चालमोंगरा के फायदे एवं चालमोगरा के तेल से लाभ | chalmogra ke fayde

चालमोंगरा को संस्कृत में ‘तुबरक', 'कुष्ठ बैरी', 'कटुकपित्थ' आदि नामों से पुकारा जाता है। तुबरक का अर्थ होता है रोगों को नष्ट करने वाला पौधा। इसकी दो किस्में और भी होती हैं, जिन्हें जंगली आल्मण्ड' अर्थात् जंगली बादाम के नाम से पुकारा जाता है। तुबरक इस जाति के एक विशेष वृक्ष का नाम है। इस प्रजाति के जिन वृक्षों में तुबरक तेल के समान तेल प्राप्त हो, उन्हें इसी प्रजाति में गिना जाता है। उन्हें 'चालमोंगरा' या 'चालमुग्रा' कहते हैं। 

इसके वृक्ष नमी वाले स्थानों में होते हैं, जहाँ वर्षा अधिक होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि चालमुग्रा' बर्मी नाम है। यह वृक्ष सदैव हरा-भरा रहता है और जमीन से चालीस-पचास फीट की ऊँचाई तक जाता है। इसके पत्ते शरीफे की भाँति दस इंच लंबे होते हैं। वृक्ष के चिकने तनों पर और मुख्य शाखाओं पर चाकलेटी रंग के चिकने और कठोर फल लगते हैं, जो संतरे के समान गोल होते हैं।

इस फल में अनेक बीज होते हैं । इस फल के छिलके कठोर होते हैं। इस वृक्ष पर सफेद रंग के पुष्प गुच्छों के रूप में खिलते हैं। ये फूल एकलिंगी होते हैं। इसके नर और मादा पुष्प अलग-अलग वृक्षों पर खिलते हैं। इसके वृक्ष ज्यादातर दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर, दक्षिण में कोंकण और ट्रावनकोर तथा लंका में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।

चालमोंगरा के रोगोपचार में फायदे

चालमोंगरा के बीजों से तेल प्राप्त किया जाता है। इसका तेल भूरे रंग का होता है, जो गाढ़ा होता है। इस तेल में से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती रहती है। सर्दियों में यह घी के समान जम जाता है। यह तेल तिक्त और कटु होता है।

यह चर्मरोगों में विशेषरूप से लाभदायक है। कफ, वात, दर्द, कृमि, प्रमेह आदि रोगों में भी इसका प्रयोग किया जाता है। रक्त को साफ करता है। मधुमेह में भी यह लाभदायक है। इसकी तासीर गर्म होती है।

1. कफ एवं वायु विकार में चालमोंगरा के फायदे

इसकी 5 बूंद तेल सुबह-शाम शहद के साथ लेने से कफ एवं वायु-विकार में लाभ होता है।

2. चर्म रोग में चालमोंगरा के फायदे

इस तेल की 5-6 बूंदें शहद के साथ प्रारंभ करें और 15 बूंदों तक बढ़ाये। अधिक-से-अधिक 50-60 बूंदें ले सकते हैं। इसके प्रयोग से कैसा भी चर्म रोग होगा, ठीक हो जाएगा। इससे कोढ' तक ठीक हो जाता है। यह तेल मक्खन, घी या मलाई में भी मिलाकर खिलाया जा सकता है। इसके सेवन काल में रोगी को फल और दूध ही देना चाहिए। फल मीठे होने चाहिए, खट्टे नहीं। इससे विशेष लाभ होता है।

इसके प्रयोग के समय नमक का प्रयोग पूर्णत: छोड़ देना चाहिए। तीखे मसाले, गुड़ और मिठाइयों का भी परहेज करना चाहिए। यदि इससे उल्टी आती हो या जी मिचलाता हो तो इसका प्रयोग रोक देन चाहिए।

