जिस रोग में जोड़ों में अचानक तेज दर्द और सूजन होती है। साधारणतः यह सूजन अंगूठे से शुरू होकर अन्य जोड़ों में फैल जाती है। उसे वातरक्त या गाऊट कहते हैं।
शरीर के जोड़ों में तेज दर्द तथा सूजन जो हाथ एवं पैरों के अंगूठे से शुरू होकर अन्य जोडों में चूहे के विष की तरह फैलता है। छूने पर तेज दर्द, विकारयुक्त जोड़ों में जलने के समान जलन, सख्तपन, छूने पर तेज दर्द, विकारयुक्त जोड़ों की त्वचा का रंग बदल जाए आदि वातरक्त के मुख्य लक्षण हैं।
बाह्य कर्ण की तरुणास्थियों में सोडियम बाई युरेट जमने से गांठ का मिलना इसका खास लक्षण है।
1। वात रक्तांतक रस 500 मि.ग्राम कैशोरगुगल 1 ग्राम दिन में दो बार गुडुची रस से दें।
2। अमृतादि गुगुल 2-4 वटी उष्ण जल से दिन में तीन बार सेवन कराएं।
3। पुनर्नवादि गुगुल 2-4 वटी दिन में तीन बार प्रयोग करें।
4। नवकार्षिक क्वाथ 15-30 मि.लि। दिन में तीन बार प्रयोग करें।
5। निंबादि चूर्ण 3 ग्राम एक बार गरम जल से दें।
6। सारिवाद्यासव 30 मि.लि। ग्राम दिन में दो बार भोजन के बाद जल मिलाकर दें।
7। पिंड तेल मालिश के लिए प्रयोग करें।
8। भुने काले तिल का दुध में निर्मित लेप पीड़ित जोड़ों पर लगाएं।
9। केवल मात्र शुद्ध गुगुल 1.5 ग्राम दिन में तीन बार गिलोय के काढ़े के साथ देने में वातरक्त दूर किया जा सकता है।
10। वातरक्त में बात की चिंता छोड़कर पहले रक्त को शुद्ध करने का प्रयत्न करना चाहिए।
11। पुराना, गेहूं जौ, चावल, मूंग, मसूर, करेला, परवल मक्खन आदि दें।
12। उड़द, मटर, कुल्थी, सेम, दही, भारी चीजें हानिकर हैं।
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