नवजात शिशु के पेट में गैस बनने के कारण, लक्षण और घरेलू इलाज

शिशु मां के स्तनों से दूध पिए या बोतल से, उसके पेट में वायु जाने की बड़ी संभावना रहती है। इसी से पेट में दर्द हो जाता है और कई बार बहुत अधिक भी। इसी को पेट में गैस होना कहते हैं।

शिशु के पेट में गैस बनने के कारण

1। स्तनपान से वायु को भरना :- कई बार ऐसा होता है कि मां की छाती में दूध की कमी होती है। शिशु उपलब्ध दूध पी लेने के बाद भी कुछ देर तक स्तन चूसता रहता है। इससे उसके आमाशय में हवा चली जाती है। यही हवा गैस पैदा कर देती है।

2। बोतल से दूध पीना :- बच्चा जब बोतल से दूध पीता है, तब खाली बोतल की हवा अमाशय में प्रवेश कर पेट में दर्द कर देती है। अतः मां को चाहिए कि जितना अधिक बचाव कर सके, उतना ही ठीक। हर वक्त हवा जाती रहे, दर्द होता रहे, बच्चा रोता रहे, आप इलाज के लिए चिंतित रहें, इससे आपको परेशानी तो होगी। हां, बच्चे के विकास में भी विपरीतात्मक प्रभाव पड़ता है। मां अपने दायित्व को समझते हुए इसे मामूली विकार न समझे बल्कि सचेत रहे।

3।

ठीक प्रकार से दूध ना पीना :- बच्चा बोतल को ठीक प्रकार से नहीं पकड़ता है तो भी उसके पेट में हवा प्रवेश करेगी। यदि मां बच्चे को गोदी में ठीक प्रकार से नहीं लिटाएगी, तब भी स्तन चूसते समय हवा अवश्य अमाशय में चली जाएगी। पेट में हवा का प्रवेश करना आंतों की गति में गड़बड़ी पैदा करता है। यही गैस का मूल कारण है।

4। प्रोटीन तथा चीनी के कारण :- गैस होने का कारण दूध में अधिक प्रोटीन तथा चीनी होती है। यदि दूध में प्रोटीन की मात्रा अधिक हो, तो भी शिशु गैस-ग्रसित हो जाता है। इस उदर-गैस से वह अधिक छटपटाता है। इसलिए दूध पतला हो यानी आयु के अनुसार दूध में पानी की मात्रा डालें। चीनी भी अधिक मत डालें, वरना नन्हें को स्तन के दूध का स्वाद नहीं आएगा तथा गैस का भी कारण बनेगा। मां ध्यान रखकर इससे बचाव करे। कई बार गाढ़ा दूध या कम पानी मिला दूध छेना बनकर परेशानी पैदा करता है।

दूध आमाशय में जाकर फटता तो है ही, इस दूध के फटने से छेना जो बनेगा, वह गाढ़ा होगा। इसके पाचन में अधिक समय लगता है। छेना से गांठें भी बन जाती हैं। आंतों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आंतों के कार्य की क्षमता में विकृति आ जाती है। यही दर्द करता है। गैस पैदा करता है। पेट फूलने लगता है। बच्चा छटपटाता है।

5। छेना को ना पचाना :- यदि दूध पतला हो, आयु के अनुसार हो, दूध और पानी का अनुपात उचित हो, चीनी भी हिसाब की हो, तब शिशु को इस विकार से बचाया जा सकेगा। ध्यान रहे कि हर तरह का दूध आमाशय में फटकर छेना तैयार करता ही है, यही पाचन क्रिया है। मां का दूध भी फटता है, मगर मां के दूध से बना छेना हलका होता है। आसानी से पच जाता है।

गाय का दूध मां के दूध से भारी होता है। भैंस का दूध तो और भी भारी होता है। मां के दूध से तैयार छेना शीघ्र पच जाता है, इसके पश्चात् गाय का और फिर मैंस का। शिशु के लिए भैंस के दूध से तैयार छेना कठिनाई से पचता है, इसलिए शिशुओं को भैंस का दूध नहीं पिलाना चाहिए। भैंस का दूध पिलाना यदि विवशता हो, तो दूध में पानी की मात्रा बढ़ाकर, खूब उबाल कर, ठीक तापमान तक ठंडा करके पिलाएं। तभी पच सकेगा।

6। बकरी का दूध :- यह माना जाता है कि शिशु के लिए मां के दूध के बाद या कुछ-कुछ समरूप बकरी का दूध होता है। यह आसानी से पच सकता है। फिर यह भी सुविधा होती है कि जब पिलाना हो, तभी दूध को दुहें। आप बकरी को चाहे छः बार दुहें तथा केवल जरूरत की मात्रा का दूध ही निकालें। हर बार ताजा ही दूध मिलेगा।

