जिस रोग में शरीर के ऊपर के भाग से या नीचे के भाग से खून बहता हो उसे रक्तपित्त कहते हैं।
1। उर्ध्व भाग से - मुख, कान, नाक, एवं आंख इन सात जगहों में से किसी स्थान से निकलने वाले रक्त को उर्ध्व रक्तपित्त कहते हैं।
2। अधोगमार्ग से - गुदा या मूत्र छिद्र (योनि या, शिश्न) इन दोनों जगहों से निकलने वाले रक्त को पित्त अधोग रक्तपित्त कहते हैं।
3। जब दोनों तरफ ऊपर तथा नीचे से रक्त बहता है तब उसे उभयज कहते हैं।
शरीर के ऊपर या नीचे के भाग से निकलने वाले खून से, शिथिलता, कास, श्वास, बुखार, भूख न लगना, अपचन, उल्टी, प्यास, जलन, नाड़ी की दुर्बलता, बार-बार मल त्याग, पीलिया और मूच्र्छा, चक्कर आना आदि रक्तपित्त के लक्षण हैं।
इनके साथ खाने की औषधि देते रहना चाहिए।
लाभ - पुराने गेहूं, जौ, चावल, मूग, मसूर, चना, धान की खीलें, परवल, साबुदाना, लौकी, तोरी, चोलाई, प्याज, आदि अनार, मौसमी, आंवला, संतरा, अंगूर, किशमिश, मक्खन, मिश्री गाय का या बकरी का दूध पथ्य है। शीतल जल से स्नान शीतल मंद सुगंधित हवा, चांदनी रात में नौका विहार आदि लाभकारी है।
नुकसान - अम्ल कटु, गर्म, तीक्ष्ण पदार्थ, लहसुन, राई, सरसों, मछली, तिल, उड़द, क्रोध, धूप, मैथुन, धुम्रपान आदि हानिकारक हैं।
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