दमा (ब्रांकियल अस्थमा) एक तकलीफदेह रोग है जिसमें कई बार तो रोगी पूरी रात्रि खांसते गुजार देता है। गम्भीर अवस्था में तो रोग जानलेवा भी सिद्ध होता है। अतएव रोग के बारे में जानना तो जरूरी है ही, साथ ही इससे बचाव के बारे में भी लोगों को जानना चाहिए। दमा दम के साथ जाता है, जैसी कहावत वर्तमान संदर्भ में सही नहीं है। क्योंकि इलाज से कई रोगी ठीक हो जाते हैं।
एक पुरानी स्थिति जो ब्रोन्कियल नलियों की सूजन और संकीर्णता का कारण बनती है, जो नली हवा को आपके फेफड़ों में प्रवेश करने और छोड़ने की अनुमति देता है।
दमा क्या है? दमा में उपर्युक्त वर्णित श्वास नलिकाओं में सिकुड़न आ जाती है अथवा वे पतली हो जाती हैं। जिस कारण रोगी को श्वास खींचने और छोड़ने में कुछ रुकावट या तकलीफ का अनुभव होता है।
इस स्थिति में शरीर को आक्सीजन कम मिल पाती है इसलिए रोगी जोर-जोर से साँस लेकर इस कमी को पूरी करने का प्रयास करता है। श्वास नलिकाओं के सिकुड़ने को ही दमा रोग कहते हैं। दमा को अंग्रेजी में अस्थमा (Asthma) कहते हैं।
दमा के कारण कई हो सकते हैं। कुछ रोगियों को दमे की शिकायत हमेशा बनी रहती है जबकि कई रोगियों को दमे की शिकायत कभी कभी होती है। संक्षेप में विभिन्न कारणो का वर्णन नीचे दिया जा रहा है:
1.एलर्जी के कारण- यह दमा का एक प्रमुख कारण है। सैकड़ों प्रकार के ऐसे पदार्थ हैं जिनसे मनुष्य को एलर्जी हो सकती है। आजकल एलर्जी टेस्ट की सुविधा उपलब्ध है। इससे पता चल जाता है कि रोगी को किस वस्तु से एलर्जी है। एलर्जी के लक्षण उत्पन्न करने वाले पदार्थ (Allergens) कई तरह के हो सकते हैं। किसी रोगी को कोई विशेष खाद्य पदार्थ से एलर्जी होती है तो किसी को वातावरण में मौजूद धूल के कारण दमा उभरता है। कुछ एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थों का विवरण (Details) निम्न है-
2। प्रदूषण के कारण- सीमेंट, एस्बेस्टस, कपड़े, रूई इत्यादि के कारखानों में कार्यरत मजदूर एवं आस-पास रहने वाले व्यक्तियों को इन कारखानों से उड़े कणों अथवा छोटे-छोटे रेशों से भी दमा की शिकायत हो सकती है।
3। संक्रमण एवं कृमि रोग के कारण- जीवाणु या विषाणुओं के संक्रमण से श्वास नलिकाओं में सूजन आ जाती है जिससे वे संकीर्ण हो जाती हैं। इस कारण दमा की शिकायत बन सकती है। उदाहरणार्थ-पुराना श्वास नलिका शोथ (Chronic Bronchitis) में दमा की शिकायत भी हो सकती है। इसी तरह आँतों में कृमि होने के कारण भी बच्चों में दमा के लक्षण पैदा हो जाते हैं लेकिन जब दवा दी जाती है तो दमा बिलकुल ठीक हो जाता है।
4। पैतृक गुण के कारण- दमा या अस्थमा से ग्रसित माँ-बाप के बच्चों में सामान्य लोगों की अपेक्षा रोग से पीड़ित होने की संभावना ज्यादा होती है। पिता की बजाय मां यदि दमा से पीड़ित है तो बच्चों में दमा होने की संभावना अपेक्षाकृत और अधिक होती है।
5। कठिन परिश्रम के कारण- किसी जगह का कठिन कार्य या परिश्रम भी दमे का दौरा शुरू करने में सहायक बन सकता है। गुब्बारे फुलाने या जोर से हँसने के पश्चात् भी दमा के दौरे शुरू होते देखे गए हैं।
6। मनोवैज्ञानिक कारण- विभिन्न शोधों से यह भी पता चला है कि मानसिक रूप से परेशान बच्चों में दमा अधिक होता है। वास्तव में इसका कारण मनोवैज्ञानिक है। बच्चे में प्रतिक्रियास्वरूप ऐसा होता है। यह भी रोचक तथ्य समाने आया है कि दमा से ग्रस्त रोगी आम तौर पर कुशाग्र बुद्धि के होते हैं।
