पेशाब की नली में मूत्र रुक जाता है या कठिनाई से धीरे-धीरे मूत्र निकलता है जबकि मूत्राशय में मूत्र भरा रहता है। मूत्र कृच्छ में मूत्र की कृच्छता अधिक होती है किंतु विबंध कम रहता है। मूत्राघात में मूत्र का विबंध अधिक किंतु कृच्छता कम रहती है। यही इन दोनों रोगों में अंतर है।
1। लिंग के छिद्र में कर्पूर या थोड़ा शुद्ध पारद भरकर थोड़ी देर छिद्र दबाकर रखें। इससे मूत्राघात दूर हो जाता है।
2। कुंदरू (बिंबी) की जड़ को कांजी में पीसकर नाभि के नीचे गरम-गरम लेप करें।
3। बकरी की मिंगी, बकरी के मूत्र से भीगी हुई मिट्टी तथा कलमी शोरा को मिलाकर गरम लेप करें।
4।
गरम गो मूत्र में भिगो-भिगोकर कंबल के टुकड़े से सेक करें।
5। पेठे के 50 ग्राम रस में यवक्षार एक ग्राम, शक्कर 10 ग्राम मिलाकर पिलाएं।
6। 20 ग्राम ककड़ी के बीजों के चूर्ण में एक ग्राम सेंधा नमक मिलाकर कांजी के साथ पिलाएं।
7। गोखरू पंचाग के क्वाथ में शक्कर व मधु मिलाकर दें या तृण पंचमूल क्वाथ चीनी मिलाकर पिलाएं।
8। शुद्ध शिलाजतु मधु व वीरतर्वादि क्वाथ के साथ सभी मूत्राघात में मिलाकर दें।
9। धनिया का चूर्ण शक्कर व तृण पंचमूल क्वाथ के साथ लेने पर मूत्राक्षय नष्ट होता है।
10। वरुणादि लौह, श्वेतपर्पटी, यवक्षार के साथ मिलाकर वरुणादि क्वाथ के साथ दें।
11। पाषाणभेद मूल चूर्ण 3-6 ग्राम जल के साथ दो-तीन बार दें।
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