इस रोग में रोगी मधुर मूत्र का त्याग करता है, खून में शर्करा की मात्रा सामान्य से अधिक बढ़ जाती है। मूत्र का अधिक आना मूत्र का तेज लगना, कमजोरी, दुर्बलता, हथेली व तलवों का पीला वर्ण, नपुंसकता, धमनी की जड़ता, रक्तचाप का बढ़ना, हृदय में दर्द का होना आदि लक्षण हैं। मधुमेह रोगी प्रायः पूरी आयु नहीं जी पाता हैं।
(1) मोटे और बलवान
(2) मोटे किंतु दुर्बल
(3) पतले किंतु बलवान
(4) कमजोर पतले- मोटे और बलवान को वमन एवं विरेचन से शुद्ध करके चिकित्सा करें।
मोटे, दुर्बल व पतले किंतु बलवान को आवश्यक शोधन करके संतर्पण दें। कमजोर पतले को वृहण चिकित्सा करें। प्रमेह उत्पादक दोष से उत्पादक बीज के विकारयुक्त हो जाने पर मधुमेही की संतान भी मधुमेह से पीड़ित हो जाती है। शर्करायुक्त पदार्थों का त्याग इन सबमें जरूरी है।
1। शुद्ध शिलाजीत 1 ग्राम आवश्यक मात्रा में शहद में मिलाकर दो बार दें।
2। चंद्रप्रभा वटी 2 वटी दिन में तीन या चार बार बिल्व पत्र स्वरस के साथ दें।
3। मामज्जकघन वटी 1-2 वटी दिन में तीन बार नीम के पत्तों के रस के साथ दें।
4। शिलाजत्वादि वटी 1-2 वटी दिन में तीन बार दूध के साथ दें।
5। तारकेश्वर रस 120 मि.ग्राम शहद के साथ दिन में दो बार दें।
6। वृहत वंगेश्वर रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
7। बसंत कुसुमाकर रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
8। स्वर्ण वंग 120 मि.ग्राम दिन में दो बार शहद के साथ दें।
9। त्रिवंग भस्म 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार दूध या शहद के साथ दें।
10। वंगभस्म 120 मि.ग्राम दिन में तीन बार दूध या शहद के साथ दें।
11। गोक्षुरादि गुगुल 2 गोली दिन में दो बार दूध के साथ दें।
12। पंचनिंब चूर्ण 5 ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
13। मुलहठी चूर्ण 3-6 ग्राम पानी के साथ दो बार दें।
14। शतावरी चूर्ण 3-6 ग्राम पानी के साथ दो बार दें।
15। शिवा गुटिका 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दूध के साथ दें।
16। मेघनाद रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
17। गुडमार चूर्ण 3-6 ग्राम दिन में दो बार दें।
18। हरिद्रा चूर्ण 3-5 ग्राम दिन में दो बार दें।
19। आमलकी रस 5-10 मि.लि। दिन में दो बार दें।
20। अरणी क्वाथ 10-15 मि.लि।
दिन में दो बार दें।
21। स्वर्ण माक्षिक भस्म 120 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
22। विजयसार का जल 10-20 मि.लि। दिन में दो बार दें।
23। नीम का जल 10 मि.लि। दिन में दो बार दें।
लाभ:- प्रमेह में बथुआ, करेला, पपीता, अदरक, मूली, जामुन, आर्द्रक, गूलर की सब्जी बहुत लाभदायक होती है। प्रमेही को भोजन में यवकी रोटी और जौ का दलिया देना लाभकर रहेगा। चना भी बहुत गुणकारी है। चीनी, चावल तथा आलू आदि कंद शाकों का त्याग करना चाहिए। त्रिफला के क्वाथ में भिगोकर सुखाएं जौ और चने की रोटी या दलिया कषाय रस प्रधान फलों का सेवन, भोजन के बाद घूमना तथा सुबह सायं दो-चार किलोमीटर चलना चाहिए।
नुकसान:- अधिक देर बैठे रहना, भोजन के तुरंत बाद सो जाना, दही, गन्ने का रस, केला, अनार, मौसमी, चीकू, अंजीर, सेव, धूम्रपान एवं मद्यपान का सेवन हानिकारक है।
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