अवश्वगन्धा के पौधे समस्त भारत के शुष्क प्रदेशों और हिमालय की श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं। यह एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है। इसका पौधा तीन-चार फीट की ऊँचाई तक का होता है। यह पौधा सरलता से प्राप्त हो जाता है। इसके पत्ते लम्बे और चौड़े होते हैं। इस पर गुच्छेदार फूल हरे और बैंगनी रंग की आभा वाले होते हैं।
इस पर मटर के आकार के फल लगते हैं, जो लाल रंग के होते हैं और ऊपर से कुछ खुले हुए से लगते हैं। इसकी जड़ मूली की भाँति पतली होती है। संस्कृत में इस पौधे को ‘अश्वगन्धा' या वराहकर्णी कहते हैं। परन्तु इसका अश्वगन्धा नाम ही अधिक प्रचलित है।
इस पौधे की पहचान यह है कि इसे मसलने पर अश्व के मूत्र की सी गंध आती है। इसकी ताजी जड़ों में यह गंध अधिक होती है। इसकी तासीर गर्म है। स्वाद में यह तीखा होता है। धातु (वीर्य)की दुर्बलता को नष्ट करके उसे पुष्ट करने में इसका महत्वपूर्ण उपयोग है। यह स्तम्भनकारी है और यौन-शक्ति को बढ़ाने वाला है। बुढ़ापा, कफ, श्वाँस कष्ट, टीबी रोग, आमवातनाशक और कृमि रोग में इसका उपयोग किया जाता है।
असगन्ध की छाल का चूर्ण और विधारा के चूर्ण को समभाग में लेकर या एक चम्मच सुबह-शाम चालीस दिन तक गाय के गर्म दूध के साथ लेने से बूढा व्यक्ति भी जवानी अनुभव करने लगता है। उसकी यौन-शक्ति जो बढ़ जाती है।
इसके अतिरिक्त असगन्ध के चूर्ण में घी (देसी), शहद और मिश्री मिलाकर एक चम्मच प्रतिदिन दूध के साथ लेने पर एक माह में ही बूढ़ा व्यक्ति जवानों जैसा व्यवहार करने लगता है।
'अश्वगन्धारिष्ट' बैध लोग इस नाम का एक आसव बताकर बाजार में बेचते हैं। यह आसव यौन-शक्ति को बढ़ाने वाला होता है। साथ ही स्नायु-दुर्बलता को दूर करता है। इसका सेवन एक माह तक अवश्य करना चाहिए।
असगन्ध का चूर्ण चमेली के तेल में मिलाकर लिंग पर मालिश करने से लिंग का ढीलापन शीघ्र दूर हो जाता है।
असगन्ध के २ ग्राम चुर्ण में 10 ग्राम ताजा मक्खन और अनुपात से मिश्री मिलाकर नियमित रूप से पन्द्रह दिन खाना चाहिए। इससे वीर्य की दुर्बलता नष्ट होती है और वीर्यपुष्ट तथा गाढ़ा हो जाता है।
शुगर, डायबिटीज- सभी प्रकार के धातु रोगों में नीचे दिया नुस्खा अत्यंत कारगर है।
विधि- हरी असगन्ध 500 ग्राम लेकर उसे कूट-पीस लें और छान लें। फिर उसे किसी मिट्टी के बर्तन में डालकर साफ जल से भर दें तथा ढककर रख दें। चार-पाँच घंटे बाद पानी को निथारकर निकाल दें। नीचे तली में जो गाद-सी बच जाए उसे सुखा लें और उसका चूर्ण बना लें। आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ लें। दस-पन्द्रह दिन के बाद ही लगने लगेगा कि सभी प्रकार के धातु रोग शुगर (डायबिटीज), प्रमेह और वातरोग आदि नष्ट हो गये हैं। इसका नियमित सेवन करना अति लाभदायक है।
जिन स्त्रियों को संतान नहीं होती, वे माँ न बन पाने के कारण बहुत दु:खी रहती हैं। उनके लिए यह रामबाण औषधि है। असगन्ध की छाल, पत्ते, फल और जड़ को कूट पीटकर भगौने में डाल दें और कम से कम एक लीटर पानी डालकर काढ़ा पकाएँ। जब पानी चौथाई रह जाए, तब उसे उतारकर ठंडा होने दें। यदि ऋतुमती स्त्री (मासिक धर्म के समय) एक सप्ताह तक इसका थोड़ा-थोड़ा सेवन दिन में दो-बार करे तो स्त्री संतान उत्पन्न करने के योग्य बन जाती है और उसका मासिक धर्म भी कष्टहीन हो जाता है।
