दांत का निकलना एक बच्चे के जिंदगी का अहम् पड़ाव है जो बेहद मुश्किलों भरा होता है। इस दौरान तकलीफ की वजह से बच्चे काफी परेशान करते हैं, रोते हैं, दूध नहीं पीते। कुछ बच्चों को तो उलटी, दस्त और बुखार जैसे गंभीर लक्षण भी देखने पड़ते हैं।
जन्म से दांत दो प्रकार के होते हैं। इसका जिक्र करने से पूर्व, इतना बता दें कि जन्म लेते समय भी बच्चे के दांत बन रहे होते हैं। मगर ये दांत जबड़े की अस्थि के अंदर होते हैं। इन्हें अनुभव कर पाना या देख पाना संभव नहीं। मगर ये जबड़े में जरूर अपना रूप ले चुके होते हैं, जिन्हें एक्स-रे से देखा जा सकता है।
ईश्वर ने जन्म के साथ ही जैसे सभी अंगों का निर्माण कर दिया होता है, वैसे ही दांतों का भी। बस, अंतर इतना है कि ये कुछ समय लगभग कोई पांच-छ: महीनों तक पूरी तरह छिपे रहते हैं तथा धीरे-धीरे निकलने लगते हैं।
1। निचले जबड़े के अंदर का दांत: इसे छिपे रहने और बाद में निकलने का रहस्य यह बताया गया है कि बच्चे को पेट से बाहर आने के बाद जो तैयार भोजन मिलता है, वह मां के स्तनों से मिलता है। उस समय प्रसव के कारण मां का शरीर भी कच्चा हो चुका होता है। दुर्बल होता है। किसी भी परिश्रम तथा चुभन को सहन नहीं कर सकता। स्तन तो और भी कोमल होते हैं, जहां से शिशु को दूध निकालकर पीना होता है।
यदि उस समय बाकी सभी अंगों के साथ उसके दांत भी निकल चुके हों, तो दूध पिलाने में बेहद पीड़ा होगी। वैसे भी कोई भी नारी उस समय या बाद में भी बच्चे के दांतों के प्रहार नहीं सह सकती। तभी प्रकृति ने दांतों को निचले जबड़े के अंदर की अस्थि में रखा और धीरे-धीरे निकालने की योजना बनाई।
2। दूध के दांत : जन्म के बाद लगभग छ: महीनों बाद जो दांत निकलने शुरू होते हैं, ये अस्थाई होते हैं। इन्हें दूध के दांत कहते हैं। ये किसी बच्चे को आसानी से निकलने लगते हैं, तो किसी को कठिनाई से। बच्चा जब तीन वर्ष के करीब पहुंच जाता है, तो इन दांतों की संख्या 20 हो जाती है। यहां यह भी कहना होगा कि बच्चे के शरीर की प्रकृति पर निर्भर करता है कि दांत कब निकलने लगें।
कहीं-कहीं तो तीन-चार महीनों के बाद ही दांत सामने के आने शुरू हो जाते हैं, तो कहीं दस-ग्यारह महीनों बाद पहला दूध का दांत फूटता है। जिन बच्चों के दांत छ: महीने की आयु से भी पहले निकलने शुरू होते हैं, उनके दांत अपूर्ण होते हैं। ये ठीक नहीं होते। इन्हीं स्थानों पर बाद के दांत और भी खराब होते हैं। इन बच्चों के दांतों की ऊपर की परत ठीक प्रकार से नहीं बन पाती। सबसे ऊपर की परत अविकसित होने से दांतों का क्षय होना शुरू हो जाता है।
नोट: कुछ बच्चे जब चलने-फिरने लग जाते हैं, तब दांत निकलना शुरू होते हैं। ऐसा होने पर बच्चे के शरीर में कोई विशेष दोष मत जानें। ऐसा कभी-कभी हो जाता है। बच्चों के विकास क्रम में भिन्नता होना आम बात है। इसे चिंता का विषय न बनाकर, जो संभव हो वह उपाय कर लेना चाहिए। हर बच्चे का अपना विकास क्रम होता है, जो उसके लिए विशिष्ट होता है। अतः इसे साधारण रूप से लें। किसी एक बच्चे की समानता को दूसरे बच्चे में मत तलाशें।
कुछ बच्चे के तो आराम से दांत निकलने लग जाते हैं, पता ही नहीं चलता। जबकि कुछ बच्चों के दांत निकलते समय कष्ट होता है, कुछ पीड़ा होती है। किसी को दस्त लग जाते हैं, किसी को बुखार आने लगता है। कुछ के शरीर के विकास की गति धीमी पड़ जाती है। कुछ का भार स्थिर रहने लगता है। कुछ चिड़चिड़े होकर अकसर रोते रहते हैं। कुछ को ऐसे लक्षण एक से अधिक दिखाई देने लगते हैं। ऐसा कुछ भी होने पर, कुछ उपाय तो करें, मगर बड़ी चिंता नहीं।
ऐसे बच्चों के मसूढ़ों पर उंगली लगाकर देखें। मसूढ़े फूले हुए होते हैं। इससे जाहिर हो जाता है कि दांत बाहर निकलने को तैयार हैं, मगर निकल नहीं पाते। रास्ता नहीं बना सकता तभी बच्चे को दर्द, चिड़चिड़ापन, काटने की इच्छा आदि होती है। फिर भी घबराएं नहीं। मसूढ़े से दांत निकलने का रास्ता बना रहा है। रास्ता मिल नहीं रहा। उसे कुलबुलाहट महसूस होना, मसूढ़ों में दर्द होना, कुछ सख्त चीज काटने या चबाने को मन करना आम बात है।
जिस बच्चे को बहुत देर तक दांत नहीं निकल रहा, और जब निकलने लगा है, तो उसे पीड़ा तथा कुछ अन्य दिक्कतें आने लगी हैं, मसूढ़े सूज गए हैं तथा वह अधिक रोने लगा है। ऐसे में निम्न साधारण से उपचार या उपाय करके आप अपने मुन्ने को राहत पहुंचा सकते हैं।
1। शहद में बोरिक एसिड मिलाकर बच्चे के मसूढ़ों पर मलें। दांत शीघ्र निकल आएंगे।
2। चुटकी-भर सुहागा शहद में डालें। इसको मिलाकर बच्चे के मसूढ़ों पर मलें। इससे भी लाभ होगा।
ऊपर दी गई दोनों अवस्थाओं में आधा चम्मच शहद, उसमें बिलकुल जरा-सा, हलकी-सी चुटकी भर बोरिक पाउडर डालें। इस दवा को ठीक प्रकार से मिलाएं और फिर लगाएं। दिन में हर 4-5 घंटे बाद, कुल तीन बार, मसूढों पर हलकी उगला से इस बनाए गए शहद को लगाना चाहिए। यह हलकी-सी रगड़ दांत निकलने का रास्ता बना देगी। दांत तो जल्दी निकलेंगे ही, पाचन में आ गए विकार भी नहीं रहेंगे।
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