कुकर खांसी को काली खांसी भी कहा जाता है। यह समस्या ज्यादातर 1 से 15 साल तक के बच्चों में होती है लेकिन बड़े भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। काली खांसी संक्रामक बैक्टीरियल इंफैक्शन है, जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को होता है। जब कभी एक वर्ष से छोटे शिशु को हो तो, यह और भी अधिक खतरनाक होता है। यह बहुत बार जानलेवा हो जाता है। यदि यह ठीक भी हो जाए, तो भी अपने पीछे लंबे प्रभाव छोड़ जाता है। इस रोग से शिशु को बहुत कष्ट होता है। बहुत पीड़ा होती है। इस रोग से अनेक विषम रोग पैदा हो जाने का डर सदा बना रहता है। निमोनिया तक का प्रहार सहना पड़ सकता है।
1। अदरक से- आप अदरक का रस, नींबू का जूस, प्याज का रस मिलाकर पीएं। रोजाना अदरक का सेवन करने से काली खांसी को कुछ हफ्तों में दूर किया जा सकता है।
2। हल्दी से- हल्दी में एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल होते हैं जो गले में बलगम जमा नहीं होने देते। एक चम्मच शहद में हल्दी मिलाकर खाएं।
3। लहसुन से- 1 चम्मच लहुसन की बारीक कटी हुए कलियों को पानी में उबाल लें। अब इस पानी से भाप लें। रोजाना भाप लेने से काली खांसी 2 हफ्तों में ठीक हो सकती है।
4। अजवायन से- चार चम्मच जैतून के तेल में 3-4 बूदें अजवायन की पत्तियां डालकर हल्का गर्म करें। जब तेल गुनगुना हो जाएं तो इससे रात को सोने से पहले छाती की मालिश करें।
5। मुलेठ से- मुलेठी का एक छोटा टुकड़ा लेकर उसको मुंह में डालकर चूसने से काली खांसी से राहत मिलती है।
6। शहद और मूली का रस से- एक चम्मच शहद मेें एक चम्मच मूली का रस मिलाकर पीएं। दिन में 2 से 3 बार पीने से छाती में बलगम और काली खांसी से राहत मिलती है।
यह रोग बेहद खतरनाक है। मगर आज इसके बचाव के इंजेक्शन बन चुके हैं। यदि ये समय पर लग जाएं तो शिशु को कुकर खांसी होगी ही नहीं। शिशु को टीका लगवाकर, उसके शरीर में रोग से लड़ने की क्षमता आ जाती है अथवा रोग होता ही नहीं। यदि शिशु को आठ माह का हो जाने पर तथा फिर 5 वर्ष की आयु हो जाने पर दो टीके लग जाएं, तो उसे कुकर खांसी नहीं होती।
शिशु को कुकर खांसी में लगने वाले टीके चेचक आदि से भिन्न होते हैं। डिप्थीरिया तथा कुकर खांसी, दोनों अलग-अलग इंजेक्शन हैं। मगर फिर भी यदि डॉक्टर चाहे, तो इन दोनों को एक साथ दे सकता है। मां का दायित्व है कि वह अपने शिशु को हर तरह से स्वस्थ व रोग रहित रखने के लिए सभी कारगर कदम उठाए।
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