3. दाद और कुष्ठ रोग में चालमोंगरा के फायदे

इसके तेल को नीम के तेल या मक्खन में मिलाकर ‘दाद' पर मालिश करें। इसका प्रयोग कम-से-कम एक माह तक करें। 10 ग्राम तेल को वेसलीन या मक्खन में या नीम के तेल में मिलाकर रख लेना चाहिए। कुष्ठ रोग वाले को पहले इस तेल की 8-10 बूंदें शहद या मक्खन के साथ दें। इससे उल्टी होकर शरीर के भीतर की गंद बाहर निकल जाएगी।

उसके बाद इस तेल की 5-6 बूंदें दूध, मलाई, शहद या मक्खन में रोगी को सुबह-शाम भोजन के बाद खिलाएँ। धीरे-धीरे बूंदों की मात्रा बढ़ाते जाएँ। नीम के तेल में मिलाकर ऊपर से लेप भी करें। खाज-खुजली' में इसके तेल को अरण्ड के तेल में मिलाकर उसमें गंधक, कपूर और नींबू का रस मिलाकर त्वचा पर लगाएँ।

4. रक्त शोधन में चालमोंगरा के फायदे

तेल की 5 बूंदें मक्खन के साथ सुबह-शाम खाना खाने के बाद रोगी को देने से रक्त विकार दूर हो जाता है और रक्त शुद्ध हो जाता है।

5. आँखों के रोग में चालमोंगरा के फायदे

चालमोंगरा के बीजों को किसी बंद सकोरे में जला लें। उसे एक सरैया से ढक दें, ताकि धुआँ बाहर न निकले। उस धुएँ से जो काजल प्राप्त हो उसमें चुटकी भर सेंधा नमक महीन पिसा हुआ, चार-पाँच बूंदें तिल का तेल और सुरमा भी चुटकी भर मिला लें। इससे जो काजल या अंजन बने उसे रात में सोते समय सलाई से आँखों में लगाएँ। इससे आँख के रोग जैसे रतौंधी,रोहे और आँखों की लाली कट जाती है। आँखों के लिए यह एक अच्छा अंजन है।

6. उपदंश (आतशक) में चालमोंगरा के फायदे

इस रोग के दाने जब शरीर पर फैले हुए हों तो जीवन दूभर लगने लगता है। इस रोग के उपचार के लिए चालमोंगरा के तेल की 10 बूंदें या फिर इससे कम, जितनी पचाने में आसानी हो, मक्खन में मिलाकर सेवन करे और धीरे-धीरे प्रतिदिन इसकी मात्रा बढ़ाते जाएँ, जो 50-60 बूंदों से अधिक न हो। इसके सेवन से उपदंश शांत हो जाता है। मिर्च, मसाले और खटाई आदि का परहेज रखे। घी-दूध ज्यादा पीने की कोशिश करें।

7. गठिया में चालमोंगरा के फायदे

इस रोग में भी यही प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। गठिया रोग में इससे आराम मिलता है। इसके बीजों का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में तीन बार खाने से भी बड़ा आराम मिलता है।

8. जख्म, त्वचा की फटन यादि में चालमोंगरा के फायदे

चालमोंगरा के बीजों को महीन पीस लें और उसे घावों पर बुरक दें। त्वचा फटी हो तो नीम के तेल में मिलाकर लेप कर दें। इससे जल्द आराम आ जात है।

9. क्षय रोग में चालमोंगरा के फायदे

क्षय रोग जिसे टीबी भी कहते है इसमें इसके तेल की 5-6 बूंदें प्रतिदिन दूध या मक्खन के साथ सेवन करें और मक्खन में मिलाकर छाती पर इसे मलें। इससे इस रोग में बहुत जल्द लाभ होता है।

10. शुगर में चालमोंगरा के फायदे

इसके फलकी गिरी का चूर्ण एक चम्मच लेकर दिन में एक-एक करके तीन बार ताजे पानी से सेवन करने पर पेशाब से शुगर जानी बंद हो जाती है। जब शुगर आनी बंद हो जाए तो इसका प्रयोग बंद कर दें। नोट- इसका प्रयोग सावधानी पूर्वक किसी योग्य चिकित्सक की देख-रेख में ही करें। क्योंकि आमाशय के लिए हानिकारक है। इसे मक्खन के साथ खाना खाने के बाद ही लेना चाहिए।

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