अदरक को संस्कृत में 'आर्द्रक' ' श्रृंगवेर', 'कटुभद्र' आदि नामों से पुकारा जाता है। अदरक की खेती की जाती है और इसे पूरे भारत में बोया जाता है। उष्ण प्रदेश की जलीय एवं बालू प्रधान भूमि में इसकी अधिक पैदावार होती है। इसका बीज नहीं होता, बल्कि छोटी छोटी अदरक की गाँठों को आलू की भाँति भूमि में बोया जाता है। इसकी जड़ों में जो गाँठदार कंद होता है, उसे ही अदरक कहा जाता है।
यह दो प्रकार की होती है-एक रेशे वाली और दूसरी बिना रेशे वाली। बिना रेशेवाली अदरक कम मात्रा में होती है, जबकि उसे ही उत्तम माना जाता है। यह सब्जी बेचने वालों के यहाँ आम मिल जाती है। इसे सुखा लेने के बाद इसका नाम ‘सौंठ' हो जाता है। इसका छिलका उतारकर इसे सुखा लिया जाता है।
आयुर्वेद में इसका रस शीतल, मधुर और चरपरा होता है। हृदय और गले के लिए इसका रस अत्यंत हितकर होता है। यह वीर्य को बढ़ाता है, पेट की पाचन-शक्ति को दुरूस्त रखता है। कफ, वात, खाँसी, वमन, गठिया दर्द, कब्ज, सूजन और श्वाँस आदि में इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी है।
आयुर्वेद की दृष्टि से सूखी हुई अदरक अर्थात् 'सौंठ' में हजारों गुण हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने वाली है और शरीर के समस्त स्नायुतंत्र को व्यवस्थित रखती है। पेट के रोगों में यह रामबाण है।
इस में अदरक का प्रयोग अत्यंत गुणकारी है। एक किलो अदरक को पानी में उबालें और उसे छीलकर सिल पर या मिक्सी में पीस लें। उसमें हल्दी 100 ग्राम मिलाएँ। हल्दी को घी में मिलाकर और गर्म करके मिलाना चाहिए। फिर उसमें एक साल पुराना गुड़ एक किलो मिला दें और उसे किसी काँच के या प्लास्टिक के बर्तन में भरकर रख लें।
तेल और खटाई का परहेज करते हुए इस चटनी के दो-दो चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। इससे कैसी भी खाँसी रोगी दूर हो जाएगी और मन्दाग्नि की शिकायत होकर भूख भी खुलकर लगेगी।
खाँसी न रुकने पर अदरक के रस को शहद या पान के रस के साथ लेना चाहिए।
10 ग्राम अदरक को कूटकर पीस लें और उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक और भुना हुआ जीरा मिला लें। इस खुराक को प्रतिदिन एक सप्ताह तक भोजन के बाद शीतल जल से सेवन करना चाहिए। इससे पुराने-से पुराने ‘दस्त', 'पेचिस’ और ‘आँव खुन' आदि में बड़ा आराम मिलता है।
'पेट की सफाई' हो जाती है और 'पाचन क्रिया' बढ़ जाती है। स्वाद ठीक हो जाता है और जी मिचलाने की शिकायत भी दूर हो जाती है। पेट दर्द मे भी आराम मिलता है।
पेचिस की शिकायत यदि बहुत अधिक हो तो अरण्ड के तेल के साथ अदरक का रस एक चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से लेना चाहिए। जल्द आराम आता है।
जुकाम होने पर अदरक को पानी में उबालकर उसका काढ़ा बना लें और दिन में तीन-चार बार एक-एक चम्मच करके सेवन करें। बराबर प्रयोग करने से शीघ्र आराम आता है।
अदरक के एक चम्मच रस में पुदीने का आधा चम्मच रस मिलाएँ और दिन में खाना खाने के बाद इसका सेवन कम-से कम एक सप्ताह तक करें। शर्तिया आराम मिलेगा।
अदरक के एक चम्मच रस में तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस मिला लें और पी जाएँ। शरीर में गर्माहट आ जाएगी और सर्दी की कंपकपी दूर हो जाएगी।
इस रोग में वैद्याचार्य द्वारा दी गई औषधि के साथ अदरक का सेवन भी करना चाहिए।
अदरक को पीसकर एक चम्मच रस में थोड़ा सा सरसों का तेल मिला लें और जहाँ दर्द हो रहा हो या जहाँ गैस अटकी महसूस हो रही हो, वहाँ उस तेल की मालिश करने से वायु विकार दूर हो जाता है और दर्द में आराम मिलता है।
कान के दर्द में अदरक के रस की दो-तीन बूंदें कान में डालें। तत्काल आराम मिलेगा।
10 ग्राम अदरक का रस, 10 ग्राम सफेद प्याज का रस, शहद 10 ग्राम, घी देसी 5 ग्राम लेकर इन्हें मिला लें और प्रतिदिन एक-डेढ़ महीने तक सुबह-शाम इसका सेवन करें। इससे यौन शक्ति में वृद्धि होती है।
अदरक की लुगदी में थोड़ा-सा सेंदा नमक मिलाकर उसकी चटनी सी बना लें और उसे दिन में दो तीन बार चाट लें या मुँह में डालकर चूस लें। कब्ज और रुकी हुई वायु दूर हो जाएगी।
सौंठ (सूखी अदरक) बड़ी इलायची, दाल चीनी समभाग लेकर चूर्ण बना लें और खाना खाने के बाद चुटकी भर चूर्ण पानी के साथ फांक लें। कब्ज दूर होगा और भूख भी खुलकर लगेगी।
सौंठ, काली मिर्च और छोटी पिप्पली को समभाग में लेकर चूर्ण बना लें। आयुर्वेद में इसे त्रिकुटा योग कहते हैं। सुबह-शाम पानी के साथ एक चम्मच चूर्ण की फंकी लेने से कैसा भी कब्ज हो, दूर हो जाता है।
सौंठ को पानी में पीसकर उसका लेप माथे पर करें। इससे आधा सीसी का दर्द दूर हो जाता है।
सौंठ का काढ़ा बनाकर उसके कुल्ले करने से दाँतों का दर्द दूर हो जाता है।
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