागज के चोगे में रखकर कान में धीरे से फेंक दें।
3। शंबूक तेल पुराने कान के बहने की उत्तम औषधि है।
4। जलकुंभी के तेल से भी लाभ होता है।
5।
फिटकरी के चूर्ण का प्रक्षेप तथा सप्तविशंति गुगुल को दूध के साथ कम से कम 40 दिन तक देने से लाभ होता है।
6। सारिवादि वटी एवं निर्गुडी तेल उत्तम औषधि है।
7। बच्चों के स्वास्थ्य को उत्तम बनाने के लिए बसंतमालती रस, कुमार कल्याण रस, काड लीवर आयल, अश्वगंधारिष्ट आदि का सेवन कराएं।
8। नाक व गले के रोग हो तो उनकी चिकित्सा करें।
9। शिशओं में दुग्धपान की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है।
10। जब भूख लगेगी वे स्वयं आवश्यक मात्रा में दुध पिएंगे।
11। स्वास्थ्य की दृष्टि से यही उत्तम भी है।
12। माता के दूध के अभाव में गाय या बकरी का दूध पिलाना चाहिए।
बालकों को असमय भोजन देना, बासी, सड़ी-गली भारी चीजें खाना, डराना, धमकाना, मारना, गंदे कपडे पहनना, गंदे बिस्तरों पर सुलाना आदि अति हानिकारक होता है।
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