मासिक धर्म का आरम्भ कब और कैसे होता है | मासिक धर्म आरम्भ होने के लक्षण क्या है।

मासिक धर्म शुरू होने के पहले दिन जब रक्त निकलता है तो लड़कियां आमतौर पर घबरा उठती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि उन्हें पहले से इसके बारे में अपनी माँ, भाभी या बड़ी बहन से शिक्षा नहीं मिली है कि भविष्य में उनके सामने भी यह दिन आयेगा। अतः घबराने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हर नारी के जीवन में यह दिन आता है और 45 वर्ष की अवस्था तक नियमित रहता है। यह परिवर्तन स्वाभाविक और प्राकृतिक है। इसके बिना नारी मां नहीं बन सकती। उसका शारीरिक विकास नहीं हो सकता और सबसे बड़ी बात, उनमें नारीत्व के गुण पूर्णतया नहीं होते।

अतः हर बड़ी महिला को अपने घर में यौवन की दहलीज पर कदम रखती हर किशोरी को शारीरिक परिवर्तनों की जानकारी समय-समय पर पहले ही देते रहना चाहिए, ताकि उस वक्त उनके मन में किसी तरह का भय उत्पन्न न हो।

मासिक धर्म के आरम्भ में शुद्ध रक्त नहीं होता, बल्कि एक प्रकार की लसिका स्राव होता है। कुछ दिन बाद रक्त स्राव होने लगता है। मासिक धर्म आरम्भ में अनियमित रहता है, परन्तु इसमें चिंता की कोई बात नहीं है।स्त्रियों की जननेन्द्रिय में दो छिद्र ऊपर-नीचे होते हैं। ऊपर वाला छोटा छिद्र मूत्र मार्ग होता है। नीचे वाला छिद्र थोड़ा बड़ा होता है। मासिक धर्म के समय इसी छिद्र में से रक्तस्राव होता है। विवाह के बाद पुरुष इसी मार्ग से संभोग क्रिया करता है और गर्भ रहने पर 9 महीने बाद बच्चा भी उसी मार्ग से पैदा होता है।

हर महीने जो रक्तस्राव होता है, वह गर्भाशय से संबद्ध जो एक झिल्ली होती है, उससे रिस-रिसकर बाहर आता है। यह रक्त शरीर के रक्त से भिन्न होता है। यह कुछ अधिक गाढ़ा व गहरा रंग लिए होता है। गर्भ धारण की अवस्था में मासिक धर्म बंद हो जाता है। मासिक धर्म के समय शुरू-शुरू में किशोरी लड़कियां कुछ विचलित होती हैं, पर कुछ समय बाद वे इसकी आदी हो जाती हैं। इस काल में लड़कियों में आलस्य छा जाता है। परन्तु इससे उन्हें बचना चाहिए। इन दिनों अधिक मसालेदार व्यंजन तथा तैलीय खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।

इन्हीं दिनों उनमें कामोत्तेजना की तीव्रता बढ़ती है। परन्तु उन्हें संयम से रहकर किसी बुरी आदत का शिकार होने से बचना चाहिए। अपना मन अन्य मनोरंजनों। पढाई या किसी रचनात्मक कार्य में लगाना चाहिए। इस यौवन काल में किशोरियों के शरीर में यौवन का उफान जन्म लेता है, अतः सजने और संवरने का भी यही काल होता है और बिगड़ने-बरबाद होने का भी यही काल होता है। अतः यौवन के उफान का अन्य रचनात्मक कार्यों में जो भविष्य में आने वाले सुनहरे जीवन का द्धार खोलते हैं।

अतः इसी उम्र में नारी-शरीर की पूरी रचना प्रक्रिया गर्भधारण की स्थिति, प्रसव आदि के बारे में जानकारी तथा किसी गलत काम से होने वाले दुष्परिणामों की भी पूरी-पूरी जानकारी दे देनी चाहिए, ताकि वे कोई भी गलत कदम उठाने की ओर प्रवृत्त न हो सकें और अपनी भलाई-बुराई स्वयं समझने में समर्थ हो सकें। क्योंकि उन्हें गलत काम के परिणामों का ध्यान बना रहेगा। बुरी आदतों में प्रोत्साहन देने वाले पुरुष और स्त्रियों से सावधान रहना चाहिए और उन्हें स्पष्ट बता देना चाहिए कि हम अनभिज्ञ नहीं हैं।

इन्हीं दिनों मुंहासे, एक्ने, कील, झाइयां आदि चेहरे पर उभरती हैं कारण इस अवस्था में शरीर का तेजी से विकास होता है। और कई शारीरिक, मानसिक असंतुलन पैदा हो जाते हैं। शरीर में हार्मोन सम्बन्धी परिवर्तन होने लगते हैं। उत्तेजना का उफान अपनी चरम सीमा पर होता है। मन में तरह-तरह के सपने, कल्पनाएं, भावनाएं, जिज्ञासाएं, समस्याएं जागृत होती हैं। परन्तु संकोच वश वे इन्हें किसी से कहने में असमर्थ होती हैं।

इन्हीं मनोभावों, जिज्ञासाओं, कामोत्तेजना की भावना को दबानेछिपाने से शरीर की ग्रन्थियां खासकर तैलीय ग्रन्थियां ज्यादा उत्तेजित होकर अधिक तेल छोड़ने लगती हैं। तैलीय त्वचा पर धूल, गंदगी के कण चिपक कर तरह-तरह विकार उत्पन्न कर देते हैं। फलस्वरूप चेहरे पर मुहासे, एक्ने, कील, झाइयां आदि निकल आते हैं। ऐसे में सादा भोजन, हरी सब्जियां, फल और ठंडे पेय पदार्थ अधिक मात्रा में लेना चाहिए। गरिष्ठ तला हुआ मिर्च-मसाले का भोजन और गर्म पेय पदार्थों को बन्द कर देना चाहिए तथा चेहरे की तैलीय परत को दिन में साबुन से कई बार धोकर हटाते रहना चाहिए इससे इनका जोर कम हो जाता है।

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