शिशु को दूध कब और कैसे पिलाना चाहिये | शिशु को दूध पिलाने के फायदे

माँ का दूध नवजात शिशु के कोमल अंगों तथा पाचन क्रिया के अनुरूप प्रकृति द्वारा निर्मित होता है। इसमें बच्चे की जरुरत के सभी पोषक तत्व उचित मात्रा में होते हैं। इन्हे शिशु आसानी से हजम कर लेता है। माँ के दूध में मौजूद प्रोटीन और वसा गाय के दूध की तुलना में भी अधिक आसानी से पच जाता है। इससे शिशु के पेट में गैस बनने , कब्ज , दस्त आदि होने या दूध उलटने की सम्भावना बहुत कम होती है।

शिशु को दूध पिलाने के फायदे

1। शरीर की वृद्धि:

जो बच्चे थोड़ी मात्रा में दूध पीते हैं, वे बार-बार तो मांगेंगे ही। जो एक बार में काफी मात्रा में दूध पीकर पेट भर लेता है, वह देर से दूध मांगेगा। जो अपने शरीर की तीव्र गति से वृद्धि कर पाता है, वह शिशु यकीनन पूरी तरह स्वस्थ है और अधिक दूध पीता है। जो देर से करता है, वह पूर्ण स्वस्थ नहीं है और दूध भी कम पीता है। इस ओर भी ध्यान रखें तथा उसे डॉक्टर को जरूर दिखाएं।

2। मानसिक प्रभाव दूर होता है:

स्तनमुख अपने मुंह में लेने के लिए बच्चे को सिखाना नहीं पड़ता। न ही कोई स्तन चूस कर समझाता है कि बेटा ऐसे चूसो। वह इस क्रिया को सीखकर ही पृथ्वी पर आता है। जो बच्चे स्वस्थ होते हैं, वे तुरंत स्तन चूसना आरंभ कर देते हैं। वे जल्दी-जल्दी स्तन चूसते हैं। पेट भी जल्दी भर लेते हैं। बच्चे के दूध चूसने से मां तथा बच्चे पर अच्छा मानसिक प्रभाव पड़ता है। दोनों सुख की अनुभूति करते हैं।

जो बच्चे अस्वस्थ या कम विकसित होते हैं, उनके मुंह में स्तनमुख डालना पड़ता है, जिसे वे धीरे-धीरे चूसते हैं। उनका पेट भी जल्दी नहीं भरता। उनको अधिक देर स्तन चूसने का अवसर दिया जाना चाहिए।

शिशु को दूध पिलाने का तरीका

1। लेटकर दूध पिलाना:

कुछ समय तक तो मां लेटकर ही बच्चे को दूध पिलाती है। चारपाई पर जिधर बच्चे का मुंह हो, मां अपनी छाती को उसी ओर करके उसे दूध पिलाती है। जब मां स्वस्थ होकर, प्रसव की दिक्कतों से निवृत्त होकर, बैठने की स्थिति में आ जाती है, तब वह बच्चे को लेटे-लेटे दूध पिलाने की बजाए, उसे गोदी में लिटाकर दूध पिलाने लगती है।

2। दोनों बांहों में लेकर

मां बच्चे को अपनी दोनों बांहों में इस प्रकार लेती है कि जिस ओर के स्तन का दूध पिलाना हो, उस ओर अपनी बाजू पर बच्चे का सिर रखती है। बाजू को थोड़ा उठाकर यों कोण बनाती है कि बच्चा दूध आसानी से पी सके। ऐसे में बच्चे का सिर बाकी शरीर से थोड़ा ऊंचा होता है। इससे उसका मुंह स्तन पर आसानी से पहुंच जाता है।

दूसरी बाजू का अग्र भाग बच्चे को संभालने में मदद करता है। यदि शिशु काफी स्वस्थ व चुस्त है, तो वह कभी-कभी उछल पड़ता है। इसलिए भी दूसरी बाजू का सहारा जरूरी है, ताकि बचाव रहे तथा बच्चा उछलकर गिरे नहीं।

3। दोनों स्तनों से दूध पिलाएं:

शिशु को अपनी सुविधा देखते हुए एक ही स्तन से या बहुधा एक ओर से दूध नहीं पिलाना चाहिए। उसे एक ही बार में, आधा-आधा समय दोनों स्तनों से दूध पिलाने की आदत डालें, वरना मां के स्तन आकार में छोटे-बड़े हो सकते हैं।

बच्चे को कितनी देर दूध पिलाएं:

बच्चे को प्रारंभिक तीन चार दिन प्रत्येक स्तन केवल दो मिनटों के लिए चूसने दें। इसके बाद यह अवधि बढ़ा दें। कुछ समय बाद यह अवधि पन्द्रह-सोलह मिनटों तक चली जाए। जिसमें आठ-आठ मिनट के लिए एक-एक स्तन चूसने को दें। बच्चे का जैसे ही पेट भर जाता है, वह स्वतः स्तन मुख छोड़ देता है। कुल पन्द्रह मिनट में उसका पेट खुब भर जाता है। यदि पहले भर जाएगा तो पहले छोड़ देगा।

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