विश्वाची/अवबाहुक क्या है | विश्वाची/अवबाहुक में चिकित्सा
विश्वाची
वायु कुपित होकर बाहु से अंगुलियों के पीछे के भाग की मांसपेशियों तथा कंड़राओं को पीड़ित करती है जिससे बाहु तथा अंगुलियों की क्रिया का नाश हो जाता है। इस को विश्वाची कहते हैं।
अवबाहुक
कुपित वायु कंधे में ठहर कर वहां की शिराओं को सिकोड़कर या नष्ट करके अवबाहुक रोग को पैदा करती है। इस रोग में कंधे व भुजाओं में दर्द होता है। उन्हें ऊपर उठाने या काम करने की शक्ति नहीं रहती।
चिकित्सा
- विश्वाची में सामिष महामाष तेल की मालिश करके स्वेदन करें।
- रुई लगाकर कुशा के सहारे हाथ सीधा कर विश्राम की अवस्था में रखें।
- सामिष महामाष तेल का पान भी कराएं।
- अवबाहक में मांस के सूखने की दशा में सैंधवादि तेल या महाविषगर्भ तेल की मालिश व स्वेदन करें।
- कोलादि लेप का प्रयोग तथा उसकी पोटली से सेंक भी लाभकर है।
- भोजन के बाद माष बला दशमल के क्वाथ में घी या तिल तेल मिलाकर नस्य दें या नाक से पिलाने पर विश्वाची एवं अवबाहक में लाभ होता है।
- वात कुलांतक 120 मि.ग्राम एरंड मूल क्वार्थ के साथ दो बार दें।
- वात विध्वंसन रस 2-4 वटी दिन में दो बार गरम जल के साथ दें।
- रसराज रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार एरंड मूल-क्वाथ से दें।
- पंचामृत लौह गुगुल 500 मि.ग्राम दिन में दो बार एरंड मूल क्वाथ से दें।
- वृहत योगराज गुगुल 2 गोली दिन में दो बार उष्ण जल के साथ दें।
- एरंड पाक 10 ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
- दशमूलारिष्ट 30 मि.लि. समभाग जल मिलाकर दो बार दें।
- लहसुन क्षीर पाक प्रातः सायं दो बार दें।
- दशमूल क्वाथ, महारास्नादि क्वाथ, रास्नासप्तक क्वाथ 20 मि.ली. दो बार दें।
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