हैजा कैसे फैलता है | हैजा के प्रकार और इसके 9 घरेलु इलाज

अचानक बहुत तेज उल्टी एवं दस्त का होना, हैजा का कारण होता है। यह बहुत तेज फैलने वाला रोग है। रोगी के अचानक दस्त और उल्टी, पेशाब का रुकना तथा सारे शरीर में दर्द होने लगता है। रोगी का मल चावल के मांड़ की तरह दिखाई पड़ता है। कालरा बाइब्रिओ नामक दंडाणु इसका मुख्य कारण होता है। रोगी के मल तथा उल्टी में यह कालरा बाइब्रिओ उपस्थित रहता है। इनको एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैलाने में घरेलू मक्खियां महत्वपूर्ण कार्य करती हैं।

इसका फैलाव मुख द्वारा दूषित खाद्य या पेय पदार्थों के माध्यम से होता है। यह अपने हाथों द्वारा, रोगी के कपड़ों या मल-मूत्र द्वारा, मक्खियों द्वारा फैलता है। इस रोग का संचय काल बहुत कम होता है। कुछ घंटों से लेकर एक या दो दिन तक होता है। हैजा में उल्टी, दस्त, प्यास, जलन, पेट में दर्द, चक्कर आना, कपन, त्वचा की विवर्णता हृदय प्रदेश में तथा सिर में तेज दर्द होता है। रक्तदाव तथा मूत्र की कमी होने लगती है।

हैजा के प्रकार

हैजा तीन प्रकार से होते हैं।

1। दस्त की अवस्था - एकाएक पहले दस्त शुरू होते हैं फिर उल्टी होने लगती है। उल्टी-दस्त के समय रोगी को पीड़ा नहीं होती। पहले उल्टी व दस्त में रंगीन व कुछ मल होता है। बाद में चावल के धोवन के समान मल हो जाता है।

2.अवसाद की अवस्था - प्राय चार-छः दस्त के बाद शुरू होती है। इसमें ठंडे पसीने, शरीर का ठंडा पड़ना, नाखून व मुख पर नीलिमा, नाडी की कमजोर गति, मूत्र की रुकावट, अंगों के ऐंठने की क्रिया का तेज होना आदि। यह अवस्था 12-36 घंटे तक रहती है।

3। चैतन्य की अवस्था - त्वचा की गर्मी, रक्तदाव व नाड़ी का बल बढ़ने लगता है मूत्र भी कम होने लगता है। यदि अवसाद की अवस्था अधिक देर तक बनी रहे तो आंतों द्वारा विष रक्त में मिलकर विषमयता उत्पन्न कर देता है जिससे मूत्र की उत्पत्ति न होकर मूत्र विषमयता, मूच्र्छा, अति तेज बुखार से रोगी की मृत्यु हो जाती है।

रोगी के मल-मूत्र, उल्टी आदि मल को किसी पात्र में लेना चाहिए जिसमें चूना रखा हो। फिर उसे गाड़ देना चाहिए या जला देना चाहिए। जिस कमरे में रोगी हो उस कमरे में चूना बिखेर देना चाहिए। मक्खियों का सफाया कर देना चाहिए। रोगी के कपड़े विसंक्रमित करके ही धूलने के लिए बाहर देने चाहिए। खाने के पदार्थों को मक्खियों तथा गंदे हाथों से बचाना चाहिए। रोगी को अलग हवादार कमरे में रखना चाहिए।

हैजा के घरेलु इलाज

हैजे के रोगी को पीने के लिए सौंफ का अर्क, लौंग का पानी, चंदन का अर्क, पुदीने का अर्क, नारियल का पानी, प्याज का रस, पिपप्लोदक अथवा कर्पूराम्बू, नींबू का पानी थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बार-बार दें।

(1) लहसुनादि वटी 2-4 वटी दो या तीन बार गरम जल में दें।

(2) चित्रकादि वटी 2-4 वटी उष्ण जल से तीन-चार बार दें।

(3) महाशंख वटी 2-4 वटी दिन में दो-तीन बार दें।

(4) अग्निकुमार रस 2-4 वटी दिन में दो-तीन बार दें।

(5) विसूचिका विध्वंसन रस 1 वटी दिन में चार बार दें।

(6) संजीवनी वटी 1-2 गोली दिन में दो-तीन बार उष्ण जल से दें।

(7) कर्पूरासव 10 बूंद सौंफ के अर्क के साथ मिलाकर दें।

(8) अहिफेनासव 5-10 बूंद सौंफ के अर्क के साथ मिलाकर दो बार दें।

(9) हृदय एवं नाड़ियों को बल देने के लिए वृहत कस्तूरी भैरव रस, सिद्ध मकरध्वज, मृत संजीवनी सुरा, चिंतामणि चतुर्मुख, याकूति, वृहत वातचिंतामणि, जहर मोहरा पिष्टी आदि का सेवन कराएं।

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