श्वास लेने में कठिनाई का होना ही दमा कहलाता है। इस दशा में रोगी को सांस बाहर निकालते समय जोर लगाना पड़ता है।
1। क्षुद्र श्वास रोग - रुखे सूखे पदार्थों के सेवन से, व्यायाम से जो श्वास फूलता है वह क्षुद्र श्वास कहलाता है। आराम करने पर यह ठीक हो जाता है। अधिक भोजन करने वालों व मोटे मनुष्य में यह प्रायः मिलता है।
2। तमक श्वास रोग - इसका दौरा बरसात, शीत ऋतु, पूर्वी वायु तथा कफ बढ़ने वाले पदार्थों के सेवन से अधिक होता है। बेचैनी व व्याकुलता के साथ सांस रोगी का श्वास बढ़ जाता है। बराबर खांसने से रोगी मूर्छित हो जाता है। मुश्किल से थोड़ा कफ निकलने पर कुछ समय के लिए आराम मिलता है। दौरे के समय रोगी बोलने में भी कठिनता का अनुभव करता है वह लेट नही पाता। आगे की तरफ तकिया का सहारा लेकर झुका हुआ बैठा रहता है, आंखें सूजी हुई चढी रहती हैं। सिर पसीने से तर हो जाता है।
(1) चंद्रामृत रस 120-250 मि.ग्राम शहद के साथ दो-चार बार चटाएं।
(2) भागोत्तर गुटिका 500 मि.ग्राम में 500 मि.ग्राम पिप्पली चूर्ण के साथ दिन में दो बार चटाएं।
(3) करवीर योग 50-250 मि.ग्राम शहद के साथ दो-तीन बार चटाएं।
(4) श्वासकुठार रस 250 मि.ग्राम, श्रृंग्यादि चूर्ण में मिलाकर शहद के साथ चटाएं।
(5) सितोपलादि चूर्ण 2-3 ग्राम शहद के साथ दिन दो-तीन बार चटाएं।
(6) श्रृंग्यादि चूर्ण 2-3 ग्राम शहद में मिलाकर दो-तीन बार चटाएं।
(7) तालीशादि चूर्ण 2-3 ग्राम शहद में मिलाकर दो-तीन बार चटाएं।
(8) सोमलता चूर्ण 1-2 ग्राम शहद मिलाकर दो-तीन बार चटाएं।
(9) कंटकारी क्वाथ 10-20 मि.लि। दिन में दो बार लेना चाहिए।
(10) अभ्रक भस्म 120-250 मि.ग्राम शहद में मिलाकर दो-तीन बार चटाएं।
(11) मयूरपिच्छ भस्म 1-2 ग्राम शहद में मिलाकर चटाएं।
(12) अर्क लवण 1 ग्राम गर्म जल के साथ दिन में दो बार दें।
(13) अपामार्ग क्षार 1 ग्राम गरम जल के साथ दो-तीन बार दें।
(14) भांग गुड़ 10-20 ग्राम गर्म जल के साथ दिन में दो बार दें।
(15) अगस्त्य हरीतकी अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो-तीन बार उष्ण जल से दें।
(16) च्यवनप्राश अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार सेवन करें।
(17) चित्रक हरीतकी अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार दें।
(18) वासावलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार लें।
(19) व्याघ्री हरीतकी अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार दें।
(20) मोनिका अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार दें।
(21) मेनोल अवलेह 10-20 ग्राम दिन में दो बार दें।
(22) द्राक्षारिष्ट 15-30 मि.लि। तीन बार जल के साथ भोजन के बाद दें।
(23) वासारिष्ट 15-30 मि.लि। उष्ण जल के साथ भोजन के बाद दें।
(24) कनकासव 15-30 मि.लि। गर्म जल के साथ भोजन के बाद दें।
(25) लंवगादि गुटिका 1-1 गोली दिन में पांच-छह बार चूसें।
(26) खदिरादि वटी 1-1 गोली दिन में पांच-छह बार चूसें।
लाभ:- गेहूं, जौ, मूग, पटोलपत्र, रास्ना मूल, अंगूर, बकरी का दूध, बथुआ, लौंग, इलायची, लहसुन, त्रिकट, उष्ण जलपान एवं स्नान, उष्ण वातावरण में रहन-सहन, भुने चने खाना, मुलहठी चूसना आदि हितकर हैं।
नुकसान:- भारी, ठंडे, रुखे अन्न, उड़द, सरसों का साग, तेल में बने पदार्थ, अचार, दही, ठंडा जल पान, स्नान तथा मछली हानिकारक हैं।
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