प्रेग्नेंसी के दौरान स्वस्थ आहार आपके और आने वाले शिशु के लिए महत्त्वपूर्ण है। एक गर्भवती मां को उसकी आखिरी तिमाही में प्रतिदिन केवल 200 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है। इसलिए स्वस्थ बच्चे के लिए स्वस्थ मां का होना आवश्यक है। गर्भ के समय मां को अधिक पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती है।
1। फीट्स (भ्रूण) की वृद्धि।
2। मां में परिवर्तन।
3। बच्चे का वजन तथा स्वास्थ्य।
लगभग तीन महीने गर्भ के पश्चात् फीट्स यानी भ्रूण बहुत तीव्र गति से बढ़ता है और 9 महीने तक तीन-साढ़े तीन किलो का हो जाता है। विशेषज्ञों के आधार पर नवजात शिशु जिसका वजन 7 पाउन्ड होता है, विटामिन व कई अन्य तत्वों के अलावा 500 ग्राम प्रोटीन 24 ग्राम कैलशियम, 14 ग्राम फास्फोरस तथा 0.4 ग्राम लोहा गर्भावस्था में अपनी माता के रक्त से शोषित करता है। शिशु में यह तत्व तभी आ सकते हैं जबकि गर्भवती स्त्री दैनिक भोजन में अपनी आवश्यकता के अतिरिक्त गर्भस्थ शिशु की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखती है।
अतः सभी तत्वों की वृद्धि होनी चाहिए। भ्रूण का विकास मुख्यतः गर्भावस्था के अन्तिम तीन महीनों (7 वें, 8 वें, तथा 9 वें) में होता है इन दिनों में भ्रूण अपने कुल वजन का तीन चौथाई भाग प्राप्त करता है; अत: गर्भवती स्त्री के लिए पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता इन दिनों बहुत बढ़ जाती है। इस तीव्र वृद्धि के लिए फीट्स को पोषण तत्व मां से मिलने चाहिए। अत: मां का आहार ऐसे में बच्चे के लिए बहुत महत्त्व रखता है।
गर्भ के समय मां की अपनी आवश्यकता भी कई कारणों से बढ़ जाती है। मां के कई अंगों में वृद्धि होती है, जिससे उसकी आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं। यद्यपि पहले तीन महीने तक बच्चे या मां की आवश्यकताएं बढ़ती नहीं हैं। परन्तु इस समय कै आदि होने के कारण बहुत से आवश्यक पदार्थ शरीर से निकल जाते हैं या मां अच्छी प्रकार खा नहीं सकती। इसलिए ऐसे समय में स्त्रियों को बहुत ध्यान रखना चाहिए।
मां के आहार का बच्चे के भार और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। स्वस्थ माताओं के बच्चों का भार अधिक पाया जाता है और कमजोर माताओं के बच्चे कमजोर पाये जाते हैं। यदि ये कमजोर बच्चे जिंदा रह भी जाते हैं तो कुछ समय पश्चात् सूखा रोग, खून की कमी, रिकेट्स आदि से ग्रस्त हो जाते हैं। मां के आहार का उसके अपने स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। यदि गर्भ के दिनों में स्त्री भोजन ठीक से नहीं लेती है तो सदा के लिए उसका स्वास्थ्य कमजोर होने की सम्भावना रहती है।
ऐसी माताओं को बच्चा जनने में भी कठिनाई होती है। प्रसव के समय कष्ट होता है। उनका बीच में गर्भपात भी हो सकता है। भारत में नवजात शिशुओं की मरण संख्या बहुत अधिक है और यह मुख्यत: माताओं के खराब स्वास्थ्य और पोषण के कारण है।
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