7। शर्करा का प्रभाव :- यदि शिशु के दूध में शर्करा अधिक होगी, तो भी उसके लिए दूध पचाना जरा कठिन हो जाएगा। शर्करा का दूध में अधिक होना वायु पैदा करता है। जब इसका किण्वीकरण होता है, तो वायु पैदा होती है। यह आंतों में गड़बड़ कर देती है। इस गड़बड़ी से भी गैस पैदा हो जाता है। ऐसे में पेट फूलना आम बात है। वायु न निकल पाई तो बच्चा बेचैन रहेगा। वायु निकल जाएगी, तो बच्चा राहत महसूस करेगा। मां ध्यान रखे तभी वह बच्चे को उचित आहार दे सकती है। शर्करा, प्रोटीन की कम मात्रा वाला दूध ही बच्चे को दें।

दूध का तापमान तथा पिलाने की विधि:

यदि आप डिब्बे का दूध या गाय का दूध शिशु को पिला रही हैं, तो इसके तापमान में अधिकता या कमी होना, दूध को धीरे या एकदम पिलाना भी इस दिशा में गड़बड़ का कारण बनकर गैस पैदा कर देता है। यहां की त्रुटि उसे परेशान कर सकती है। दूध यदि ज्यादा गरम होगा या फिर पहले से बोतल में पड़ा और ठंडा होगा, इससे भी गैस होता है।

दूध में प्रोटीन, वसा की अधिकता भी गैस का कारण बनती है। दूध को बोतल में डालकर निप्पल का छेद बड़ा करके यदि पिलाएं, तो शिशु तेजी से पीने लगेगा। इससे भी गैस हो जाता है। बच्चा अपनी भूख से अधिक दूध पीकर भी दर्द होने की शिकायत करता है। पेट पर हाथ रखकर रोता है।

पेट के दर्द में घरेलु इलाज

यदि शिशु गैस के कारण रोता है तो

  • दूध में जल की मात्रा बढ़ा दें।
  • निप्पल को चैक कर, इसका छेद ठीक रखें। निप्पल बदलनी पड़े, तो उसे बदल दें।
  • शिशु को दिया जाने वाला दूध उसके शरीर के तापमान के अनुरूप हो। न अधिक गरम, न ही ठंडा।
  • यदि आप अब तक चूने के पानी का प्रयोग नहीं कर रही थीं, तो अब अवश्य करें। विधि पहले बता चुके हैं।
  • सफेद चीनी मत डालें। लाल शक्कर बेहतर मानी गई है।
  • सफेद चीनी या लाल शक्कर, दोनों की बजाय यदि आप ड्रेक्स्ट्री-माल्टोज दूध में डालें, तो यह सबसे उत्तम होता है।
  • कच्चे फल, फलों की गुठलियां भी बच्चे को न खिलाएं। फलों के रेशे जो सैल्यूलोज के बने होते हैं, ये भी हानिकारक होते हैं। इनसे बच्चे को बचाएं।
  • प्रोटीन की अपाच्य गांठे भी रोग पैदा कर देती हैं।
  • अतः प्रोटीन की मात्रा सीमित ही आमाशय में जाए, तो अच्छा है।
  • पेट को सेंक देना:- नन्हें शिशु, जिनमें गैस से रोते रहने की आदत बन रही हो, उनका पेट सेंकने से भी वायु निकल जाती है। फिर गैस से होने वाली पीड़ा शांत हो जाती है। किसी कपड़े को गरम करके, सहनशील हालत में, बच्चे के पेट पर सेंक दें। वायु निष्कासित हो जाएगी।

दूसरी विधि से घरेलु इलाज:

जिसमें रबड़ की बोतल लें। इसमें गरम पानी डालें। तापमान ठीक हो। इस पर बच्चे को उलटा लिटाए। बोतल का तापमान भले ही सहनशील अवस्था का क्यों न हो, बोतल और शिशु के बीच कपड़ा जरूर हो। नंगा पेट, रबड़ पर न लिटाएं। इस तरीके से भी बच्चे के पेट से वायु निकल जाएगी। बच्चा राहत की सांस लेगा।

तीसरा विधि से घरेलु इलाज:

एक लीटर पानी लें। इसमें आधा चम्मच तारपीन का तेल डालें। अब इस पानी को सेंकने योग्य गरम करें। इससे सेंकने पर वायु निकल जाएगी तथा पीड़ा से राहत मिलेगी। बच्चा रोना बंद कर दे, शांत हो जाए, तो समझे आपका उपाय कारगर सिद्ध हो गया।

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