रक्त प्रदर क्या है रक्त प्रदर के कारण, लक्षण और घरेलु इलाज़

मासिक धर्म के समय, अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव का होना या अधिक समय तक चलता रहना, रक्त प्रदर कहलाता है।

रक्त प्रदर के कारण

रजोनिवृत्ति के बाद वर्षों तक होने वाला रक्तस्राव चिंतनीय होता है। इसमें 1/3 रोगी प्रायः कैंसर से पीड़ित रहती हैं। अन्य कारण - रक्तविकार, ईस्ट्रोजन की अधिक मात्रा देने के बाद उसे बंद कर देना, गर्भाशय में गांठ का होना, योनि की सूजन एवं घाव, गर्भाशय का अपने स्थान से नीचे खिसक जाने से उत्पन्न घाव का होना, आदि कारण हो सकते हैं।

रक्त प्रदर के लक्षण

रक्त के अधिक निकल जाने पर दुर्बलता, चक्कर, मूच्र्छा, प्यास का लगना, जलन का होना, नींद का न आना, शरीर का कांपना, पीलिया आदि विकार उत्पन्न हो जाते हैं।

रोग विज्ञान में इस रोग के अनेक कारण माने गए हैं, यथा-जननांगों के अर्बुद, घाव एवं सूजन, गर्भाशय का अपने स्थान से नीचे खिसक जाना, गर्भपात, प्रसव के समय विकार का होना, पीयूष ग्रंथि, थायरायड आदि अंतःस्रावी के कारण, रक्त के रोग, गर्भाशय के रक्तस्रावी विकार आदि। अधिक भय से, तापक्रम के अचानक परिवर्तन से तथा नाचने आदि शारीरिक श्रम से कभी-कभी योनि से अत्यधिक रक्तस्राव हो जाता है।

रक्त प्रदर में घरेलु इलाज़

1। प्रदरांतक लौह 240 मि.ग्राम चंद्रप्रभा 500 मि.ग्राम पुष्यानुग चूर्ण1 ग्राम --1x2 प्रातः सायं कुश की जड़ के क्वाथ से दें।

2। यवानी षाडव - 4 ग्राम,--2 मात्रा

3। अशोकारिष्ट - 20 मि.लि.\ 2 मात्रा भोजनोत्तर समभाग जल से औषधि न। 2 खाकर

4। प्रदररिपु रस - 240 मि.ग्राम, बोलपर्पटी - 240 मि.ग्राम, चंदनादि चूर्ण - 1 ग्राम 1x2 मधु एवं चावलों के धोवन से दें।

5। अशोक की छाल का क्षीरपाक प्रातः एक बार दें।

6। रक्तपित्त कुल कंडन रस 240 मि.ग्राम, तृणकांतमणि पिष्टि - 120 मि.ग्राम 1X2 शहद के साथ दें।

7। कामदुधा रस 120 मि.ग्राम, चंद्रकला रस 120 मि.ग्राम शहद के साथ दो बार दें।

8। स्वर्ण माक्षिक भस्म 120 मि.ग्राम शहद के साथ दो बार दें।

9। चंद्राशुरस 120 मि.ग्राम, सर्वांगसुंदर रस 120 मि.ग्राम शहद के साथ दो बार दें।

10। उत्पलादि चूर्ण, प्रदत्तक चूर्ण, पुष्यानुग चूर्ण 1 ग्राम चावल के धोवन से दो बार दें।

11। सुपारी पाक, मुसली पाक का प्रयोग दूध से दो बार करें।

12। उशीरासव 20 मि.लि। समभाग जल से भोजन के बाद दें।

13। बब्बूलाद्यारिष्ट 20 मि.लि। समभाग जल से दो बार दें।

14। पत्रांगासव 20 मि.लि। समभाग जल से दो बार दें।

15। अशोकारिष्ट 20 मि.लि। समभाग जल से दो बार दें।

16। लोध्रासव 20 मि.लि। समभाग जले से दो बार दें।

17। एम 2 टोन टेबलेट तथा एम2टोन सिरप दो बार जल से दें।

18। न्योग्राधाद्य घृत का प्रयोग दूध से करें।

19। शुद्ध गैरिक 250 - 500 मि.ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार सेवन करें।

20। लोध्र चूर्ण 1-3 ग्राम वट की छाल के क्वाथ के साथ दो बार सेवन करें।

21। मोचरस चूर्ण 2 ग्राम, प्रवाल भस्म 2 ग्राम चावल के धोवन के साथ दो बार दें।

22। मुलहठी चूर्ण व शर्करा सम भाग मिलाकर 3-4 ग्राम चावल के धोवन के साथ दें।

23। शिलाजत्वादि वटी 1-2 वटी दूध के साथ दो बार दें।

24। प्रदरांतक रस 120-250 मि.ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार दें।

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