असगन्ध के पूरे पौधे को जलाकर उसकी भस्म में थोड़ा पानी मिलाकर उसे पका लें। जब पानी आधा रह जाए, तब उसे कपड़े से छान ले। प्रतिदिन इस रस को दो-दो चम्मच सुबह-शाम सेवन करें। इससे पेट के रोगों से निजात मिलती है। ‘श्वाँसतन्त्र' नियमित हो जाता है और 'खाँसी' ठीक हो जाती है।
एक पाव (250 ग्रा.) कुटी-छनी असन्ध में 125 ग्राम पिसी सौंठ मिलाएँ। एक साल पुराने गुड़ को पकाकर उसकी चाशनी में उस चूर्ण को मिला दें। आधा चम्मच गर्म दूध या जल के साथ प्रतिदिन सेवन करने से स्त्रियों का प्रसूत रोग', 'वात रोग’ और ‘कफ दोष' नष्ट हो जाते हैं।
असगन्ध के पूरे पौधे को फल, फूल और जड़ सहित जलाकर भस्म बना लें और आड़े से छान लें। इस चूर्ण को आधा चम्मच पानी से लेने पर 'कंठरोग' ‘कफरोग', 'श्वाँस रोग’, ‘खाँसी' और 'पेट' के अनेक रोगों का नाश हो जाता है
असगन्ध के 2ग्राम चूर्ण का प्रयोग असगन्ध के काढ़े के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम करने से 'टीबी रोग' में लाभ होता है। इसके अतिरिक्त यदि असगंध की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण में बड़ी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण, 5 ग्राम घी और 10 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन सेवन किया जाये तो ' क्षय रोग' में बड़ा आराम मिलता है।
5 ग्राम अश्वगंध के चूर्ण में 5 ग्राम मिश्री मिलाकर चाय के चम्मच के बराबर गाय के दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से स्त्रियों के रक्तप्रदर और श्वेतप्रदर, दोनों में लाभ होता है।
पेट में अक्सर कीड़े हो जाते हैं। उन्हें दूर करने के लिए असगन्ध के 5 ग्राम चूर्ण में गिलोय का 5 ग्राम चूर्ण मिला लें और उसे रात्रि के समय शहद अथवा गर्म दूध के साथ सेवन करें। प्रात: मल के साथ पेट के कीड़े बाहर निकल जाएँगे।
असगन्ध का चूर्ण और चोपचीनी 4-4 ग्राम ले लें और उसे नियमित रूप से शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त स्वच्छ हो जाता है। इसे कम-से-कम 15 दिन तक करें।
असगन्ध के पचांग (जड़, छाल, पत्ते, पुष्प और फल) को कुट पीसकर चूर्ण बना लें और उसे कपड़े से छान लें। उस चूर्ण का एक पूरा चम्मच जल से सेवन करें। दिन में दो बार अवश्य लें। इससे गठिया रोग में आराम मिलता है।
एक अन्य उपचार से असगन्ध के 30 ग्राम ताजा पत्ते लेकर 250 ग्राम पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर पी लें। कम-से-कम एक सप्ताह तक इसका सेवन अवश्य करें। गठिया रोग से दु:खी व्यक्ति को इससे बहुत आराम मिलता है।
असगन्ध चूर्ण 10 ग्राम, बेहड़े का चूर्ण १० ग्राम। दोनों को मिलाकर गुण के साथ सेवन करने से हृदय रोग में बड़ा आराम मिलता है। हृदय की जकड़न और पीड़ा नष्ट हो जाती है और हृदयघात का भय नहीं रहता है।
और पढे- कफ के लक्षण, कारण और निकालने के उपाय
और पढे- टी.बी।
रोग क्या है - टी.बी। रोग के कारण, लक्षण और घरेलू उपाए
पूछें गए सवाल