यह वर्षा ऋतु में उगने वाला एक पौधा है। इसकी शाखाएँ रोए दार और गोल पीले रंग के फूल। यह एक शक्ति वर्द्धक जड़ी बूटी है। संस्कृत में इसे आकारकरम आकल्लम कहते हैं। इसकी ठंडल पोली होती है और जड़े अधिक लंबी नहीं होतीं। इसकी जड़ों में ‘इन्यूलिन' तत्व पाया जाता है। आयुर्वेदिक दवाओं में इसकी जड़ बहुत काम आती है।
इसका स्वाद तिक्त, कसैला तीक्ष्ण होता है। वात, कफ और पित्त को दूर करने में इसका प्रयोग किया जाता है। यौन-शक्ति को बढ़ाती है। दर्द निवारक है। वीर्यवर्द्धक और सतम्भन में अद्भुत लाभ पहुँचाती है। अकरकरा औषधी किन किन रोगो मे फायदेमंद है आइये जानते है जैसे-
अकरकरा की छोटी सूखी डण्डी का टुकड़ा मुँह में रखकर चूसने से हकलाना बंद हो जाता है। यह क्रिया एक माह तक करे।
अकरकरा डण्डी को महुए के तेल में भिगोकर रख दो रात भर भिगोने के उपरांत उस तेल की मालिश लकवाग्रस्त अंग पर करने से लकवा ठीक हो जाता है।
इसकी लकड़ी का चूर्ण बना लें और उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिला लें। उसे दंत-मंजन की तरह करें। दाँत का दर्द समाप्त हो जाएगा और दाँत चमकीले हो जाएँगे।
अकरकरा की स्तम्भन की बूटी बाजार में मिलती है। और इसे घर पर भी बनाया जा सकता है।
सामग्री- अकरकरा 4 ग्रा., अफीम 6 ग्रा., केसर 8 ग्रा., लौंग 12 ग्रा., जायफल 12 ग्रा., सिंगरफ 25 ग्रा। (शुद्ध)
विधि- इन सभी को कूट-पीसकर कपडे से छान लें और इसमें आवश्यकतानुसार शहद मिलाकर इसकी चने के बराबर गोलियाँ बना लें । सम्भोग एक घंटे पूर्व गर्म दूध से एक गोली खा ले। रतिक्रिया में पूरा आनन्द आएगा।
परहेज- खटाई का प्रयोग खाने में न करें।
अकरकरा, कबाब चीनी, सौंठ, हीरा हींग को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें और छान लें। इस मिश्रण में शहद मिलाकर गोलियाँ बना लें। रतिक्रिया से पहले एक गोली मुँह में रख लें। कुछ देर बाद उसे मुँह से निकालकर अपने थूक में उसे पीस लें तथा उसका लेप अपनी इन्द्री पर करके सूख जाने दें। सूखने के उपरांत ही रतिक्रिया करें । उस समय जो आनन्द आपको मिलेगा, उसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।।
अकरकरा की लकड़ी के टुकड़े को दाँतों से दबाकर कुछ देर पकड़े रहें। यदि मुँह में दाँत न हों तो अकरकरा की जड़ को पीसकर चूर्ण बना लें । उसमें शहद मिलाकर गोली बना ले। सिर दर्द होने पर उसे मुंह में रखकर चूसने पर सिर दर्द शीघ्र ही गायब हो जाएगा। इसकी जड़ को पीसकर गर्म करके माथे पर लेप करने से भी सिर दर्द खत्म हो जाता है।
अकरकरा की जड़ को बारीक पीसकर उसमें शहद मिलाकर लुगदी-सी बना लें और मिर्गी का दौरा पड़ने पर रोगी को सुघाएँ। मिर्गी का प्रभाव से दूर रहेगा।
अकरकरा की जड़ 100 ग्राम लेकर आधा लीटर पानी में उबाले और उसका काढा बना लें। उस काढ़े को सुबह-शाम दस पन्द्रह दिन तक पीने से मासिक धर्म की अनियमितता समाप्त हो जाती है।
अकरकरा की लकड़ी का 100 ग्राम काढ़ा सुबह-शाम पीने से श्वांस संचालन ठीक हो जाता है और पुरानी से पुरानी खाँसी ठीक हो जाती है। एक सप्ताह तक प्रयोग करें।
अकरकरा के चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा रात के समय लेने पर, सुबह के समय कफ दस्त के रास्ते निकल जाता है।
अकरकरा की जड़ और छोटी पिप्पली को बराबर-बराबर लेकर पीसकर और कपडे से छान करके चूर्ण बना लें। खाना खाने के बाद प्रतिदिन सुबह-शाम आधा चम्मच चूर्ण पानी के साथ सेवन करें। इससे पेट के समस्त रोगों में लाभ होता है। मन्दाग्नि, अफारा, अपच, वायु प्रकोप आदि में बहुत लाभ होता है।
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(और पढे- मासिक धर्म(माहवारी) के बारे में )
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