जब बच्चे का पेट खाली हो जाता है, तो उसके पेट में संकुचन होने लगता है। इससे आमाशय में पीड़ा महसूस होती है। बच्चा इस पीड़ा के कारण रोना आरंभ कर देता है। यह पीड़ा ही क्षुधा-पीड़ा है। मां झट समझ जाती है कि दूध पिलाने के लिए अलार्म है। वह अपने कामधाम छोड़कर बच्चे को दूध पिलाने लग जाती है। आरंभ से ही बच्चे को दूध पिलाने का समय निश्चित कर लेना चाहिए। आप भी निश्चित रहेंगी तथा बच्चा भी पूरे समय का आदी होने लगेगा।
मान लो आप 3-3 घंटे का अंतर रखना चाहती हैं। प्रातः 6 बजे दुग्धपान शुरू करें तो 9, 12 तथा सायं 3, 6, 9 बजे बच्चे को दूध पिलाएं। इस समय को याद रखना भी आसान है। हां, आधी रात को 2 और 3 बजे के बीच एक बार और बच्चे को दूध पिला दें।
कुछ माताएं जब-तब बच्चा जरा-सा रोया कि स्तन उसके मुंह से लगा देती हैं। वह चाहे दूध पिए या न पिए, यह बुरी आदत है। कुछ समय बाद आप दिन में हर तीन घंटों के अंतर को चार घंटों के अंतर की आदत बनाएं। बच्चा भी उसी अनुसार ढल जाएगा।
शिशु को जब भूख लगती है, वह रोने लगता है। मां उसे तभी दूध पिलाने लगती है। इस प्रकार यह 24 घंटों में बारह-तेरह बार भी हो जाता है। यह स्थिति दो महीने चलती है। फिर प्रकृति उसे निश्चित घंटों के अंतराल पर ले आती है और शिशु दिन में पहले आठ बार, फिर छः बार पर आ जाते हैं। इसी को ‘शिशु की मांग’ योजना कहते हैं।
सभी शिशु एक समय में एक समान दूध नहीं पीते। कोई कम तो कोई अधिक पीता है। यही कारण है कि कम दूध पी सकने वाले शिशु जल्दी भूख की पीड़ा महसूस करके रोने लगते हैं, जबकि अधिक दूध पीने वाले देर में भूख महसूस करते हैं। अतः रोते भी देर से हैं।
प्रत्येक शिशु अपनी प्रकार का विशिष्ट होता है। अतः उसकी दूध की मांग अलग हो सकती है। इसलिए जब वह रोए, उसे दूध पिला दें। धीर-धीरे वह निश्चित अंतराल वाली स्थिति में भी आ जाएगा और कमोवेश ठीक अंतराल से दूध मांगेगा।
मां का दूध अधिक सुपाच्य होता है। जल्दी पच जाता है। गाय या भैंस का दूध पचने में अधिक समय लेता है। मां का दूध आधे घंटे बाद ही पचने लग जाता है। पूरा दूध जल्दी पच जाता है, जबकि गाय का दूध पूरा पचने में तीन से चार घंटे लेता है। यह भी बड़ा अंतर है। आपने अपने शिशु को पूरी तरह अपने दूध पर रखा हुआ है या कुछ गाय के दूध पर भी, शिशु की दूध की मांग इस बात पर बड़ा निर्भर करती है।
शिशु अपनी जरूरत को स्वयं भली प्रकार जानता है। वह तभी रोता है, जब उसे भूख लगती है। जब दूध मांगे, पिला देना चाहिए। बच्चे के भूख लगने पर रोने और तब भी दूध न देने का अर्थ है, उसका अहित करना। ऐसा न करें।
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