बच्चों के लिए अमृत है माँ का दूध |

माता-पिता तथा अन्य अभिभावक इस बात को ठीक प्रकार से जान लें कि ऊपर का दूध अर्थात् गाय-भैंस का दूध या डिब्बों का दूध, इसे उबालने में प्रयोग होने वाले बरतन, चीनी, पानी, पाऊडर, मिल्क आदि रोग के जीवाणुओं से युक्त हो सकते हैं, जो बच्चे के शरीर में रोग पैदा कर सकते हैं। दूध, बोतल, निप्पल, पानी को किस प्रकार, किसने छुआ या किस प्रकार दूध बनाया ? कौन से बरतन प्रयोग में आए ? वायुमंडल में विद्यमान रोगाणुओं ने उसे दूषित तो नहीं कर दिया ? बोतल व निप्पल को ठीक प्रकार से उबाला या नहीं ? ये सब कारक हैं, जो रोग पैदा करने के कारण बन सकते हैं।

मां के दूध की यह विशेषता होती है कि वह उसके स्तन से निकलकर बच्चे के मुंह में सीधे पहुंच जाता है। इसमें कोई अन्य हाथ नहीं लगता। कोई बरतन, चम्मच, बोतल संपर्क में नहीं आते, अतः यदि मां बीमार नहीं है, तो मां का दूध हर प्रकार के उन जीवाणुओं से मुक्त होता है, जो रोग पैदा कर सकते हैं। यही सबसे बड़ा अंतर है ऊपरी दूध तथा मां के दूध में।

इसलिए माताओं को चाहिए कि अपने नन्हे-मुन्ने के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए अपना दूध अपने लाड़ले को पिलाएं। अपनी फिगर या अपने स्तनों के आकार की चिंता पूर्णतः त्याग दें। मान लो ऊपर के दूध से बच्चे को कोई रोग हो गया, तो क्या आप को चैन मिलेगा ? आप आराम से बैठ सकेंगे ? आप हाथ पर हाथ रखकर बच्चे को जीवन-मृत्यु के मध्य झूलने देंगे ? कभी नहीं।

अतः अपने खान-पान, रहन-सहन में परिवर्तन कर बच्चे के दूध की आवश्यकता अपने ही शरीर से पूरी करें। बड़े होकर जब बच्चे लड़ते-झगड़ते हैं, तो एक लड़का दूसरे लड़के को ललकार कर कह देता है-‘आगे आ...देखें तूने अपनी मां का कितना दूध पिया है।...मैं भी तेरे से कम नहीं। निश्चित रूप से मां का दूध ताकत का प्रतीक है। इसका अर्थ यही हुआ कि जो ज्यादा ताकतवर निकलेगा, उसने अपनी मां का दूध अधिक पीया होगा, दूसरे ने कम।

इससे यही परिणाम निकलता है कि मां का दूध अति शुद्ध होता है। इसमें कोई मिलावट नहीं होती। इसमें रोग के कारक भी मौजूद नहीं होते। यह जीवाणु-मुक्त होता है। यह खूब बलदायक होता है तथा बुद्धिदायक भी। जिसने जितना ज्यादा पिया होगा, उसका शरीर तथा मस्तिष्क उतना ही ऊंचा होगा, बलिष्ठ होगा, रोग रहित होगा। अतः मां का दूध हर प्रकार से उत्तम है।

माँ के दूध की खास बातें

जब शिशु पैदा होता है, तो इसकी पाचन शक्ति पूरी तरह अविकसित होती है। इससे पूर्व तो उसने शरीर में रहकर पाचन क्रिया का प्रयोग ही नहीं किया होता। जो कुछ मां के शरीर से प्राप्त करता है, सीधे शरीर में पचता रहता है, शरीर का अंग बनता रहता है। अब उसे ऊपर का दूध पीना है, तो इसे पचाना भी है। तभी यह शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। इसलिए भी मां का दूध ही पिलाना जरूरी है, जो सुगमता से पच सकता है।

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