अतिबला को संस्कृत में ‘वाट्या', ‘वाट्यालिका’, ‘बला', ‘खरयष्टिका' आदि नामों से पुकारते हैं। यह चार प्रकार की होती है, पर चारों के गुण एक समान होते हैं। इसकी शाख पर पान जैसे आकार के पत्ते लगते हैं। शाखें पतली और लंबी होती हैं। तना अधिक मोटा नहीं होता। इसका पौधा भी ज्यादा बड़ा नहीं होता। इस पर चार पंखुरियों वाला फूल खिलता है। भारत के जंगलों और पर्वतों पर खासतौर से यह पाया जाता है।
यह तासीर में ठंडी होती है और स्वाद में मधुर होती है। यह वात, पित्त नाशक होती है। गर्भ पोषक होती है और शक्तिदायक है। शुक्रमेह, नेत्ररोग, ज्वर पीड़ा, पक्षाघात आदि में इसकी छाल और जड़ का उपयोग औषधियों में किया जाता है। यह रक्तशोधक भी है।
अतिबला वात रोग में उसे नष्ट करने के लिए अत्यंत कारगर जड़ी है। इसकी छाल को कूटकर चूर्ण बना लें और उसे छानकर रख लें। 2-2 ग्राम चूर्ण शहद के साथ चाटने पर वात रोग 2-3 दिन में ही नष्ट हो जाता है।
अतिबला की जड़ को कूटकर चूर्ण बना लें और छानकर शीशी में भर लें। खाना खाने के बाद प्रतिदिन दो बार 5-5 ग्राम चूर्ण गर्म जल के साथ सेवन करने से रुका हुआ पेशाब बह जाता है। इसके बारीक चूर्ण को शहद या शक्कर या बूरा आदि के साथ भी ले सकते हैं। इससे मूत्र की रुकावट ही दूर नहीं होती, बहुत अधिक मात्रा में पेशाब का आना भी रुक जाता है।
अतिबला की जड़ का चूर्ण 10 ग्राम मिश्री मिले गर्म दूध के साथ 15 दिन तक सेवन करें। प्रमेह रोग सदैव के लिए नष्ट हो जाएगा। और फिर कभी नहीं होगा।
अतिबला के पत्तों को पानी में धोकर थोड़े पानी मे उबालें। जब पानी आधा रह जाए, तब उसे शीशी में भरकर रख लें। आँखें -दुखने पर, ‘आँखों में लाली', 'फूला’, ‘रोहे' आदि होने पर इस जल की एक-एक या दो-दो बूंदें सोते समय आँखों में टपकाएँ। आँखें जल्द ठीक हो जाएँगी।
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अतिबला के चूर्ण की 10 ग्राम मात्रा शहद के साथ गर्भवती स्त्री को चटाने से गर्भ का बालक पुष्ट होता है।
अतिबला का पचांग 2 लीटर पानी में पकाएँ। जब पानी का आठवाँ भाग रह जाए तब उसे थोड़ा-थोड़ा करके पक्षाघात के रोगी को पिलाएँ। इससे शरीर के निष्क्रिय अंग फिर से कार्य करने लगते हैं।
खरैटी की छाल को पानी में घिसकर चर्म रोगों पर लेप करने से दाद, खाज, खुजली, त्वचा की फरत, ,खुष्की, जखम आदि कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
जब में अतिबला का काढ़ा ज्वर के रोगी को पिलाना चाहिए। ज्वर जल्दी उतर जाएगा।
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