टी.बी. रोग क्या है - टी.बी. रोग के कारण, लक्षण और घरेलू उपाए
आज भी टी.बी। (क्षय) रोग या तपेदिक एक विश्वव्यापी स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। इस रोग के जीवाणुओं के बारे पहले ही पता चल चुका था और अब रोग का टीका और सफल इलाज भी उपलब्ध हैं लेकिन इसके बावजूद रोग पूरी दुनिया में बढ़ रहा है। भारत में भी टीबी रोग एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बना हुआ है।
एकल संक्रामक एजेंट के कारण होने वाली अन्य बीमारियों की तुलना में, टीबी विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा रोग है।
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टी.बी। (क्षय) रोग, यक्ष्मा अथवा तपेदिक जिसे अंग्रेजी में टयूबरकुलोसिस (Tuberculosis) टी.बी भी कहते हैं। यह मायकोबेक्टेरियम टयूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के संक्रमण से होने वाला रोग है।
इसमें प्रायः मरीज के फेफड़े ही प्रभावित होते हैं लेकिन बीमारी, त्वचा, आँतों, हड्डियों, जोड़ों, मस्तिष्क की झिल्लियों, और जनन अंगों को भी प्रभावित कर सकती है।
लसिका ग्रन्थियों में भी रोग का संक्रमण हो सकता है। इस तरह केवल यह मानना कि तपेदिक फेफड़ों का रोग है यह सही नहीं है। यह शरीर के प्रायः सभी अंगों में हो सकता है।
टीबी रोग की जानकारी प्राचीन काल में भी लोगों को रही है। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के कारण मरीज कुछ ही महीनों के इलाज से पूरी तरह से स्वस्थ हो जाता है और यदि वह पूरा इलाज कर ले तो भविष्य में भी उसे रोग नहीं होता।
टी.बी। (क्षय) रोग के लक्षण कई तरह के मिलते हैं। लक्षणों को निम्न दो श्रेणियों में बाँट सकते है-
- संक्रमण के कारण वे लक्षण जो पूरे शारीरिक तन्त्र को प्रभावित करते हैं- इनमें थकान, कमजोरी, भूख न लगना, वजन घटना, खून की कमी, रात में सोते समय पसीना आना, बुखार रहना (बुखार अक्सर दोपहर बाद या शाम को आता है) इत्यादि शामिल हैं।
- स्थानीय अंगों में संक्रमण के कारण उत्पन्न लक्षण
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टी.बी। (क्षय) रोग के प्रकार और उनके लक्षण निम्न प्रकार से दिये गए है-
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लक्षण- खाँसी, खंखार में रक्त (खून) आना, साँस लेने में तकलीफ होना, सीने में दर्द इत्यादि।
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लक्षण-आवाज मोटी हो जाना, खाने में तकलीफ होना।
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लक्षण- दस्त लगना, पेट दर्द, आँतों में रुकावट, खाने का पाचन ठीक से न होना।
- किडनी (गुर्दे) का क्षय रोग
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लक्षण- पेशाब से खून आना, बार-बार पेशाब जाना।
- फेलोपियन ट्यूब्स (डिंब नलिकाओं) का क्षय रोग
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लक्षण- नलिकाओं में सूजन, मवाद बनना, बांझपन।
- मस्तिष्क की झिल्लियों (मेनिनजीन) का क्षय रोग
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लक्षण- सिर दर्द, गरदन में अकड़न, झटके आना, उल्टियाँ होना।
- लसिका ग्रन्थियों का क्षय रोग
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लक्षण- ग्रन्थियों का आकार बढ़ना, उनमें मवाद पड़ना, दर्द होना।
- हड्डियाँ एवं जोड़ों का क्षय रोग
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लक्षण- दर्द और सूजन आना, मवाद पड़ना, फोड़े बनना।
टीबी (क्षय) रोग का इलाज आज पूरी तरह से संभव है जो इस प्रकार से किए जाते है और सलाह दी जाती है कि कैसे टी.बी। के रोग से बचा जा सके-
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टी.बी। (क्षय) रोग होने के कारण निम्न प्रकार से सहायक होते हैं। जो नीचे दिये गए है-
