घरेलू मसालों में लौंग का प्रयोग आम होता है। संस्कृत में इसे 'लवण', 'देव कुसुम', 'श्रीप्रसून' आदि नामों से जाना जाता है। लौंग मुख्यतः मलाया, जावा, सुमात्रा और जंजीबार द्वीपों में मूल रूप से होती है। परन्तु भारत में लौंग दक्षिणी प्रदेशों केरल और तमिलनाडु में यह खेती द्वारा प्राप्त होती है। वैसे इसका आयात श्रीलंका और सिंगापुर से भी किया जाता है।
लौंग के वृक्ष पर 9-10 वर्ष में फूल लगने प्रारंभ हो जाते हैं। इसकी पुष्प कलियों को सुखाकर ही लौंग बनाई जाती है। इसका वृक्ष 40-50 फुट की ऊँचाई तक होता है। इसकी सैकड़ों शाखाएँ चारों ओर फैली हुई होती हैं। इसके पत्ते अण्डाकार 3 से 6 इंच तक के होते हैं। इस के फूल बैंगनी रंग के खुशबूदार होते हैं।
लौंग तासीर में गर्म होती है। स्वाद में चरपरी और कसैली होती है। यह नेत्रों, दाँतों, पाचन क्रिया, कफ, पित्त, रक्त विकार, प्यास, वमन, अफारा आदि में अत्यंत लाभकारी होती है।
लौंग के तेल का फाया रखने से दाढ-दाँत का दर्द ठीक हो जाता है।
लौंग का चूर्ण, सेंघा नमक के साथ पानी में घिसे और पेट पर लेप कर दें। अफारा दूर हो जाएगा।
लौंग को पानी में उबालकर मिश्री मिलाकर पीने से उल्टियाँ बंद हो जाती हैं। गर्भावस्था में भी जब जी मिचलाता हो तब भी लौंग का जल देना चाहिए।
कफ सहित सूखी खाँसी में लौंग के तेल में मिश्री मिलाकर रोगी को चटाएँ खाँसी आनी बंद हो जाएगी।
पान में लौंग डालकर चूसने से गला साफ हो जाता है।
यदि तेज सिर दर्द हो तो लौंग को पानी में घिसकर कनपटी पर लेप करे दें। दर्द कुछ ही देर में जाता रहेगा।
ज्वर में दो तीन लौंग पीसकर दिन में दो बार गर्म पानी से रोगी को दें। शहद में पीसकर भी चटाया जा सकता है।
दो तीन लौंग रात को जल में भिगो दें। सुबह उस जल से आँखें धोने पर आँखों की सूजन, रोहे, जलन आदि दूर हो जाती हैं। लौंग को ताँबे के बर्तन में पीसकर उसमें शहद मिलाकर अंजन की भाँति आँखों में लगाएँ।
तीन-चार लौंग पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए, तब उसे दिन में तीन-चार बार पीएँ। इससे अजीर्ण दूर हो जाएगा और खुलकर भूख लगेगी। लौंग के सेवन से वैसे भी भूख बढ़ती है। पेट के कीड़े भी इससे मर जाते हैं। मन स्वच्छ रहता है। शरीर की दुर्गन्ध भी इससे नष्ट हो जाती है।
लौंग, आँकड़े के फूल और काला नमक, समभाग में लेकर चने के आकार की गोली बना लें। गोली को मुँह में डालकर चूसते रहने से दमा में बड़ा आराम मिलता है।
लौंग व जायफल को घिसकर नाभि पर लेप करें और स्त्री के साथ सहवास करें। निश्चित रूप से स्तम्भन शक्ति बढ़ जाती है।
5-6 लौंग और 10 ग्राम हल्दी पीसकर नासूर बने जख्म पर लगाने से नासूर में आराम आना प्रारंभ हो जाता है।
लौंग और छोटी पीपल दोनों को समभाग लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और छान लें। इस चूर्ण को 2 ग्राम मात्रा, सुबह-शाम शहद के साथ चाटने से मन्दाग्नि का रोग नष्ट हो जाता है और कमजोरी दूर हो जाती है।
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