करेला सभी घरों में सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में इसे 'कारबेल्लर', 'कठिल्ल', 'कारवेल्ली', 'उग्रकांड', 'कटफला', 'कार्केटक' आदि नामों से पुकारा जाता है। इसका फल लता पर लगता है। यह हरे रंग का 2-3 इंच लंबा और ऊपर की ओर ऊबड़-खाबड़ दानेदार परत उभरी हुई होती है। इसके अंदर चपटे बीज होते हैं।
यह भारत में सभी जगह पाया जाता है। इसके पत्ते 1-5 इंच के घेरे में गोलाकार और फटे हुए होते हैं। इस पर पीले रंग के चमकीले फूल आते हैं। करेला पकने पर पीला पड़ जाता है।
करेला स्वाद में कड़वा, तासीर में ठंडा, दस्तावर, कब्ज को तोड़ने वाला, ज्वर, पित्त, कफ और रक्त विकार को नष्ट करने वाला, मधुमेह (शुगर) और कृमि नाशक है। यह शरीर की बहुत से रोगों से सुरक्षा करता है जोकि इस प्रकार हैं।
करेले की सब्जी खाने से कब्ज' नहीं होता। यह कब्ज को तोड़ता है। पेट के कीड़ों को नष्ट करता है और पेट को साफ रखता है।
कच्चा करेला बीज निकाल कर पीस लें और उसे पानी में घोलकर छान लें। इस पानी को पीलिया के रोगी को दिन में तीन बार पिलाने से बहुत जल्द रोग में आराम आ जाता है।
इसके बढ़ जाने पर करेले के रस दिन में तीन बार रोगी को 3-4 दिन तक पिलाएँ। जिगर तिल्ली की वृद्धि रुक जाती है।
एक चम्मच करेले के रस में शहद मिलाकर रोगी को तीन बार एक सप्ताह तक पिलाएँ। खूनी बवासीर ठीक हो जाती है।
मधुमेह (शुगर) के रोगी के लिए करेला रामबाण फल है। मधुमेह के रोगियों को करेले का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए। इस बीमारी में कच्चे करेले का रस पीना और भी ज्यादा लाभकारी है। मधुमेह के रोगी को चाहिए कि वह करेले को सुखाकर उसे कूट-पीसकर छानकर महीन चूर्ण बना लें इस चूर्ण को को शीशी में भरकर रख लें। इस चूर्ण में से 5 ग्राम चूर्ण रोज शहद के साथ दिन में दो बार सुबह शाम सेवन करें।
शुद्धि में भी यही प्रयोग कारगर होता है। करेले का चूर्ण या फिर ताजे करेले का रस प्रतिदिन पीने से रक्त विकार दूर हो जाता है और त्वचा चमकने लगती है। ‘फोड़े-फुसी' और 'खुजली' आदि का भय नहीं रहता।
गठिया के दर्द में हरे करेले के रस को गर्म करके लेप करने से गठिया के दर्द में बहुत लाभ होता है।
करेले के पत्ते और फल को कूटकर उसका रस निकाल लें और उस रस को आग पर खुश्क करके उसकी 3-3 ग्राम की गोलियाँ बना लें। सहवास से पहले एक गोली गाय के दूध के साथ निगल लें। थोड़ी देर बाद ऊपर से शहद चाट लें। इसके बाद संभोग करने में ‘रति सुख' और 'स्तम्भन शक्ति' में भारी वृद्धि होती है।
चर्म रोग में करेला, करेले के पत्ते, करेले की जड़, करेले के फूल और करेले के बेल की डण्डी, दालचीनी, पीपल (छोटी), चावल, सभी को समभाग में लेकर कूट लें और बादाम के तेल में उसे पकाएँ और ठंडा करके शीशी में भर लें। इस तेल को खाज-खुजली, दाद व अन्य किसी भी प्रकार के चर्म रोग पर लगाएँ बहुत जल्द आराम मिलेगा। करेले के पत्तों का रस दाद' पर लगाने से दाद जाता रहता है। इसके पत्तों के रस का लेप सिर पर करने से बालों की रूसी (डैन्ड्रफ) खत्म हो जाती है।
चेचक में करेले के पत्तों का रस 1 ग्राम लेकर उसमें जरा-सा जीरे का चूर्ण मिला दें और उसे रोगी को तीन दिन तक सुबह-शाम पिलाएँ। इससे रोग की दाह नष्ट हो जाएगी।
करेले के 1 ग्राम रस में सौंठ, काली मिर्च और पीपल (छोटी) का चूर्ण बुरक कर दिन में तीन बार रोगी को पिलाएँ। मासिक धर्म नियन्त्रित होकर शुद्ध हो जाता है।
करेले के 1 ग्राम रस में थोड़ा-सा गाय का घी और पित्तपापड़े का रस मिलाकर मस्तक पर लेप करने से सिर-दर्द जाता रहता है।
आँख के रोग में जैसे आँख का फूला', 'जाला', 'रतौंधी' होने पर जंग खाए लोहे के बर्तन में करेले के पत्तों का रस और एक काली मिर्च का थोड़ा-सा हिस्सा घिसकर अंजन की तरह आँखों में लगाने से उपर्युक्त रोगों का शमन होता है।
करेले के रस को चाक मिट्टी के साथ मिलाकर छालों पवर लगाने से छाले ठीक हो जाते हैं।
करेले के ताजे फलों या पत्तों का रस बूंद-बूंद करके 2-3 बार कान में टपकाएँ। कान का दर्द जाता रहेगा।
पथरी होने पर करेले के हरे पत्तों का रस 25 ग्राम, दही 15 ग्राम दोनों को मिलाकर रोगी को पिला दें। पहले तीन दिन पिलाकर अगले तीन दिन दवा को न दें। फिर चार दिन पिलाकर दें। इस प्रकार पाँच दिन तक बढ़ाते जाएँ और रोकते जाएँ। रोगी को बीच केवल खिचड़ी और चावल ही खिलाएँ। एक सप्ताह के प्रयोग के उपरांत पथरी गलकर बह जाएगी।
ठंड लगने से यदि बुखार चढ़ आए तो करेले के 2-3 ग्राम रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर रोगी को दिन में तीन बार पिलाएँ। जाड़े का बुखार उतर जाएगा।
करेले के पत्तों के 1-2 ग्राम रस को थोड़ा गुनगुना करके उसमें असली केशर की एक-दो कलियाँ डाल दें और बच्चे को दिन में तीन बार चटाएँ। निमोनिया बुखार दूर भाग जाएगा।
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