भारत में गन्ने की खेती आम है। गन्ने से गुड़, खांड और चीनी आदि बनाई जाती है। संस्कृत में गन्ने को ‘इक्ष', 'भूरिरस', 'असिपत्र' आदि नामों से जाना जाता है। हिन्दी में ‘ईख' और 'गन्ना' नाम से पुकारा जाता है। गर्म प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है। इसकी अनेक किस्में होती हैं। लाल, सफेद, काला, और पीला गन्ना अधिकतर दिखाई दे जाता है। यह 6 से 12 फुट की ऊँचाई तक बड़ा होता है। इसमें लम्बे-लम्बे पत्ते लगते हैं। इसमें 4-6 इंच की दूरी पर गाँठे होती हैं। इसका फूल का गुच्छा अनेक शाखाओं वाला होता है।
गन्ने का स्वाद मधुर होता है। इसकी तासीर चूसने पर गर्म होती है और इसके रस की तासीर ठंडी होती है। यह रक्तविकार को दूर करने वाला, पित्त नाशक, बल-वीर्य बढ़ाने वाला और मूत्रवर्द्धक है।
गन्ने का 5-6 किलो रस, चिकनी मिट्टी के बर्तन में भरकर उसके मुँह को कपड़े से बाँधकर मिट्टी में दबा दें। 8-10 दिन बाद उसे निकालकर रस को छान लें और बर्तन में भरकर रख दें। इस रस में एक महीने बाद सेवन के लिए चौथाई गिलास रस निकालें और उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर उस रोगी को पिलाएँ, जिसके पेट में दर्द हो। दर्द में तत्काल आराम आ जाएगा।
गन्ने का रस पीलिया रोग में अत्यंत लाभदायक होता है। गन्ने के टुकड़े करके रात्रि में ओस में रख दें। सुबह होने पर उसे चूस लें। 2-4 दिन में ही आराम आना प्रारंभ हो जाएगा।
गन्ने का ताजा रस पीने से मूत्र की रुकावट दूर हो जाती है और मूत्र खुलकर आता है। गन्ने की ताजी जड़ को पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। उस काढ़े को पीने से रुका हुआ पेशाब खुलकर आने लगता है।
10 ग्राम गुड़ और 6 ग्राम तिल, इन्हें दूध के साथ पीसकर, 6 ग्राम मिला दें और गर्म करके सेवन करें। कैसा भी सिर दर्द होगा, जाता रहेगा।
गन्ने और अनार का रस आधा-आधा गिलास लेकर मिला लें और उसे दिन में 2 बार प्रयोग अवश्य करें। इससे 'खूनी पेचिस' में तत्काल लाभ मिल जाता है।
5 ग्राम आँवले का चूर्ण में गुड़ मिलाकर सेवन करने से वीर्य वृद्धि होती है और बल बढ़ता है। मूत्र की रुकावट' और 'पित्त की जलन' भी इससे शांत हो जाती हैं।
मिश्री के साथ एक कत्थे का छोटा सा टुकड़ा मुँह में रखकर चूसने से, मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
मिश्री और घी मिले दूध को पीने से बुखार उतर जाता है।
गन्ने के रस को सूंघने से नकसीर रुक जाती है।
पुराना गुड़ अदरक के साथ सेवन करने से कफ का नाश हो जाता है।
गन्ने के रस को पकाकर ठंडा कर लें और उसे पी जाएँ। अफारा ठीक हो जाता है।
पुराने गुड़ के साथ सौंठ का सेवन करने से वाय विकार रोग दूर हो जाता है।
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