नवजात शिशु के जन्म के बाद होने वाले परिवर्तन|

जब शिशु मां के गर्भ से बाहर आकर इस नए वातावरण के संपर्क में आता है, तो उसके सारे शरीर पर, त्वचा के ऊपर कहीं कहीं श्वेत रंग की वस्तु चिपकी रहती है। तेल की सहायता से इसको दूर किया जाता है। जब यह सफेद वस्तु हट जाती है, तो नीचे से कोमल त्वचा सामने आ जाती है। इस समय त्वचा का रंग गुलाबी होता है, जो बहुत अच्छा लगता है। त्वचा से जो सफेद वस्तु तेल के माध्यम से हटा दी जाती है, उसे चिकित्सक ‘वरनिक्स कासियोजा' नाम देते हैं।

शिशु के जन्म के बाद परिवर्तन

1। रंग में परिवर्तन : यह गुलाबी रंग अधिक समय तक नहीं रहता। यह 5-7 दिनों में अपने असली रंग में परिवर्तित हो जाता है। यह गोरा, गेहुंआ अथवा सांवला हो जाता है। त्वचा पर इस वक्त झुर्रियां दिखाई देती हैं। शिशु बहुत कोमल होता है। चर्म के नीचे जो वसा रहती है, वह बहुत कम होती है।

2। झुर्रियां गायब : मजे की बात तो यह है कि झुर्रियां दो ही महीनों में गायब हो जाती हैं। इस समय यदि हाथ लगाकर देखें तो सारा शरीर, कोमल, मुलायम, चिकना प्रतीत होता है। ये परिवर्तन स्वतः होते जाते हैं।

3।

कामला रोग : कुछ शिशु जन्म के साथ कामला रोग लेकर आते हैं। ऐसे शिशुओं की त्वचा पुरी पीली हो जाती है। यदि त्वचा का रंग पीला हो तो उसे डॉक्टर को दिखाएं। डॉक्टर के बताए अनुसार उपचार करें।

शिशु के स्वास्थ्य

शिशु के स्वास्थ्य का सूचक उसका भार होता है, जैसे ही बच्चा जन्म लेता है, उसका वजन कर, उसके स्वस्थ होने की जानकारी पा ली जाती है। इस समय जिस बच्चे का वजन सामान्य से नीचे हो, उसको सामान्य शिशुओं से अधिक और विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।

‘बेबी स्केल' एक छोटा-सा, तराजू मिल जाता है। यदि इसे खरीद लिया जाए और बच्चे का वजन पहले हर सप्ताह और फिर 15 दिनों बाद किया जाए तथा इसको नोट करते रहें, तभी आप बच्चे के विकास की सही सूचना जान सकेंगे। इसका सुगमता से ग्राफ भी बन जाता है। आप यदि यह पाएं कि बच्चे का विकास धीमा है, कम है, नहीं है, तो आप डॉक्टर की सलाह लें।

यदि उसे कोई रोग नहीं है मगर विकास की मात्रा धीमी है, तो इसे आप वजन में बढ़ोत्तरी को देखकर स्वयं जान सकते हैं। फिर चिकित्सक की सलाह लेना आसान हो जाता है। यदि किसी उपचार की आवश्यकता हो, तो अवश्य कराएं, मगर बच्चे की वृद्धि ठीक गति से होनी चाहिए। इस बात को सुनिश्चित करें।

उपशीर्ष क्या है:

जब बच्चा गर्भ से बाहर आता है, तो सिर सबसे पहले निकलता है। सिर का जो हिस्सा सबसे पहले निकलता है, वह सूज जाता है। उभरा-सा लगता है। यदि इसे हाथ से छूते हैं, तो बड़ा नरम लगता है। यह हिस्सा सिर के पीछे की ओर होता है। दाबने से दब भी जाता है। नरम-नरम-सा यही उपशीर्ष है। धीरे-धीरे यह उपशीर्ष वैठ जाता है। सामान्य हो जाता है।

उपशीर्ष की जानकारी देते हुए चिकित्सा वैज्ञानिक बताते हैं प्रसव के समय में भ्रूण के सिर पर गर्भाशय की भित्तियों की सिकुड़न से असमान भार पड़ता है। प्रसव का प्रारंभ ही गर्भाशय की भित्तियों की पेशियों के संकोच से होता है। ज्यों-ज्यों प्रसव बढ़ता है, त्यों-त्यों भित्तियां अधिक संकोच करती जाती हैं। परिणामस्वरूप भ्रूण का शरीर नीचे या बाहर गर्भाशय की ओर खिसकता जाता है।

भ्रूण की अवस्था में गर्भाशय में स्थित तथा जन्म के समय कौन-सा भाग आगे रहता है, इस पर ‘उपशीर्ष’ की स्थिति निर्भर करती है। कभी-कभार बच्चे का सिर पहले बाहर नहीं आता, बल्कि नितंब बाहर आता है। ऐसी हालत में उपशीर्ष सिर के पीछे न होकर नितंब पर बन जाता है।

ध्यान रखे:-

जब शिशु गर्भ में होता है, तो उसकी टांगे अंदर को मुड़ी हुई होती हैं-धनुष की तरह। इसी के अनुसार वह अपने नितंब से टांगें उठाकर, ऊपर को लाकर चलता रहता है। जन्म के पश्चात् शिशु खूब हाथ-पांव चलाता रहता है। उसकी टांगें तथा बाजू खूब चलती हैं। यदि बाजू न चलें, सुस्त पड़ी रहें, तो जरूर कोई कारण होगा। ऐसे में डॉक्टर को दिखाएं। कुछ महीनों बाद शिशु टांगों के बल सीधा खड़ा होना सीख जाता है।

किसी कारण उसकी टांगें उसके शरीर का वजन न ले सकें, तो भी डॉक्टर को दिखाएं। इस कार्य में लापरवाही न करें। बाजुओं तथा टांगों में यदि जरा-सी भी विकृति दिखाई दे, तो चिकित्सक से सलाह लेना जरूरी है। शिशु का सारा जीवन सुखमय गुजरे, इसलिए उसका पूरा ध्यान रखें।

शिशु के हाथों को खोलकर सभी उंगलियां देखें। पांव की उंगलियां भी। यदि हाथ या पांवों की इन उंगलियों में से कोई भिन्न या तुड़ी-मुड़ी नजर आए, तो इसको चैक कराकर उपचार करें। शिशु की एक हाथ की उंगली को दूसरे हाथ में पकड़वा कर देखें। वह अपनी उंगलियों को संकुचित कर आपस में पकड़ बना लेता है। यदि ऐसा न कर पाए, तो भी चैकअप जरूरी है। शिशु की सारी क्रियाएं ठीक प्रकार से चलनी चाहिए।

(और पढ़े:-जन्म के बाद नवजात शिशु का भार क्यों घटता या बढ़ता है)

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