टाइफाइड (मियादी बुखार) क्या है | टाइफाइड के लक्षण और घरेलु इलाज

रोग का मुख्य कारण सैल्मोनिला टाइफोसा नामक दंडाणु है। जो आंत्रिक ज्वर के रोगियों के मल और मूत्र द्वारा निकलता रहता है। उन मलमूत्रादि से खान-पान एवं पेय पदार्थ दूषित होकर, यह रोग समाज में फैल जाता है। खाने-पीने के पदार्थ, मक्खियां, गंदगी तथा अंगुलियों के द्वारा जीवाणु का प्रसार होता है। दूषित जल तथा दूध इस रोग के प्रसार के मुख्य साधन हैं।

टाइफाइड के लक्षण

टाइफाइड रोग के लक्षणों में अनेक विभिन्नता मिलती हैं।

प्रथम सप्ताह

ज्वर का सीढ़ी की तरह चढ़ना, (संध्या को दो डिग्री बढ़ना तथा प्रातः एक डिग्री कम हो जाना), सप्ताह के अंत तक ज्वर चरमसीमा (103°F-105°F) तक पहुंच जाता है।

द्वितीय सप्ताह

ज्वर तेज एवं ठहरा हुआ नाड़ी की चाल में तेजी, सिर दर्द में राहत, पेट में अफारा, तिल्ली का अधिक बढ़ना, अनेक रोगियों में पीला, पतला दस्त, अनेक रोगियों में कब्ज, हृदय की दुर्बलता, निद्रा की कमी या बिलकुल न आना, कमजोरी आदि लक्षण मिलते हैं।

तृतीय सप्ताह

ज्वर को धीरे धीरे कम होना, कमजोरी, दुर्वलता में दिन प्रतिदिन सुधार, कभी-कभी कंपन, मूत्र का रुक जाना, अनजाने में बड़बड़ाना, अनजाने में मलमूत्र का निकलना आदि लक्षण मिलते हैं।

चतुर्थ सप्ताह

रोगी के सभी लक्षण कम हो जाते हैं। तापक्रम स्वाभाविक से भी कम, नाड़ी की गति अति मंद, जिह्वा साफ, भूख का लगना स्वास्थ्य सूचक लक्षण बढ़ने लगते हैं। कभी-कभी पांचवें छठे सप्ताह तक रोग के लक्षण मिलते हैं और रोग ठीक होने पर भी बहुत दिनों तक रोगी का स्वास्थ्य गिरा रहता है।

टाइफाइड में घरेलु चिकित्सा

रोगी को पूर्ण विश्राम देना चाहिए। मलमूत्र त्यागने के लिए भी रोगी को चारपाई से उठने न दें। लेटे-लेटे ही सब क्रियाएं होनी चाहिए। रोगी के मलमूत्रादि के निराकरण का समुचित प्रबंध होना चाहिए। सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रोगी को सदा लेटे रहने से शय्या व्रण होने का भय रहता है।

अतः करवट बदलते रहे और डस्टिंग पाउडर डालते रहें। इस रोग में दूध सर्वोत्तम आहार है। दो-तीन घंटे के बीच-बीच दूध देते रहे। दूध में चाय और काफी मिलाकर भी दे सकते हैं।

प्रथम सप्ताह

  • मृग श्रृंग भस्म- 120 मि.ग्राम , मुक्ताशुक्ति भस्म- 120 मि.ग्राम - 1X3 मधु के साथ।
  • खूब कला- 10 ग्राम , मुनक्का- 10 ग्राम - 1 मात्रा काढा बनाकर रात में सोते समय।

द्वितीय सप्ताह

  • कस्तूरी भैरव रस - 120 मि.ग्राम , मुक्ताशुक्ति भस्म-120 मि.ग्राम, 1X2 प्रातः सायं मधु से।
  • ज्वराय॑भ्र रस 120 मि.ग्राम , सौभाग्य वटी-240 मि.ग्राम --1x2 दो मात्रा, रात में अदरक रस से।

तृतीय सप्ताह

  • बसंतमालती रस-120 मि.ग्राम , प्रवाल भस्म- 120 मि.ग्राम , अमृतासत्व- 120 मि.ग्राम 1x2 प्रातः सायं मधु से।
  • सर्वज्वरहर लौह -240 मि.ग्राम, पिप्पली चूर्ण- 240 मि.ग्राम। 1x2 मधु से।

चतुर्थ सप्ताह

  • बसंतमालती रस- 120 मि.ग्राम , नवायस चूर्ण -240 मि.ग्राम , सितोपलादि चूर्ण- 2 ग्राम 1x2 मधु से दो बार।
  • लोहासव- 15 मि.लि., अमृतारिष्ट- 15 मि.लि. 1x2 भोजनोत्तर सम भाग जल से।
  • महालाक्षादि तेल से मालिश करे
  • वात की अधिकता में वृहत वातचिंतामणि 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद से दें।
  • तहत कस्तुरी भैरव रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद से चटाएं।
  • पित्त की अधिकता में, मुक्तापिष्टी 120 मि.ग्राम शहद के साथ दो बार दें।
  • प्रवाल पिष्टी 120 मि.ग्राम शहद में मिलाकर दो बार चटाएं।
  • नागार्जुनाभ्र रस 120 मि.ग्राम शहद में मिलाकर दूध के साथ दें।
  • कफ की अधिकता में मकरध्वज 120 मि.ग्राम शहद में मिलाकर दो बार दें।
  • सौभाग्य वटी 120 मि.ग्राम दिन में दो बार गर्म जल से दें।
  • रक्तस्राव की अवस्था में सिद्ध प्राणेश्वर रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
  • चंद्रकला रस 125 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
  • हृदय दौर्बल्य की अवस्था में मुक्तापिष्टी 120 मि.ग्राम, वृत कस्तूरी भैरव रस 120 मि.ग्राम शहद में मिलाकर दिन में दो बार दें।
  • निद्रा न आने की दशा में सर्पगंधा चूर्ण 250 मि.ग्राम की मात्रा दिन में तीन या चार बार दें।
  • दाने ठीक न निकल रहे हों तो 5-10 ग्राम लौंग को डेढ़ लीटर जल में उबाल लें, उसी पानी को पीने को दें।
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