कायफल को संस्कृत में सोमफल', या ‘कुमुद' नाम से पुकारा जाता है। कायफल कोई फल नहीं है, अपितु वृक्ष की छाल का नाम है। पर्वतीय क्षेत्रों में विशेषकर हिमालय की पर्वत श्रृंखला और नेपाल के क्षेत्र में इसके वृक्ष पाए जाते हैं। इस वृक्ष के तने मोटे और पत्ते पान की तरह लंबे होते हैं। उन पर धारियाँ होती हैं। इसके पुष्प के अग्रभाग में दो पत्तियाँ ऊपर की ओर उठकर दो तरफ मुड़ी हुई होती हैं। इस वृक्ष का फल शरीफे के आकार का होता है। फल पर अनानास की भाँति उभरी हुई परतें होती हैं।
कायफल तासीर में गर्म होता है। स्वाद में कड़वा, तीखा, कसैला, चरपरा होता है। यह कफ, गत, ज्वर, प्रमेह, बवासीर, खाँसी, गले की खराश, अरुचि, दर्द आदि को नष्ट करने वाला और पित्त, उत्तेजना और शुक्र-शोधन को बढ़ाने वाला होता है।
कायफल (वृक्ष की छाल), कत्था और हींग को 4:2:1 ग्राम अनुपात में लेकर बारीक पीस लें और उसका लेप मस्सों पर करें। मस्से सूखकर गिर जाएँगे। इसे करने से पूर्व पेट की सफाई के लिए कोई चूर्ण या दस्तावर गोली अवश्य ले लें।
कायफल के चूर्ण को हैजा से ग्रस्त रोगी के हाथों और पिण्डलियों पर मलने से ठंडा पड़ा शरीर गर्म हो जाता है और उससे हैजे के रोगी को लाभ पहुँचता है।
कायफल के चूर्ण को दाँतों और मसूड़ों पर मलने से मसूड़े मजबूत हो जाते हैं और दाँतों का दर्द दूर हो जाता है। बादी का पानी बह जाता है। इसके लिए कायफल को दाँतों से चबाना भी चाहिए। इससे लार बहने में आसानी हो जाती है।
कायफल को पकाकर उसका तेल निकाल लें और उसे किसी शीशी में भरकर रख लें। जब कभी कान में दर्द हो या कान बहने लगे, तब कायफल के तेल की 1-2 बूंदे कान में टपकाएँ। दर्द खत्म हो जाएगा और कान का बहना भी बंद हो जाएगा।
कायफल की छाल का रस अथवा चूर्ण 2 ग्राम, शहद में मिलाकर चाटने से श्वाँस का रोग और खाँसी में आराम मिलता है। कायफल को बारीक से पीसकर, दालचीनी के सम भाग चूर्ण में मिला लें और उसे शहद के साथ चाटें। इससे पुरानी-से-पुरानी खाँसी और बच्चों की काली खाँसी' समाप्त हो जाती है।
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कायफल के बारीक चूर्ण को नित्य पानी के साथ 5 ग्राम या आधा चम्मच की मात्रा में लेने से लकवा' अथवा 'पक्षाघात' ठीक हो जाता है।
यदि किसी को मिर्गी के दौरे पड़ते हों तो कायफल का तेल 2-2 ग्राम बताशे के साथ रोगी को दिया जाए तो दौरे सदा के लिए बंद हो जाते हैं।
यदि कोई स्त्री अवांछित गर्भ से छुटकारा पाने की इच्छुक हो तो उसे चार कायफल लेकर उन्हें पानी में उबालना चाहिए। फिर उस पानी को 1-2 दिन सुबह-शाम पी लें। इससे अवांछित गर्भ से छुटकारा मिल जाता है। इससे किसी प्रकार की हानि भी नहीं होती। ‘अनियमित मासिक धर्म' को ठीक करने में भी यह बहुत उपयोगी है।
कायफल को बारीक पीसकर उसे पानी के साथ मिलाकर लेप बना लें और उस लेप को कंठा पर लगा दें। कंठमाला का रोग दूर हो जाएगा। कम से कम 2-3 दिन लेप अवश्य करें।
कायफल के चूर्ण की नसवार लेने से छीकें आएँगी और सिर दर्द जाता रहेगा।
कायफल के 10 ग्राम चूर्ण में 10 ग्राम मिश्री मिला लें और महावारी के तीन दिन तक चूर्ण को दूध के साथ लें या शहद मिलाकर चाट लें। पथ्य में चावल और दूध का प्रयोग करें। इसके बाद पति के साथ सहवास करें। गर्भ निश्चित रूप से धारण होगा।
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