- गाँव-देहातों में स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध न होने के कारण रोग का इलाज जल्दी नहीं हो पाता, ऐसी स्थिति में टीबी रोगी, जो इलाज नहीं ले पाते हैं, जब खाँसते है तो लाखों की संख्या में रोग के जीवाणु ड्रापलेट्स अथवा बलगम की छोटी-छोटी बूंदों के द्वारा बाहर निकलते हैं। आसपास मौजूद स्वस्थ व्यक्ति जब इन जीवाणुओं को श्वास द्वारा खींचते हैं तो उन्हें भी तपेदिक का संक्रमण लग जाता है
- गरीबी के कारण लोग रहन-सहन का उचित स्तर नहीं बना पाते। अधिक थकान वाला शारीरिक श्रम, अपर्याप्त रोशनी और हवा वाले मकान तथा पर्याप्त पौष्टिक तत्वों से युक्त भोजन का अभाव इत्यादि भी इस रोग के लिए जिम्मेदार हैं। इन कारणों से रोग प्रतिरोधक क्षमता जब कम हो जाती है जो शरीर क्षय रोग का शिकार आसानी से बन जाता है और जो मरीज धन के अभाव के कारण अपना इलाज सही तरीके से नहीं करवा पाते और वे स्वयं अपने परिवार के सदस्यों और सम्पर्क में आने वाले व्यक्तियों को रोग का शिकार बनाते रहते हैं।
- नशे, औद्योगिकीकरण बढ़ता हुआ प्रदूषण और अति संकुलता अथवा ओवर क्राउंडिंग भी तपेदिक बढ़ाने में सहायक हैं।
- प्रदूषित अथवा घनी आवादी वाले क्षेत्रों में रोग अधिक देखा गया है। इसी तरह बीड़ी मजदूर, जो तम्बाखू युक्त हवा में साँस लेते हैं अथवा अधिक मात्रा में बीड़ी पीते हैं उनमें भी सामान्य लोगों की अपेक्षा टीबी (क्षय) रोग अधिक होता है।
- अज्ञानता का भी रोग से घनिष्ट सम्बन्ध है। इस कारण बहुत से लोग अपने बच्चों को बी.सी.जी. के टीके नहीं लगवाते।
- इसके अलावा वे अस्पतालों में जाकर सही समय पर रोग का इलाज भी नहीं करवा पाते, इलाज करवाते भी हैं तो आधा-अधूरा।
- पैतृक गुण भी रोग के लिए एक सीमा तक उत्तरदायी होते हैं अर्थात् परिवार में यदि पिता या माता को रोग है तो बच्चों में भी यह रोग हो सकता है। इस तरह इसका वंशानुगत प्रभाव भी होता है।
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टी.बी। (क्षय) रोग से बचने के उपाए के लिए निम्न कुछ बातो को ध्यान मे रखना चाहिए-
- नवजात शिशुओं को जन्म के तुरन्त बाद अथवा 6 सप्ताह तक अन्य टीकों के साथ बी. सी. जी. का टीका भी आवश्यक रूप से लगवा देना चाहिए।
- रोगी के निकट सम्पर्क में आए घर के सदस्यों अथवा अन्य व्यक्ति चिकित्सक की सलाह से सुरक्षात्मक इलाज के रूप में आई. एन. एच. और एथेमब्यूटाल की दवा नौ महिने तक खा सकते हैं।
- खुले और स्वच्छ वातावरण में रहना
- पौष्टिक आहार का सेवन करना
- शारीरिक श्रम के पश्चात् पर्याप्त आराम भी जरूरी है
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- रोग पर काबू के लिए स्वास्थ्य की नियमित जाँच भी आवश्यक है
- इस सबके अलावा बचाव के लिए ऐसे व्यक्तियों की जाँच की जानी चाहिए जिनको इस रोग की सम्भावना अधिक होती है जैसे- बीड़ी और एस्बेस्टस के कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की जाँच रोग के लिए की जानी चाहिए चूंकि मधुमेह के रोगियों को भी क्षय रोग की सम्भावना होती है अतः उन्हें भी जाँच करवा लेनी चाहिए।
- इनके अलावा बसों के चालक, बाल बनाने वाले ड्रेसर, होटल के कर्मचारी एवं अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों, परिचारिकाओं इत्यादि को क्षयरोग से संक्रमण के लिए अपनी जाँच करवानी चाहिए क्योंकि ऐसे व्यक्ति अन्य लोगों में रोग आसानी से फैला सकते हैं।
- सुबह-सुबह बगीचों या खेतों में टहलते हुए लम्बी-लम्बी साँसें लेना चाहिए
- ताजा पौष्टिक आहार जिसमें विटामिन और प्रोटीन की मात्रा अधिक हो जैसे दूध, अण्डे, फल इत्यादि खाना चाहिए
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