जिसमें प्रजनन योग्य आयु वाली स्त्रियों को मासिक स्राव नहीं होता है। यह दशा शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के कारणों से उत्पन्न हो सकती है। मासिक धर्म का न आना ही अनार्तव कहलाता है।
यह दो प्रकार का होता है।
1। प्राकृतिक - बाल्यकाल (जवानी से पहले) गर्भकाल, बच्चे को दूध पिलाते समय तक तथा रजोनिवृत्ति काल में होने वाला अनार्तव प्राकृतिक होता है।
2। विकार युक्त - गर्भाशय, बीजग्रंथि, बीजवाहिनी में विकार होने से, पीटयूटरी या थायराइड ग्रंथि के विकार युक्त होने से, क्षय रोग, मधुमेह या अन्य दुर्बलताजनक रोगों के होने से भी अनार्तव रोग होता है।
1। काले तिल 6-12 ग्राम बराबर भाग गुड़ के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
2। गाजर के बीज का क्वाथ 15-30 मि.लि। गुड़ 5-10 ग्राम के साथ दो बार दें।
3। रजःप्रर्वतनी वटी 240 मि.ग्राम गुड़ काले तिल के क्वाथ के साथ दो बार दें।
4। नष्ट पुष्पांतक रस 240 मि.ग्राम दिन में दो बार दें।
5। कुमारी आसव 15-20 मि.लि। समभाग जल से भोजन के बाद दें।
6। बोलादि वटी 1-2 वटी जल के साथ दो बार दें।
7। हिंगुकर वटी 1-2 वटी जल के साथ दो बार दें।
8। हिंग्वादि वटी 1-2 वटी गर्म जल के साथ दो बार दें।
9। रजो दोषहर वटी 2-4 वटी दिन में दो बार उष्णजल के साथ दो बार दें।
10। अशोकारिष्ट 20-25 मि.लि। समभाग जल मिलाकर भोजन के बाद दें।
11। चंद्रप्रभावटी 2-4 वटी दिन में दो बार पानी व दूध के साथ दें।
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