इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको डिप्थीरिया से जुड़ी सभी जानकारियों जैसे- डिप्थीरिया क्या होता है, डिप्थीरिया के कारण क्या-क्या हो सकते हैं, डिप्थीरिया के लक्षण एवं डिप्थीरिया के बचाव जैसी हर जानकारी से अवगत कराना चाहते हैं ताकि आप इस भयानक बीमारी से अपने बच्चों को बचा सकें।
डिप्थीरिया एक तीव्र संक्रामक रोग है, जो दूषित जल, भोजन एवं दूध द्वारा फैलता है। इस रोग को फैलाने वाले जीवाणु को कार्नी बैक्टीरियम डिप्थीरी कहते हैं। ये जीवाणु मुख्यत: मनुष्य के नाक, स्वरयन्त्र, टॉन्सिल तथा ग्रसनी पर आक्रमण करते हैं, परन्तु इनका आक्रमण त्वचा, आँख के कन्जक्टाइवा, जनन अंग इत्यादि में भी हो सकता है।
आमतौर पर डिप्थीरिया के जीवाणु गले पर आक्रमण करते हैं। ये जीवाणु टॉन्सिल, ग्रसनी तथा स्वरयन्त्र पर पीले अथवा स्लेटी रंग के एक आवरण का निर्माण करते हैं तथा शक्तिशाली बाह्य जैवविष का निर्माण करते हैं। जीवाणु इस आवरण के भीतर छिपे रहते हैं तथा जैव विष का निर्माण करते हैं। यह विष पूरे शरीर में रक्त के माध्यम से फैल जाती है तथा विषाक्तता के लक्षण पैदा करती है। पूरे शरीर में विष फैल जाने से तन्त्रिका तन्त्र तथा हृदय बुरी तरह प्रभावित होता है, अगर समय पर इलाज न किया जाये तो इससे बच्चे की मृत्यु अवश्यम्भावी है।
यह रोग सभी उम्र के लोगों में हो सकता है, परन्तु यह छोटे बच्चों को जिनकी उम्र 3-5 वर्ष की हो, अधिक होता है। वे शिशु जिनकी उम्र 6 माह से कम हो, उनमें नहीं होता, क्योंकि उनमें रोग के प्रति प्रतिरक्षात्मक शक्ति (अपनी माता से प्राप्त रहती है) विद्यमान रहती है।
डिप्थीरिया का उद्भवन काल सामान्यत: 2 से 6 दिन का होता है एवं इसकी संक्रमण अवधि औसतन 2 से 4 सप्ताह तक होता है।
रोग फैलाने वाले जीवाणु - इस रोग को फैलाने वाले जीवाणु, जिन्हें कार्नी बैक्टीरियम डिफ्थीरी कहते हैं। यह एक 'ग्राम पोजिटिव' दण्डाकार जीवाणु है। ये जीवाणु तीन प्रकार के होते हैं
उपर्युक्त तीनों ही प्रकार के डिप्थीरिया के जीवाणु हानिकारक होते हैं। ग्रेवीस तीव्र रोग तथा इन्टरमीडियस मध्यम रोग उत्पन्न करता है जबकि माइटिस अप्रभावी-सा होता है।
डिप्थीरिया के जीवाणु पेनिसिलीन के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं तथा उसकी उपस्थिति में मर जाते हैं। ये जीवाणु ताप एवं रासायनिक पदार्थों के प्रति भी काफी संवेदनशील होते हैं तथा उनके सम्पर्क में आकर पहले अपनी क्रियाशीलता समाप्त करते हैं। तत्पश्चात् मर जाते हैं।
डिप्थीरिया के लक्षण कुछ इस प्रकार से हैं:-
डिप्थीरिया से बचाव के उपाय कुछ इस प्रकार हैं:-
शिशु के जन्म के 6 सप्ताह बाद से 9 माह तक की आयु तक DPT के तीन टीके लगवा देने चाहिये। दो टीकों के मध्य 1 माह का अन्तर होना चाहिये, जैसे-अगर शिशु को डी.पी.टी। का पहला टीका डेढ़ माह में लगाते हैं। तो दूसरा ढाई माह में तथा तीसरा साढ़े तीन माह में लगना चाहिए। इसके बाद 18 माह से 2 वर्ष की अवस्था तक बूस्टर का टीका लगा दिया जाता है, जिससे बच्चे में प्रतिरक्षात्मक शक्ति विकसित हो जाती है।
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