बच्चो में दस्त होने के कारण और घरेलु इलाज के नुस्के

छोटे शिशुओं को दस्त लगने की समस्या अकसर बनी रहती है। यह बहुत ही परेशानी वाला विकार है। इससे शिशु दिनों-दिन दुर्बल होने लगता है। सूखता जाता है। पहले दिन में कई बार (चार-पांच बार) टट्टी आती है। यह गिनती बढ़ती जाती है। साथ ही टट्टियां पतली होने लगती हैं। इनकी संख्या भी 12-15 प्रतिदिन हो जाती है। दस्त पीले न रहकर हरे रंग के होने लगते हैं। पहले तो दस्तों से बदबू नहीं आती, मगर धीरे-धीरे दुर्गन्ध भी आने लगती है।

बच्चो में दस्त होने के कारण:

जिन बच्चों को मां का दूध न मिलकर ऊपर का दूध मिलता है, उन्हें दस्तों की शिकायत अधिक होती है। यदि शिशु को ठंड लग जाए, तो भी दस्त आने लगते हैं। कई बार दूध में अधिक शर्करा हो, तो भी यह रोग लग जाता है। संक्रमण होना भी दस्तों का कारण होता है। ऊपरी दूध कई बर्तनों में से होता हुआ, कई हाथों के लगने का कारण बन जाता है। इन हाथों के कारण बर्तन, गिलास, चम्मच, बोतल, निप्पल किसी पर भी संक्रमण का होना संभव है।

यह ऊपर के दूध के साथ ही हो सकता है। मां का दूध तो स्तन से सीधा बच्चे के मुंह में जाता है, इसलिए संक्रमण की कोई गुंजाइश नहीं रहती। हां, मां जब दूध पिलाना चाहे या पिला चुके, दोनों बार स्तनमुख भली प्रकार धो देना जरूरी है। इससे संक्रमण का बिलकुल भी डर नहीं रहेगा। ऊपरी दूध अपने साथ संक्रमण लेकर आंतों में पहुंच जाता है और रोग उत्पन्न कर देता है।

बच्चो में दस्त होने पर घरेलु इलाज के नुस्के:-

1। माता अपना आहार बदले:- यदि शिशु अपनी मां का दूध पीता है और वह दस्तों में घिर जाए, तब न तो वह मां का दूध उतना पिएगा, न ही पिलाना चाहिए। यदि पहले 24 घंटों में 8 बार दूध पीता है, तो छ: बार पिलाना चाहिए। साथ ही मां अधिक पानी पीने लगे। यदि वह अधिक पानी पिएगी, तो बच्चे की दूध पीने पर भी प्यास बुझती रहेगी। उसका मुंह नहीं सूखेगा। मां को चाहिए कि वह घी, तेल से बनी वस्तुएं कम खाए, इससे शिशु का पेट खराब होने से बचाया जा सकता है।

2। पानी की कमी:- यदि शिशु को अधिक दस्त लगने से पानी की कमी हो गई है या ऐसा डर है, तब एक तो उसे चम्मच के साथ दूध पिलाते रहें। दूसरे, उसको मिलने वाले ऊपर के दूध में पानी की मात्रा बढ़ा दें। दूध थोड़ा पतला कर दें। इस प्रकार उसे पानी अधिक मिलेगा, जो उसके शरीर के लिए उत्तम होगा। यदि दूध बनाते समय पानी की मात्रा दो गुनी कर दें, तो बहुत अच्छा हैं।

3। उपचार की आवश्यकता:-यदि शिशु को दस्त लग जाएं और बढ़ते जाएं, पीला रंग छोड़कर हरा रंग धारण करने लगे, तो मां को चाहिए कि शीघ्र चिकित्सक से संपर्क करें तथा शिशु का पूरा इलाज करवाएं। पानी की तो कमी होने ही न दें। कहने को तो केवल दस्त हैं मगर ये जानलेवा भी हो सकते हैं। अतः समय पर उपचार करवाना मत भूलें । लापरवाही नहीं करें।

4। शिशु जितना छोटा होता है, दस्त लग जाने से उसके अंदर डीहाइड्रेशन अर्थात् पानी की कमी उतना ही अधिक होती जाती है, क्योंकि इस आयु के बच्चे को पानी पिलाकर पानी की कमी पूरा नहीं की जा सकती। जब बच्चा दो वर्ष की आयु तक पहुंच जाए, तब पानी की अधिक कमी नहीं रहने दी जाती। उसे किसी-न-किसी प्रकार से पानी दिया जा सकता है तथा इस रोग की व्यग्रता को रोका जा सकता है।

नोट:- कब्ज़, दस्त आदि पेट के रोगों से शिशु की रक्षा बहुत जरूरी है। मां को प्रयल करना चाहिए कि घरेलू इलाज तब तक करती रहे तथा शिशु के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखे। यदि रोग गंभीर होता नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर से सलाह कर उपचार करें। ऐसे में अपने घरेलू इलाजों पर किसी भी हालत में निर्भर न रहें अन्यथा थोड़ी-सी देरी या लापरवाही शिशु के जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकती है।

  • Tags

You can share this post!

विशेषज्ञ से सवाल पूछें

पूछें गए सवाल