इस रोग में पेट की अग्नि की शक्ति मंद होने के कारण भोजन का पाचन ठीक नहीं होता। चरक के अनुसार अग्नि तेरह प्रकार की मानी गई है। इन सब में जठराग्नि (पेट की अग्नि) सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। यह पित्त का ही एक रूप है।
1। काली मिर्च, नमक कटे नींबू के ऊपर डालकर चूसने से भूख बढ़ने लगती है।
2। भोजन से पूर्व नीबू का रस व भुना जीरा मिलाकर सैंधा नमक व अदरक की चटनी खाने से भूख बढ़ती हैं।
3। चित्रकादि वटी 1-2 गोली गरम पानी के साथ भोजन से पहले लें।
4। लहसुनादि वटी 1-2 वटी गरम पानी से भोजन से पहले लें।
5। महाशंख वटी 1-2 वटी गरम पानी से दो-तीन बार लें।
6। अग्नितुंडी वटी 1-2 वटी गरम पानी के साथ दो-तीन बार लें।
7। क्रव्याद रस 1-2 वटी गरम पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लें।
8। अग्नि कुमार रस 1-2 वटी गरम पानी के साथ दिन में दो-तीन बार दें।
9। क्षुधा वटी 1-2 वटी गरम पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लें।
10। लवण भास्कर चूर्ण 1-2 ग्राम पानी या नीबू के रस के साथ भोजन से पहले लें।
11। हिंग्वाष्टक चूर्ण 1-2 ग्राम पानी या नीबू रस के साथ भोजन से पहले लें।
12। अजमोदादि चूर्ण 1-2 ग्राम गरम पानी के साथ दिन में दो बार लें।
13। शिवक्षार पाचन 2-4 ग्राम गरम पानी के साथ दिन में दो बार लें।
14, जीरकाद्यारिष्ट 15-30 मि.लि। बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दो बार लें।
15। मुस्तकारिष्ट 15-30 मि.लि। बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद दो बार लें।
16। जम्बीरासव 15-30 मि.लि। बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद लें।
17। द्राक्षारिष्ट 15-30 मि.लि। बराबर जल मिलाकर भोजन के बाद लें।
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