लहसुन को संस्कृत में रसोत', 'लशुन' आदि नामों से पुकारा जाता है। इसके पौधे सर्वत्र पाए जाते हैं। पत्ते पतले और लम्बे होते हैं। जड़ में नीचे जो कंद निकलता है वही लहसुन कहलाता है। इसकी खेती की जाती है।
लहसुन पेट के समस्त रोगों एवं शरीर की शक्ति के लिए अत्यधिक उत्तम बूटी है। यह वीर्यवर्द्धक होती है। इसकी तासीर गर्म होती है और स्वाद चरपरा होता है। इसमें से तीव्र गंध निकलती है, जिसके कारण इसका उपयोग शाकाहारी लोग कम करते हैं। जबकि मांसाहारी भोज में लहसुन का प्रयोग अनिवार्य होता है। यह पाचक है, दस्तावर है, बवासीर, मन्दाग्नि, कफ, हृदय रोग आदि में यह अत्यधिक लाभदायक है। इसका रंग एकदम सफेद होता है और इसमें कलियाँ सी होती है। वायु विकार में यह रामबाण औषधि है।
वायु विकार होने पर लहसुन का नियमित रूप से प्रयोग करना चाहिए। 3-4 कलियाँ छीलकर शहद के साथ लेने पर पेट के कीड़े मर जाते हैं।
लहसुन की 3-4 कलियाँ छीलकर रात्रि में दूध के साथ सेवन करें। एक माह में ही शरीर में जीवन-शक्ति का संचार होता हुआ लगेगा और पौरुष शक्ति बढ़ जाएगी।
लहसुन को कूटकर उसका रस निकाल लें। उसमें जरा-सा नमक मिलाकर चाट लें। पेट-दर्द ठीक हो जाएगा।
1 चम्मच लहसुन का रस 100 ग्राम पानी में मिलाकर पीने से जलोदर दूर हो जाता है।
50 ग्राम सरसों के तेल में लहसुन की एक पूरी गाँठ को साफ करके पका लें और उसे शीशी में भरकर रख लें। खाँसी होने पर तेल की मालिश सीने पर करें और शहद के साथ या मुनक्का के साथ लहसुन की 2-3 कलियाँ गटक लें। इससे खाँसी और दमे का रोग शांत हो जाता है। लहसुन के रस को गर्म पानी के साथ लेने से भी श्वाँस, दमा और खाँसी में बड़ा आराम आता है
लहसुन का नियमित प्रयोग साग सब्जी में करते रहना चाहिए। यह रक्त को शुद्ध करता है। यह रक्त शोधन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण औषधि है।
बालकों को अक्सर सर्दी लग जाती है और निमोनिया बुखार हो जाता है। उन्हें लहसुन का रस शहद या गर्म पानी के साथ दिन में 2-3 बार देना चाहिए।
जो लोग नियमित रूप से लहसुन का प्रयोग खाने में करते हैं, उनके बाल झड़ने बंद हो जाते हैं। नोट- लहसुन की बदबू पर मत जाइए। शरीर के आंतरिक रोगों को ठीक करने में लहसुन का प्रयोग रामबाण औषधि की तरह है।
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