नाभि से लिंग तथा अंडकोष के बीच के भाग तक पेडू में तेज दर्द, दर्द के साथ कई टूटी धाराओं में मूत्र का निकलना, पथरी की रगड से मूत्राशय में घाव हो जाने पर खून के साथ मिला हुआ मूत्र का आना, मार्ग में पथरी के रहने पर मूत्र का बंद लग जाना या अति तेज दर्द के साथ पेशाब का आना आदि पथरी के लक्षण हैं। दौड़ने, कूदने, भागने, घुड़सवारी करने से दर्द और बढ़ जाता है।
1। वातज पथरी - धूसर वर्ण, कांटों के समान छोटे उभार, तेज दर्द के कारण रोगी कांपता है। दांतों व ओठों को काटता है, बार-बार मूत्रंद्रिय को पकड़ता है, कराहता हुआ पेडू को दबाता है, कठिनाई से बूंद-बूंद कर मूत्र त्याग करता है।
2। पित्तज पथरी - आकार भिलावे की गुठली की तरह, रंग लाल, पीला व काला, पेडू में जलन, पकते हुए फोड़े के समान दर्द तथा गरमाहट रहती है।
3।
कफज पथरी - बड़ी व चिकनी, रंग शहद के समान अथवा श्वेत, पेडू में चुभन, भारीपन तथा शीतल होती है।
4। शुक्रज पथरी - वीर्य का वेग धारण करने से अपने स्थान से चला हुआ वीर्य दोनों अंडकोषों एवं लिंग के बीच में रुक जाता है और सख्त होकर पथरी के रूप में हो जाता है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार यूरिक एसिड, कार्बोनेट, फास्फेट, सोडियम, यूरेट तथा आक्जलेट से पथरियां बनती हैं।
आकृति एवं वर्ण के अनुसार आक्जलेट अश्मरी को वाताश्मरी, यूरिक एसिड, यूरेट तथा कार्बोनेट को पित्ताश्मरी तथा फास्फेट अश्मरी को कफाश्मरी कह सकते हैं।
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