इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको इन्फ्लूएंजा से जुडी सभी जानकारियों जैसे- इन्फ्लूएंजा क्या होता है, इन्फ्लूएंजा के कारण क्या-क्या हो सकते हैं, इन्फ्लूएंजा के लक्षण एवं इन्फ्लूएंजा के बचाव जैसी हर जानकारी से अवगत कराना चाहते हैं ताकि आप इस भयानक बीमारी बचे रह सकें।
इन्फ्लूएंजा एक अन्तर्राष्ट्रीय तीव्र संक्रामक रोग है जो कभी-कभी विश्वमारी की तरह उग्र रूप धारण कर लेता है। लाखों लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं। सामान्य बोलचाल की भाषा में इसे 'फ्लू' भी कहते हैं। यह वायरस के कारण फैलता है। इस रोग में अचानक ही तीव्र बुखार, बदन दर्द, ठण्ड, हाथ-पैरों में जकड़न होने लगती है। श्वास-मार्ग में भी तकलीफ होने लगती है। कभी-कभी कफ जम जाता है।
इन्फ्लूएंजा मुख्यतः वायरस के कारण फैलता है। इन्फ्लूएंजा के वायरस तीन प्रकार के होते हैं ये हैं वायरस - A, B, C, सामान्यत: वायरस ‘A’ ही महामारी फैलाने का कार्य करता है। WHO ने 1997 में व्यापक स्तर पर सर्वेक्षण किया। सबसे पहले इन्फ्लूएंजा वायरस-'A' (H5N1) का पता हांगकांग में चला। इन्फ्लूएंजा वायरस ऑर्थोमिक्सोवारिडी कुल का वायरस है। इन्फ्लूएंजा वायरस सभी वायरसों में से अधिक घातक है।
इन्फ्लूएंजा वायरस सभी उम्र के लोगों को हो सकता है । वयस्क इसकी चपेट में कम ही आते हैं। वृद्धों एवं बच्चों को यह रोग अधिक प्रभावित करता है। परिणामत: उच्च जोखिम समूह वाले लोग इसके सर्वाधिक शिकार होते हैं। जब इन्फ्लूएंजा महामारी का रूप धारण करता है तब वृद्ध, मधुमेह के रोगी, हृदय रोगी, 1 वर्ष से 10 वर्ष के उम्र के बच्चे अधिक शिकार होते हैं।
इन्फ्लूएंजा फैलने के मुख्य कारण कुछ इस प्रकार हैं:
इन्फ्लूएंजा के लक्षण कुछ इस प्रकार से हैं:-
इन्फ्लूएंजा से बचाव के उपाय कुछ इस प्रकार हैं:-
अब तक इन्फ्लूएंजा के मुख्य रूप से तीन प्रकार के टीके विकसित किये गये हैं, ये हैं:-
1। मृत टीका (Killed Vaccine) - यह टीका विकासशील चिक भ्रूण (Developing Chick Embryo) के अपरापोषिक गुहा (Allantoic Cavity) से तैयार किया जाता है। इस टीके को तैयार करने के लिए फॉरमेलिन का उपयोग किया जाता है। इस टीके की एक खुराक में लगभग 15 माइक्रोग्राम हीमोगलुटिनिन 'A' रहता है। इसे इंजेक्शन के माध्यम से शरीर में पहुँचाया जाता है। इंजेक्शन त्वचा में दिया जाता है। उन लोगों को जिन्हें यह टीका इसके पूर्व कभी नहीं लगा है, उन्हें दो बार टीका लगाया जाता है। दो टीकों के बीच का अन्तराल 3-4 सप्ताह रखा जाता है। इससे शरीर में इन्फ्लूएंजा के प्रति प्रतिकारिता उत्पन्न हो जाती हैं। परन्तु यह प्रतिकारिता अल्पकालिक होती है (सामान्यत: 4-6 माह तक)। तत्पश्चात् पुनः टीका लगवाने की जरूरत होती है। इसलिए इस टीके को वर्ष में एक बार लगाने की सलाह दी जाती है।
2। जीवित तनुकृत टीका (Attenuated Vaccine) - रूस में इस प्रकार के टीके का अधिक उपयोग किया जाता है। यह टीका तापक्रम संवेदनशीलता म्यूटेन्ट्स
3। न्यूर वैक्सीन (Newer Vaccine) - यह तीन प्रकार का होता हैें:-
i। खण्ड वायरस वैक्सीन (Split Virus Vaccine) - इसे 'Sub-Virion' भी कहते हैं। यह अत्यन्त प्रभावशाली वैक्सीन है जिससे शरीर में प्रतिकारिता उत्पन्न हो जाती है। साथ ही शरीर पर इसका कोई सह-प्रभाव नहीं पड़ता। परन्तु इस वैक्सीन की ये बडी कमी यह है कि इसमें कम एन्टीजेनिसिटी (Antigenicity) होता है जिसके कारण एक खुराक पर्याप्त नहीं होता है। इसलिए इसकी कई खुराकें इंजेक्शन के माध्यम से लेनी पड़ती है।
ii। रीकम्बीनेन्ट वैक्सीन (Recombinant Vaccine) - इसे रीकम्बीनेन्ट तकनीक से तैयार किया जाता है। यह भी काफी प्रभावकारी वैक्सीन है।
iii। न्यूरामिनिडेज विशिष्ट वैक्सीन (Neuraminidase Specific Vaccine) - यह एक 'Sub-Unit' Vaccine है जिसमें केवल 'N' एन्टीजन ही उपस्थित रहता है। यह काफी प्रभावशाली, सशक्त वैक्सीन है जो इन्फ्लूएंजा को रोकने में काफी कारगर सिद्ध हुआ है। इसके प्रयोग से शरीर में एन्टीबॉडीज विकसित हो जाता है। यह श्वसन नलिका में वायरस को पनपने एवं वृद्धि करने से रोकता है। वर्तमान में इस टीके का अधिक उपयोग किया जाने लगा है।
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