जिस रोग में मुख का केवल आधा भाग पीड़ित होता है उसे अर्दित कहते हैं। जोर से बोलने से, कडे पदार्थों के खाने से, जोर से हंसने से, जोर से जम्हाई लेने से, भार उठाने आदि से वायु कुपित होकर सिर, नाक, ओंठ तथा नेत्र की संधियों को दूषित कर अर्दित रोग पैदा करता है। इससे मुख का आधा भाग टेढ़ा हो जाता है। गर्दन का मुड़ना, सिर का कांपना, आवाज का ठीक न निकलना, नेत्र, नाक, दांतों में विकार, मुख कोण के टेढ़ा होने के कारण वह बंद नहीं हो पाता। रोगी पानी नहीं पी पाता। पानी पीते समय मुख कोण से स्वतः पानी बाहर निकल जाता है।
1। रोगी द्वारा मुसकराने या दांत दिखाने की कोशिश करने पर मुख स्वस्थ भाग की ओर खिंच जाएगा।
2। दोनों भोंडे ऊपर उठवाने पर केवल स्वस्थ आधे भाग की तरफ की भौंहे ऊपर उठेगी।
3। रोगी से आंखें बंद करने को कहे। विकारयुक्त भाग की आंखें बंद नहीं होती।
4। मुख में हवा भरवाने पर विकृत गाल अधिक फूल जाएगा। तर्जनी को मारने पर उस ओर की हवा अधिक जल्दी से निकलेगी।
5।
रोगी सीटी बजाने में असमर्थ रहता है।
6। विकृत भाग में भोजन दांतों एवं गालों के बीच इकट्टा हो जाता है।
1। स्वर्ण समीर पन्नंग रस 120 मिग्राम दिन में दो बार सौंठ के क्वाथ के साथ दें।
2। वात कुलांतक रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद के साथ दें।
3। पंचामृत लौह गुगुल 500 मि.ग्राम दिन में दो बाद शृंठी क्वाथ से दें।
4। खंजनकारि रस - 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
5। दशमूल क्वाथ, महारास्नादि क्वाथ 10-20 मि.लि। दिन में दो बार दें।
6। माषबला क्वाथ 50 मि.लि., शुद्ध हींग 350 मि.ग्राम सेंधा नमक 1 ग्राम मिलाकर दिन में दो बार पिलाए। इसी क्वाथ को नाक में डालें।
7। अश्वगंधारिष्ट 20 मि.लि। रसोनसुरा 10 मि.लि। समान जल मिलाकर दो बार दें।
8। रसोनकंद कल्प 4 ग्राम मक्खन के साथ दिन में दो बार दें।
9। नालुका लेप में कुपीलु तेल मिलाकर गरम-गरम लेप करें।
10। महानारायण तेल, महामाष तेल की मालिश करें।
11। क्षीरबला तेल शतपाकी या धान्वन्तर तैल शतपाकी की 5-10 बूंद दूध में डालकर दो बार पिलाएं।
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