जो पीड़ा कमर के नीचे के भाग से शुरू होकर जंघा, घुटने, पिंडली तथा एड़ी तक जाती है उसे रांगड़ बाय या गृध्रसी, साइटिका कहते हैं।
1। 20 ग्राम लहसुन की लुगदी बनाकर 20 मि.लि। गो दुग्ध व 240 मि.लि। जल मिलाकर पकाएं। दूध मात्र रह जाए तो छानकर पिलाएं। इसे लहसुन क्षीर कहते हैं।
2। 20 मि.लि। एरंड तेल को 50 मि.लि। गोमूत्र में मिलाकर एक महीने तक पीने से गृध्रसी दूर हो जाती हैं।
3। एरंड बीज का कल्क दूध में पकाकर गुड़ या चीनी मिलाकर खाने से भी लाभ होता है।
4। हारसिंगार के पत्रों का रस 30 मि.ली। या क्वाथ 60 मि.लि। औषाधियों के अनुपान में या एरंड मूल क्वाथ में मिलाकर देना चाहिए।
5। शुद्ध कुपीलु 60 मि.ग्राम समीरपन्नग रस 120 मि.ग्राम दिन में दो बार एरंड मूल क्वाथ से दें।
6। महायोगराज गुगुल 500 मि.ग्राम रसोनपिंड 2 ग्राम दो बार हारसिंगार के क्वाथ से दें।
7। वातगजांकुश रस 240 मि.ग्राम दिन में दो बार एरंड मूल क्वाथ से दें।
8। महाविषगर्भ तेल, वृहत सैंधवादि तेल, महामाष तेल मालिश के लिए।
9। सिंहनाद गुगुल 1 ग्राम, शृंठी क्वाथ से दो बार देने से विशेष लाभ होता है।
10। महारास्नादि क्वाथ, दशमूल क्वाथ, रास्नासप्तक क्वाथ 20 मि.लि। दो बार दें।
11। रोगी को तीन-चार सप्ताह तक पूर्ण विश्राम कराएं। लहसुन, एरंड व हारसिंगार इस रोग में हितकर औषधियां हैं।
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