माँ का दूध शिशु को कब नहीं पिलाना चाहिए|

कुछ ऐसी अवस्थाएं भी होती हैं, जब बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए, क्योंकि स्तनपान से बच्चे को काफी हानि हो सकती है। ऐसे में बच्चे को ऊपर के दूध, यानी गाय या डिब्बे के दूध पर ही रखना अच्छा होता है। ऐसी स्थिति सामान्यतः निम्नांकित है।

माँ का दूध शिशु को नहीं पिलाना चाहिए

1। क्षय रोग में: यदि मां क्षय रोग से पीड़ित है, तब उसे बच्चे को दूध नहीं पिलाना चाहिए। इससे मां तथा बच्चा, दोनों को नुकसान होगा। क्योंकि मां के दूध से मां के घनिष्ठ संपर्क से शिशु को भी क्षय रोग हो जाने की पूरी आशंका बनी रहती है। ऐसे अधिकांश बच्चे क्षय रोग से पीड़ित हो जाते हैं। अतः पीड़ित मां के दूध पर अपने जिगर के टुकड़े को मत रखें।

2। लंबी अवधि वाले ज्वर में: लंबी अवधि वाले ज्वर, जैसे टायफायड हो जाए, तो मां का दूध पिलाना उचित नहीं, उसे रोक देना चाहिए। बच्चे को ऊपर का दूध पिलाएं। यदि माता बच्चे को टायफायड आदि में दूध पिलाती रहती है, तो इसमें बच्चे को तो कोई हानि नहीं होने वाली, क्योंकि मां के ज्वर के विष-कण बच्चे के अमाशय में पहुंचकर प्रभावहीन हो जाते हैं,

मगर इसमें मां की सेहत को हानि पहुंचती है। उसका रोग शीघ्र ठीक नहीं हो पाता और मां के शरीर में ऐसी कमजोरी छोड़ जाता है, जिसकी भरपाई में लंबा समय लगता है।

3। मस्तिष्क की विकृत अवस्था में: जब मां पर पागलपन का असर हो अथवा मस्तिष्क विकृत अवस्था में हो, तब भी वह बच्चे को गोद में लेकर दूध न पिलाए। इस बात का ध्यान तो घरवालों को, अभिभावकों को रखना होगा। इस दूध के पिलाने या पीने से मां या बच्चे को कोई हानि नहीं होने वाली, न ही रोग स्थानांतरित होगा। बस, इसमें सबसे बड़ा भय यह रहता है कि अचानक दौरा पड़ते ही वह बच्चे को उठाकर पटक सकती है, मार सकती है, आघात पहुंचा सकती है।

4। मिरगी के रोग में: यदि मां को मिरगी का दौरा पड़ जाए, तब वह अपने होश में नहीं रहती, बेसुध-सी हो जाती है। यदि ऐसे में बच्चा छाती से लग कर स्तनपान कर रहा है, तब उसे वह गिरा सकती है या स्वयं बच्चा उसके अपने नियंत्रण में न रहकर गिर भी सकता है। चोट लग सकती है। नाक, कान, सिर फूट सकता है। अतः अभिभावकों को इस पर नजर रखनी चाहिए, ताकि बच्चे के साथ कोई दुर्घटना न हो सके।

5। रक्त की कमी में: मान लो मां को कोई चोट लग गई है। अधिक रक्त बह जाने से रक्त में कमी आ गई है। ऐसे में कमजोरी भी बेहद हो जाती है। यदि मां बच्चे को दूध न ही पिलाए तो अच्छा है, वरना पिलाने में हुए परिश्रम से मां को नुकसान हो सकता है।

6। हृदय रोग से पीड़ित मां: यदि मां को हृदय रोग है, तो उसे बच्चे को दूध पिलाने में खतरा है। ऐसे में बच्चे को ऊपर के दूध पर रखना मां के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। मां की जान की हिफाजत करने के लिए बच्चे को गाय या डिब्बों के दूध पिलाएं।

7। गर्भावस्था में: कई बार मां की छाती में अभी दूध होता है तथा मां फिर जल्दी गर्भ धारण कर लेती है। ऐसे में बच्चे को दूध पिलाने और न पिलाने पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता। जहां तक दूध के ‘संघटन’का प्रश्न है, गर्भधारण कर लेने से इसमें कोई प्रभाव नहीं पड़ता। शारीरिक चिकित्सक भी यह सिद्ध कर चुके हैं। कि दूध की गुणवत्ता पहले जैसी बनी रहती है। इसमें कोई अंतर नहीं आता। यदि बच्चे को मां दूध पिलाती रहे, तो कोई हर्ज नहीं।

8। स्तनों का रोगी हो जाना: यदि युवती के स्तनों में कोई भी रोग हो जाए, तब भी बच्चे को दूध न पिलाए। मवाद वगैरह पड़ने पर तो बिलकुल भी दूध न पिलाएं। हां, यदि आप चिकित्सक से सलाह लेकर ‘निप्पल शील्ड' का प्रयोग कर, दूध पिलाने में सक्षम हैं तब तो आप अपने लाडले को दुध पिला सकती हैं।

9। दूध में दूषण: यदि चिकित्सक की सलाह में बच्चे के लिए मां का दूध ठीक नहीं है, तब तो बच्चे को दूध पिलाना बंद करना ही होगा। यदि दूध बन रहा है, मगर बच्चे को किसी भी कारण से यह सूट नहीं कर रहा है, तब हाथ से दूध निकालकर स्तनों को जरूर खाली करती रहें, ताकि दूध बनने की क्रिया खत्म न हो और जब आप दूध पिलाने की स्थिति में आ जाएं, तो बच्चे को दूध मिल सके। स्तनों में दूध सूखे नहीं। ऐसा होने से स्तनों में रोग होने की आशंका रहती है।

10.सिफलिस ग्रस्त मां: यदि मां सिफिलिस ग्रस्त हो गई हो, तो वह बच्चे को दूध पिलाना बंद कर दे। यह एक ऐसा रोग माना जाता है, जिसमें पैतृक प्रवृत्ति निश्चित है। यदि मां सिफिलिस ग्रस्त है, तो बच्चा भी इस रोग का शिकार हो सकता है, बल्कि यह रोग उसे अधिक गंभीर रूप में लग सकता है। अतः इस रोग से बचाने के लिए मां अपने बच्चे को दूध न पिलाए।

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नोट :- यदि मां इस रोग से गर्भधारण करने से पूर्व ही ग्रसित है और गर्भधारण करने के पहले चार-पांच महीनों में मां को यह रोग लग गया है। तो इन दोनों अवस्थाओं में गर्भ में पल रहे शिशु के सिफलिस रोग से ग्रसित होने की पूरी आशंका रहती है। और यदि मां को गर्भधारण के अंतिम तीन मासों में यह रोग लगा है, तो प्रायः मां का रोग शिशु को नहीं लगता।

सिफलिस से ग्रसित बच्चे के लक्षण-

  • ऐसे बच्चे दुर्बल होते हैं।
  • रोगों से लड़ने की उनमें क्षमता नहीं होती।
  • बच्चों का पाचन भी कमजोर होता है।

ध्यान रहे:- यह रोग (सिफलिस) बहुत स्त्रियों को और फिर हर देश में हुआ करता है। यह रोग मां और बच्चे को सदा दुर्बल रखता है। लापरवाही होने पर जीवनभर बना रह सकता है। इसको पूर्ण रूप से खत्म करना कठिन है। इलाज या परहेज जो जरूरी हों, अवश्य कराते रहें। इससे यह नियंत्रित रहता है और कठिन प्रयासों से समाप्त भी हो सकता है।

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