यह मानना सही नहीं है कि दमा केवल वृद्धों या अधिक उम्र के व्यक्तियों का रोग है बल्कि आजकल तो बच्चों और अधेड़ व्यक्तियों में रोग वृद्धों की अपेक्षा अधिक होता है।
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दमा के लक्षण निम्न प्रकार से बताए गए है-
वैसे तो चिकित्सक लक्षण देखकर एवं परीक्षण करके रोग का पता लगा लेते हैं लेकिन कुछ जाँचें करवाना भी जरूरी होता है। इससे कई बार कारणों का पता लग जाता है। जैसे मल की जाँच से कृमि रोग का पता चल जाता है। कृमि रोग का इलाज करने से दमा के दौरों में अपेक्षित कमी आ जाती है। इसी तरह खून की जाँच से यह पता लगता है कि इओसिनोफिल (Eosinophil) नामक रक्त कोशिकाओं की संख्या तो नहीं बढ़ गई है। ये शरीर में एलर्जी की स्थिति का सूचक होती हैं। कई मरीजों में इओसिनोफीलिया नामक रोग का इलाज करने से दमा के दौरे ठीक हो जाते हैं। इसी तरह एलर्जिन टेस्ट से एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थ का पता चल जाता है।
रोग के निदान के लिए छाती का एक्स-रे भी चिकित्सक करवाते हैं। इससे अन्य रोगों की संभावनाएँ दूर हो जाती हैं। रोग के सही शल्य चिकित्सक से जाँच करवानी चाहिए।
दमा का इलाज पूर्ण और स्थायी रूप से तो सम्भव नहीं हो सका है लेकिन रोगी को दवाइयों द्वारा काफी राहत दी जा सकती है।
सिकुड़ी हुई श्वास नलिकाओं को फैलाने के लिए बहुत सी खाने वाली या पीने वाली दवाइयाँ और इंजेक्शन आते हैं। सूंघने वाली दवाइयाँ नेबोलाइजन (Nebulology) भी आती हैं जिन्हें चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए। वैसे दमा के रोगी को ऐसी कुछ दवाइयाँ हमेशा अपने पास रखनी चाहिए जिन्हें जरूरत के वक्त वे तुरन्त ले सकें।
यदि दवाइयों से राहत न मिले तो तुरन्त चिकित्सक को बुलवाना चाहिए या अस्पताल में भर्ती हो जाना चाहिए क्योंकि दमे के रोगी को आक्सीजन की जरूरत पड़ सकती है।
दमे के साथ यदि श्वास नलिकाओं या फेफड़ों के संक्रमण हैं तो उसके लिए भी जीवाणुरोधी दवा (एंटीबायटिक्स) पूरी मात्रा में चिकित्सक के बतलाएँ अनुसार खानी चाहिए। रोग की शुरुआत में सही इलाज हो जाए तो रोग ठीक होने की सम्भावना अधिक होती है।
एलर्जी वाले दमा में कुछ विशेष तरह के एंटीबाडीज़ के इंजेक्शन (टीके) जैसे गामा ग्लोब्यूलिन इत्यादि देने से भी फायदा होता है। लेकिन ऐसा तब होता है जब जाँच द्वारा यह पता चल जाए कि दमा एलर्जी के ही कारण है।
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निम्नलिखित सावधानियाँ अपनाकर दमा से बचाव किया जा सकता है :
हर बीमारी के लिए घरेलू नुस्खे हमेशा सही साबित हुये है, ऐसे ही दमा की आयुर्वेदिक दवा के बारे मे नीचे बताया गया है।
यहाँ एक बात और उल्लेखनीय है कि ऊपर जिस प्रकार की दमा बीमारी की चर्चा की गई है, उसे ब्रांकियल अस्थमा अथवा श्वास नलिकाओं का अस्थमा कहते हैं। इस तरह की बीमारी का हृदय रोगों या हृदय से सम्बन्ध नहीं होता। लेकिन कई तरह के हृदय रोगों में भी साँस फूलने अथवा साँस लेने में तकलीफ की शिकायत होती है जिसके लक्षण भी दमे से मिलते-जुलते हैं। इसे कार्डिएक अस्थमा अथवा हृदय का दमा भी कहते हैं।
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