किसी भी व्यक्ति को गहरी नींद का आना किसी वरदान से कम नहीं। यदि किसी कारण रात को नींद टूट जाए तथा दोबारा न आए या किसी कारणवश रात को जागना पड़े तो अगले दिन व्यक्ति के शरीर में ताकत ही नहीं रहती। उसको जम्हाइयां आने लगेंगी और शरीर टूटने लगेगा। कोई भी काम करने को उसका मन नहीं करता, इसलिए शरीर को तंदुरुस्त रखने के लिए गहरी नींद का आना बहुत ज़रूरी है।
नींद न आना यानी अनिद्रा की बीमारी आजकल की भाग-दौड़ वाली मशीनी युग में प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। व्यक्ति रात भर करवटें बदलता रहता है। यदि निद्रा आती भी है तो कुछ देर बाद आंख खुल जाती है। या तो दोबारा नींद आती ही नहीं, यदि आती भी है तो बहुत देर के बाद और वह भी थोड़ी देर के लिए। इनसोमनिया यानी अनिद्रा कई तरह की होती है कई बार बहुत खुशी में या अचानक आई परेशानी के कारण किसी भी व्यक्ति को नींद नहीं आती। परन्तु यह अनिद्रा दो-तीन दिनों के बाद अपने आप ठीक हो जाती है।
दूसरी अवस्था में अनिद्रा का रोग 10-15 दिन तक भी रह सकता है। यह अवस्था मानसिक परेशानी जैसे कि किसी नज़दीकी संबंधी की मृत्यु, अचानक कारोबार में घाटा पड़ना आदि के कारण व्यक्ति की निद्रा में विघ्न पड़ जाता है और वह अनिद्रा का शिकार हो जाता है। यह अवस्था पहली अवस्था से गंभीर होती है तथा इस अवस्था वाला व्यक्ति लगातार 10-15 दिन तक सो नहीं पाता है।
तीसरी अवस्था के लोगों में नींद न आने की शिकायत बहुत लंबी हो जाती है। ऐसे लोग कई-कई दिनों तक ठीक से सो नहीं पाते। वे कुछ दिन ठीक रहकर दोबारा अनिद्रा का शिकार हो जाते हैं। यह बहुत गंभीर रोग है और व्यक्ति को जबरदस्ती चक्करों में डाल देता है। इससे उसके स्वास्थ्य के अतिरिक्त उसके रोज़ाना के कामकाज पर भी बुरा असर पड़ता है। हमारे देश में लगभग 15 प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इसलिए उचित इलाज ज़रूरी हो जाता है।
हमारे शरीर में कुदरती तौर पर एक घड़ी चलती रहती है जिसके अनुसार प्रतिदिन एक खास समय हमारी आंख खुल जाती है। इसको बाडी क्लाक (body clock) यानी शरीर की घड़ी कहते हैं। जहां तक हो सके, हमें इस बाडी क्लाक को बदलना नहीं चाहिए। अगर कभी आप देर रात सोए हों तो सुबह एक बार तो आपकी नींद उसी समय खुल जाएगी जिस समय आप रोज़ाना उठते हैं। इसलिए चाहे देर से ही सोए हुए हों, एक बार तो सुबह रोज़ की तरह उठ जाना चाहिए। आप अपनी निद्रा दिन में सोकर भी पूरी कर सकते हैं।
जहां तक संभव हो, दिन में सोने से परहेज़ करना चाहिए।
यदि फिर भी नींद न आए तो ऐसे में चारपाई पर करवटें नहीं बदलते रहना चाहिए बल्कि उठकर थोड़ा चलना-फिरना चाहिए तथा जैसा भी आपका शौक हो, उसी के अनुसार पढ़ना, गाने सुनना या इस तरह के कुछ और काम करने चाहिए। इस प्रकार उस समय का कुछ सदुपयोग भी आप कर लेंगे और ऊल-जलूल सोचने से भी बच जाएंगे। नहीं तो लेटकर आप दुनिया भर की व्यर्थ बातें सोचने लग जाएंगे।
नोट:- इसलिए अनिद्रा से पीड़ित लोगों को लंबी सैर, हल्का व्यायाम और सही भोजन का सेवन करके इस रोग पर नियंत्रण पाना चाहिए।
यहां मैं एक बात स्पष्ट कर दें कि गहरी नींद आने का ज्यादा देर तक सोए रहने से कोई संबंध नहीं है। यह तो व्यक्ति के अपने स्वभाव और शारीरिक ढांचे पर निर्भर करता है। यदि किसी को देर रात तक सोने के बावजूद भी अगले दिन बेआरामी महसूस नहीं होती तो यह स्पष्ट है कि आपकी नींद की ज़रूरत पूरी हो रही है। वैसे वैज्ञानिकों का मत है कि बच्चों को नींद की ज्यादा ज़रूरत होती है।
छोटे बच्चों को 15-16 घंटे ज़रूर सोना चाहिए। बड़े बच्चों को 9 से 10 घंटे तथा बड़ों को 6 से 8 घंटे नींद की आवश्यकता होती है। बुजुर्ग व्यक्ति 60 साल से ज्यादा उम्र वाले कम सोते हैं। परन्तु यदि वह रात को ज्यादा नहीं सोते तो दिन में झपकी लगाकर अपनी नींद पूरी कर लेते हैं।
परन्तु फिर भी यह जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति को इतने घंटे सोना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का अपना-अपना हिसाब-किताब होता है। कुछ व्यक्ति 5-6 घंटे सोकर भी चुस्त-दुरुस्त रहते हैं तथा कुछ की 10 घंटे सोकर भी तसल्ली नहीं होती। परन्तु एक बात तो ज़रूर है कि चाहे कोई जितने घंटे सो जाए, उसको गहरी नींद जरूर आनी चाहिए।
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